केतन गोरानिया का ब्लॉग: नए निवेशकों की उम्मीदें पूरी होंगी या पछताएंगे?
By केतन गोरानिया | Published: March 18, 2022 03:15 PM2022-03-18T15:15:41+5:302022-03-18T15:15:41+5:30
बहुत सारे नए निवेशकों के लिए, जिन्होंने कोई मंदी या शेयर बाजार की बड़ी प्रतिक्रिया नहीं देखी है, यह सतर्क रहने का समय है या अपने निवेश पर कम रिटर्न के साथ कुछ वर्षो के लिए स्टॉक बनाए रखने की योजना बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि जैसा ऊपर कहा गया है मार्केट बड़े करेक्शन या लंबे दौर के करेक्शन से गुजर सकता है।
कोविड महामारी की शुरुआत से, भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों के एक बिल्कुल नए वर्ग या समूह ने प्रवेश किया है और उन सभी को किसी भी मंदी का अनुभव नहीं है। भारतीय शेयर बाजार के इतिहास के पिछले 30 वर्षो में यह पहली बार है कि बेंचमार्क इंडेक्स मार्च 2020 के बाद से लगभग 22 महीनों तक काफी रफ्तार से बढ़ा है। सभी नए निवेशक शेयर बाजार की हर छोटी गिरावट पर खरीदने के आदी हैं और ऐसा करते हुए उन्होंने पिछले 2 वर्षो में अच्छा मुनाफा कमाया है।
अब मौजूदा स्थिति में, सवाल यह है कि क्या वे निवेशक पिछले 2 वर्षो में जिस तरह से पैसा कमाते आए हैं, उसी तरह से कमा पाएंगे? क्या वे बाजार की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अगले एक साल तक निवेश करना जारी रखेंगे? क्या वे अपने पैसे खो देंगे और पछताएंगे? और अगर वे पैसा नहीं बना पाते हैं तो क्या भविष्य में शेयर बाजार में निवेश करते रहेंगे या बाजार से दूर भागेंगे जैसा कि अतीत में हो चुका है।
अतीत की बात करें तो तीन ऐतिहासिक घटनाएं हैं जब शेयर बाजार में ऐसा ही उन्माद पैदा हुआ था। 1991 में हर्षद मेहता घोटाला, 2000 में टेक बबल और 2008 में लेहमैन का पतन। निवेशकों के उन्माद के बाद शेयर बाजार में गिरावट की पिछली तीन घटनाओं के बीच कोई प्रत्यक्ष तुलना नहीं है, सिवाय इसके कि आज भी वैसी ही बड़ी संख्या में प्रतिभागियों की शेयर बाजार में भागीदारी है।
2009 से अब तक सभी विश्व बाजारों को केंद्रीय बैंकों द्वारा अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त तरलता डालकर पोषित किया गया, जो दुनिया के शेयर बाजारों को उछाल में मदद कर रहा था। कोविड के कारण दुनिया में कर्ज की दर बहुत तेजी से बढ़ी है और वैश्विक कर्ज 226 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया है।
दुनिया भर में मुद्रास्फीति दर उच्चतम स्तर पर है। संयुक्त राज्य अमेरिका में यह 7 प्रतिशत है जो पिछले 40 वर्षो में सबसे अधिक है। सभी केंद्रीय बैंकों के रुख से यह साफ दिखता है कि कुछ समय के लिए मुद्रा की आपूर्ति में किफायत बरती जाएगी। कम ब्याज दर और उच्च ऋण वाले दौर में दुनिया परेशान नहीं हुई, लेकिन उच्च ब्याज दरों के साथ भारी महंगाई से बहुत सी अर्थव्यवस्थाओं को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा या उनकी मुद्रा का अवमूल्यन होगा तथा महंगाई और बढ़ेगी।
अब इस उच्च ऋण के जीडीपी अनुपात वाले परिदृश्य में, भारी महंगाई और ब्याज दर के साथ अर्थव्यवस्थाओं के लिए बिना बाधाओं के विकास करना मुश्किल होगा, जिससे आर्थिक परिदृश्य डरावना हो जाता है। विशेष रूप से रूस के यूक्रेन पर हमले की स्थिति के बाद, जो यदि लंबे समय तक बनी रहती है, तो मुद्रास्फीति का दबाव बहुत अधिक होगा, विशेष रूप से भारत पर, क्योंकि भारत पेट्रोल और डीजल का एक बड़ा आयातक है।
