वेद प्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीति विश्लेषक हैं। वे प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया से जुड़े रहे हैं और उसके हिन्दी सेवा 'भाषा' के संस्थापक संपादक रहे हैं।Read More
तवांग में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच जो मामूली मुठभेड़ हुई है, वह क्या इस लायक थी कि उस पर हमारी संसद के कई घंटे बर्बाद किए जाएं? सीमा-क्षेत्रों में ऐसी फौजी झड़पें अक्सर होती ही रहती हैं। उन्हें तिल का ताड़ बनाने का तुक आखिर क्या है? ...
किसी विदेशी भाषा को पढ़ना एक बात है और उसको अपनी पढ़ाई का माध्यम बनाना बिल्कुल दूसरी बात है. किसी विदेशी भाषा को करोड़ों बच्चों पर थोपना कौनसी अक्लमंदी है? ...
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव इतना बढ़ गया है कि मंत्री हिना रब्बानी खार को काबुल जाकर बात करनी पड़ी. काबुल में पाक दूतावास के वरिष्ठ राजनयिक की हत्या का भी असफल प्रयास हुआ. ...
भारत के प्रवासी प्रायः उत्साही नौजवान ही होते हैं जो वहां पढ़ने जाते हैं, वे या तो वहीं रह जाते हैं या फिर यहां से अनेक सुशिक्षित लोग बढ़िया नौकरियों की तलाश में अमेरिका जा बसते हैं। ...
सर्वोच्च न्यायालय ने फिलहाल जो कानूनी सुधार सुझाया है, उसका कुछ असर जरूर होगा लेकिन भ्रष्टाचार को यदि जड़-मूल से खत्म करना है तो हमें कई अत्यंत कठोर कदम उठाने होंगे। ...
हमारे सैनिकों ने चीनी घुसपैठियों को जिस तरह से खदेड़ा है, उसके कारण उनका उत्साहवर्द्धन करने की बजाय हमारी संसद से उल्टा संदेश जाना कहां तक उचित है? ...
जातियों के नाम पर सेना की टुकड़ियों के भी नाम तुरंत बदले जाने चाहिए. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से घबराए अंग्रेज शासकों ने भारतीय लोगों को जातियों में बांटने की तरकीबें शुरू की थीं, उनमें से यह भी एक बड़ी तरकीब थी. ...