द कश्मीर फाइल्सः लपिड जैसे लोगों में सच को देखने, उसे स्वीकार करने का नैतिक साहस होना चाहिए
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: December 1, 2022 11:28 AM2022-12-01T11:28:57+5:302022-12-01T11:29:03+5:30
लपिड को यह पता होना चाहिए कि कश्मीरी पंडितों और यहूदियों ने आतंकवाद की जो त्रासदी झेली है, वह लोमहर्षक तो है ही साथ ही मानव सभ्यता के इतिहास में अभूतपूर्व है। इन दो समुदायों ने एक जैसी पीड़ा झेली, एक जैसे अत्याचार सहन किए, विस्थापन का असहनीय दर्द झेला, अपने परिजनों को खोया और उनका संघर्ष आज भी खत्म नहीं हुआ है।

द कश्मीर फाइल्सः लपिड जैसे लोगों में सच को देखने, उसे स्वीकार करने का नैतिक साहस होना चाहिए
फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री की चर्चित तथा बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़ने वाली फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' पर इजराइली फिल्मकार नदाव लपिड का विवादास्पद बयान महज एक पब्लिसिटी स्टंट है। भारत में इजराइल के राजदूत नओर गिलोन और इजराइल के महावाणिज्य दूत कोबी शोशानी ने लपिदड की टिप्पणी को सिरे से खारिज कर दिया है। इजराइली राजदूत गिलोन ने तो लपिड के बयान पर लंबी माफी मांगी है। जबकि शोशानी ने कहा कि उन्होंने 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म देखी है और वह फिल्म के विषय एवं फिल्मांकन से पूरी तरह सहमत हैं।
गोवा में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया के निर्णायक मंडल के मुखिया ने 'द कश्मीर फाइल्स' को दुष्प्रचार करने वाली फिल्म बताते हुए मंगलवार को इस बात पर आश्चर्य जताया था कि फिल्म महोत्सव में उसे कलात्मक फिल्मों की श्रेणी में कैसे शामिल किया गया? लपिड ने इस फिल्म को 'भद्दी' तक करार दिया था। उनकी इस टिप्पणी पर विवाद पैदा हो गया। लपिड इजराइल के जाने-माने फिल्मकार हैं। उनसे एक ऐसी फिल्म को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रस्त टिप्पणी अपेक्षित नहीं थी जिसने एक कटु सत्य को पूरी संवेदना के साथ दर्शाया। लपिड को एक फिल्मकार होने के नाते यह एहसास होना चाहिए कि किसी भी विषय को पर्दे पर उतारते समय कथा के साथ किसी प्रकार का अन्याय नहीं होना चाहिए। सच हमेशा कटु होता है इसलिए उसे प्रदर्शित करते वक्त वह हृदय को उद्वेलित कर देता है लेकिन दर्शक सच को हमेशा स्वीकार करता है।
विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' अपने प्रदर्शन के वक्त से ही चर्चित तथा विवादित रही लेकिन उसके विरोध का आधार बुनियादी तौर पर राजनीतिक था। उसके विरोध का कोई ठोस आधार नहीं था। जनता ने जिस तरह से फिल्म को प्रतिसाद दिया, उसी से साबित हो गया कि फिल्म की विषयवस्तु की सच्चाई दर्शकों के हृदय को छू गई। दर्शकों ने कश्मीर में आतंकवाद के खौफनाक चेहरे, उससे उपजी मानवीय त्रासदी को दिल की गहराइयों तक महसूस किया। फिल्म के यथार्थवादी होने का इससे बड़ा प्रमाण और क्या चाहिए। लपिड जैसे कुछ तत्व पूरी दुनिया में हैं जो हमेशा चर्चा में बने रहने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते रहते हैं। उन जैसे लोगों का एक वर्ग है, जो कभी मानवाधिकार तो कभी अन्य विषयों को लेकर दुनिया से अलग राय रखकर विवादों को पैदा करने में विश्वास रखते हैं। आतंकवाद से आज पूरी दुनिया जूझ रही है। दुर्भाग्य से आतंकवाद कई बार एक समुदाय विशेष को अपना निशाना बनाकर उसका जीवन नारकीय बना देता है।
लपिड को यह पता होना चाहिए कि कश्मीरी पंडितों और यहूदियों ने आतंकवाद की जो त्रासदी झेली है, वह लोमहर्षक तो है ही साथ ही मानव सभ्यता के इतिहास में अभूतपूर्व है। इन दो समुदायों ने एक जैसी पीड़ा झेली, एक जैसे अत्याचार सहन किए, विस्थापन का असहनीय दर्द झेला, अपने परिजनों को खोया और उनका संघर्ष आज भी खत्म नहीं हुआ है।
'द कश्मीर फाइल्स' किसी को न तो नीचा दिखाती है और न ही किसी का महिमामंडन करती है। कश्मीरी पंडितों की त्रासदी को इस फिल्म ने दुनिया के सामने पेश किया लेकिन लपिड को सच हजम नहीं हो पाया। उन्होंने एक मेहमान होने के सामान्य शिष्टाचार का भी पालन नहीं किया। उनके देश तथा भारत के बीच प्रगाढ़ संबंधों की भी परवाह नहीं की और एक ऐसी टिप्पणी कर दी जो सरासर झूठ पर टिकी हुई थी। ऐसी अनर्गल टिप्पणी का दोनों देशों के संबंधों पर असर पड़ सकता था लेकिन इजराइली राजदूत तथा महावाणिज्य दूत ने लपिड के झूठ को खारिज कर कूटनीतिक समझदारी का परिचय दिया। 'द कश्मीर फाइल्स' को लेकर किसी भी किस्म का विवाद निराधार और अनर्गल है। लपिड जैसे लोगों में सच को देखने तथा उसे स्वीकार करने का नैतिक साहस होना चाहिए।