जब तेल 80 डॉलर पर था, तभी से महंगाई उच्च स्तर पर है। अब तो रूस यूक्रेन का वर्तमान युद्ध रुक भी जाता है, तब भी बहुत अधिक महंगाई बढ़ेगी। वर्ष 2022 में तेल की कीमतें 125 डॉलर तक जाने की भविष्यवाणी विश्व के अग्रणी संस्थानों ने की थी। रूस-यूक्रेन युद्ध को भारतीय बाजार केवल एक अल्पकालिक घटना मान रहा है लेकिन पुतिन की कार्रवाई को देखते हुए यह आकलन गलत भी हो सकता है। पुतिन लंबे समय तक इस युद्ध को जारी रख सकते हैं और इसमें अन्य देश यूक्रेन के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से युद्ध में शामिल हो सकते हैं।
इससे हालात और ज्यादा बिगड़ सकते हैं, यूरोप और दुनिया को ऊर्जा आपूर्ति में बहुत अधिक दिक्कत पैदा हो सकती है तथा विश्व अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है। सभी देशों ने अपने हितों की रक्षा करने और निर्यात रोकने की कार्रवाई शुरू कर दी है, जैसे मलेशिया ने पाम तेल के निर्यात पर रोक लगा दी है। उर्वरक की कीमतें आसमान छू रही हैं और गेहूं व बीज की कीमतें उच्च स्तर पर पहुंच रही हैं जिससे खाद्य पदार्थो की महंगाई बढ़ सकती है।
भारत सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में वृद्धि को ङोल पाना भी मुश्किल है। इसके परिणामस्वरूप भारत के चालू खाता घाटे पर दोहरी मार पड़ेगी। चालू खाता घाटा तेजी से बढ़ेगा (क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्याज दर में वृद्धि के बीच धन प्रवाह धीमा होने की उम्मीद है) और सरकार द्वारा तेल की कीमतों में वृद्धि रोकने की कोशिश से राजकोषीय घाटे में वृद्धि होगी। प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत में 10 डॉलर की वृद्धि से भारत का चालू खाता घाटा लगभग 0.5 प्रतिशत बढ़ जाता है और वर्तमान भू-राजनीतिक संघर्ष के साथ निर्यात भी प्रभावित होगा।
भारत के लिए बड़ी उम्मीद अंतरराष्ट्रीय बाजारों से स्टार्ट-अप और प्रौद्योगिकी कंपनियों में आमद को आकर्षित करने की है, लेकिन दुनिया भर में प्रौद्योगिकी शेयरों में गिरावट के साथ भारत के लिए इस तरह के निवेश को बड़े पैमाने पर आकर्षित करना कठिन हो जाएगा। मुद्रास्फीति के इस माहौल में यह आर्थिक रूप से भारत के लिए रुपए के अवमूल्यन व ज्यादा कठिनाइयों का कारण बन सकता है।
बहुत सारे नए निवेशकों के लिए, जिन्होंने कोई मंदी या शेयर बाजार की बड़ी प्रतिक्रिया नहीं देखी है, यह सतर्क रहने का समय है या अपने निवेश पर कम रिटर्न के साथ कुछ वर्षो के लिए स्टॉक बनाए रखने की योजना बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि जैसा ऊपर कहा गया है मार्केट बड़े करेक्शन या लंबे दौर के करेक्शन से गुजर सकता है।
शेयर बाजार एक आसान निवेश विकल्प नहीं है, इसके लिए बड़े कौशल, विेषणात्मक क्षमताओं और अनुशासनात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। पिछले दो वर्षो में नए निवेशकों ने आसानी से पैसा कमाया है और उनमें से कई में उपरोक्त गुणों की कमी है। उनके लिए बेहतर होगा कि वे शेयर बाजार से दूर रहें या लंबी अवधि के लिए एक्सपर्ट की सलाह या म्यूचुअल फंड के जरिये निवेश करें।