Sports Flashback: मिल्खा और एशियन गेम्स-1958 की वो ऐतिहासिक दौड़, जिसका फैसला देने में जजों को लगे आधे घंटे

By विनीत कुमार | Published: August 8, 2018 07:39 AM2018-08-08T07:39:33+5:302018-08-08T07:39:33+5:30

बंदूक की आवाज के साथ फाइनल दौड़ शुरू हुई। सभी 6 रनर अपनी पूरी ताकत लगाकर दौड़े लेकिन कांटे की टक्कर मिल्खा और अब्दुल खालिक के बीच ही थी।

milkha singh and asian games 1958 historic run against pakistan abdul khaliq in 200 meters | Sports Flashback: मिल्खा और एशियन गेम्स-1958 की वो ऐतिहासिक दौड़, जिसका फैसला देने में जजों को लगे आधे घंटे

मिल्खा सिंह

नई दिल्ली, 8 अगस्त:एशियन गेम्स-2018 का आगाज 18 अगस्त से हो रहा है। यह खेल इस बार इंडोनेशिया के जकार्ता और पालेमबैंग में आयोजित होने जा रहे हैं और निश्चित तौर पर भारतीय फैंस की नजरें भी 18वें एशियन गेम्स पर होंगी। भारत ने पिछली बार 2014 में इंचियोन में हुए गेम्स में 11 गोल्ड सहित कुल 57 मेडल जीते थे। ऐसे तो एशियन गेम्स के इतिहास में कई ऐसे भारतीय एथलीट्स रहे हैं जिन्होंने अपने खेल से पूरी दुनिया का दिल जीत, पर इनमें सबसे खास हैं मिल्खा सिंह।

आईए, हम आपको बताते हैं पूरी दुनिया में 'फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह के एशियन गेम्स की उस ऐतिहासिक दौड़ के बारे में, जिसने दर्शकों समेत जजों को भी चौंका दिया और जीत का फैसला सुनाने में उन्हें करीब 30 मिनट लग गये।

पाकिस्तान के अब्दुल खालिक से 'रेस'

एशियन गेम्स-1958 का आयोजन टोक्यो में हो रहा था और मिल्खा भी इसी में हिस्सा लेने के लिए तब जापान पहुंचे थे। हाल में 400 और 200 मीटर का एशियन रिकॉर्ड तोड़ कर मिल्खा इस एशियन गेम्स के पहले ही चर्चा में आ गये थे। पूरे एशिया में उनकी चर्चा हो रही थी और जाहिर है कैमरों और प्रेस की नजर भी उन पर थी। ये वही एशियन गेम्स भी था जहां से उनकी अब्दुल खालिक से प्रसिद्ध प्रतिद्वंद्विता शुरू हुई थी। 

उस एशियन गेम्स में मिल्खा 400 मीटर के जीत के दावेदार माने जा रहे थे और बहुत आसानी से उन्हें खेल के दूसरे दिन ऐसा कर भी दिया। मिल्खा ने केवल 46.6 सेकेंड के एशियन रिकॉर्ड के साथ यह जीत हासिल की। इसके बाद तीसरे दिन मिल्खा को 200 मीटर रेस में दौड़ना था और उनके सामने पाकिस्तानी खालिक बड़ी चुनौती के रूप में खड़े थे।

मिल्खा ने जीती खालिक से रोमांचक 200 मीटर की रेस

आखिरकार, गोली की आवाज के साथ फाइनल दौड़ शुरू हुई। सभी 6 रनर अपनी पूरी ताकत लगाकर दौड़े लेकिन कांटे की टक्कर तो आखिरकार मिल्खा और अब्दुल खालिक के बीच ही थी। यह बात इन दोनों को भी मालूम थी कि मुकाबला कड़ा होने जा रहा है।

मिल्खा अपनी किताब 'द रेस ऑफ माई लाइफ' में बताते हैं कि इस रेस में दौड़ने के साथ-साथ दोनों की नजरें एक-दूसरे पर भी थीं। ऐसा लग रहा था कि कोई भी बाजी मार सकता है लेकिन फिनिशिंग लाइन से ठीक पहले मिल्खा के दाएं पैर में खिंचाव आ गया और पूरी कोशिश करते हुए वे फिनिशिंग लाइन के ऊपर गिरे। ठीक उसी समय खालिक भी फिनिशिंग लाइन को पार कर गये।

जजों को फैसला देने में लगे 30 मिनट

दौड़ कुछ इस तरह से पूरी हुई कि किसी को कुछ समझ ही नहीं आया कि आखिर जीत किसकी हुई है। फिर क्या था, जजों ने कई तस्वीरों का काफी देर तक अलग-अलग एंगल से विश्लेषण किया और आखिरकार ये फैसला हुआ कि जीत मिल्खा सिंह की हुई है। इस जीत के साथ मिल्खा एशिया के सर्वश्रेष्ठ एथलीट बन गये। उस एशियन गेम्स में मिल्खा ने दो गोल्ड मेडल (400, 200 मीटर) जीते।

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