समझिए इवेंट होराइजन टेलिस्कोप से ली गई ब्लैक होल की तस्वीर अभूतपूर्व वैज्ञानिक उपलब्धि क्यों हैं?

By डॉ मेहेर वान | Published: April 27, 2019 06:00 PM2019-04-27T18:00:07+5:302019-04-27T19:06:16+5:30

ब्लैक होल की आकाश में स्थिति: सबसे पहले तो यह तय कर पाना आसान नहीं है कि ब्लैक होल कहाँ है? चूँकि यह प्रकाश को दबोच लेता है और हम किसी भी चीज को तब देख पाते हैं जब वह वस्तु प्रकाश को या तो उत्सर्जित करती है या परावर्तित करती है।

why black hole image taken by event horizon telescope is historical scientific feat | समझिए इवेंट होराइजन टेलिस्कोप से ली गई ब्लैक होल की तस्वीर अभूतपूर्व वैज्ञानिक उपलब्धि क्यों हैं?

इवेंट होराइजन टेलीस्कोप से वैज्ञानिकों द्वारा लगी गई ब्लैक होल की पहली वास्तविक तस्वीर

Highlightsवैज्ञानिकों ने 10 अप्रैल को ब्लैक होल की पहली वास्तविक तस्वीर जारी की।एमआईटी की छात्रा कंप्यूटर साइंस की पीएचडी की छात्रा केटी बौमन ने एक अल्गोरिदम विकसित किया जिससे यह तस्वीर हासिल की जा सकी।

जब “इवेंट होराइजन टेलीस्कोप” (Event Telescope Horizon) की टीम ने 10 अप्रैल 2019 को पहली बार ब्लैक होल (Black Hole) का सच्चा चित्र प्रस्तुत किया तो पूरी दुनिया वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि पर ख़ुशी से झूम उठी। जिन्हें यह मालूम था कि कुछ ही समय में ब्लैक होल की सच्ची छवि दुनिया के सामने पेश की जाने वाली है वह बड़ी बेसब्री से वैज्ञानिकों की प्रेस कॉन्फ्रेंस का इंतज़ार कर रहे थे।

ब्लैक होल की यह छवि कई कारणों से महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण थी। इस प्रयोग में आइन्स्टीन की “जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी” (General Theory of Relativity) दांव पर लगी थी, साथ ही वह वैज्ञानिक ज्ञान भी दांव पर लगा था जो पिछले कई दशकों में ब्लैक होल से बारे में अर्जित किया गया था।

ब्लैक होल की यह छवि जनता के सामने लाने से पहले वैज्ञानिकों ने लम्बे समय तक यह सुनिश्चित किया था कि उनके प्रयोगों और प्रक्रिया में कोई कमी तो नहीं रह गई। इस प्रक्रिया में पूरी दुनिया के वैज्ञानिक कई दशकों से लगे हुए थे।

अतः जब वैज्ञानिक अपने प्रयोग और प्रक्रिया की सत्यता और त्रुटिहीनता के बारे सुनिश्चित हो गए तब यह छवि छह स्थानों पर प्रेस वार्ता करके पूरी दुनिया के समक्ष प्रस्तुत की गई, ताकि प्रक्रिया में शामिल सभी वैज्ञानिकों और देशों को सफलता का पूरा क्रेडिट मिले।

पूरी दुनिया की मीडिया ने इस घटना को प्रमुख खबर बनाया, क्योंकि यह मानव इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। आइए समझते इस तस्वीर का वैज्ञानिक महत्व और क्यों यह एक ऐतिहासिक परिघटना है। 

यह मानव इतिहास की महानतम घटना क्यों है?

सन 1784 में अंग्रेज खगोलविद ‘जॉन मिशेल’ (John Michell) ने एक ऐसे तारे की परिकल्पना की जो कि इतना भारी और अधिक घनत्व वाला था कि अगर प्रकाश भी उसके करीब जाए तो वह इस तारे के चंगुल से बाहर नहीं आ सकता। यहाँ प्रकाश का उदाहरण इसलिए दिया जाता है कि प्रकाश का स्थायित्व में द्रव्यमान शून्य और गतिमान अवस्था में अत्यधिक सूक्ष्म होता है। प्रकाश से हल्की वस्तु की कल्पना नहीं की जा सकती।

इसके बाद आइन्स्टीन ने 1915 में “जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी” (General Theory of Relativity) की स्थापना की जिसका इस्तेमाल आज खगोलशास्त्र से लेकर अंतरिक्ष विज्ञान तक के तमाम विषयों को समझने में और उनका विश्लेषण करने में होता है। अनगिनत प्रयोगों और गणनाओं में आइन्स्टीन की “जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी” अब तक सही और सटीक साबित होती रही है।

“जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी” आने के कुछ हो महीनों बाद वैज्ञानिक कार्ल स्वार्जचाइल्ड ने आइन्स्टीन के समीकरणों को हल करके कुछ नए निष्कर्ष निकाले। इन्हीं निष्कर्षों में ब्लैक होल के केंद्र से एक ऐसी दूरी का मान निकलता है जिसके अन्दर आइन्स्टीन के समीकरण काम नहीं करते। इसे वैज्ञानिक भाषा में सिंगुलैरिटी कहते हैं।

बाद में इस दूरी को ‘स्वार्जचाइल्ड त्रिज्या’ कहा गया और इससे जो वृत्त बना उसे “इवेंट होराइजन” कहा गया। ऐसी गणनाएं की गईं कि ब्लैक होल ‘स्वार्जचाइल्ड त्रिज्या’ के तीन गुना दूरी से पदार्थ को और ‘स्वार्जचाइल्ड त्रिज्या’ की डेढ़ गुना दूरी से प्रकाश को अपनी और खींचकर निगल जाता है। इसके बाद पिछली सदी में सैद्धांतिक स्तर पर ब्लैक होल के बारे में बहुत सारी गणनाए की गईं जिनका मूल आधार आइन्स्टीन के समीकरण थे।

चूँकि आइन्स्टीन से वह समीकरण खगोलविज्ञान और अन्तरिक्ष विज्ञान से लेकर विज्ञान की अन्य शाखों में इस्तेमाल हो रहे थे और सटीक साबित हो रहे थे इसलिए वैज्ञानिकों में उत्सुकता थी कि अगर उन्हें ‘इवेंट होराइजन’ नहीं दिखा तो आइन्स्टीन की “जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी” असफल हो जायेगी और पूरी भौतिकी में भूचाल आएगा।

यह सब अब तक गणनाओं के स्तर पर ही था, इसलिए यहाँ एक सधे हुए सटीक प्रयोग की आवश्यकता थी जिसमें कुछ ठोस प्रमाण मिलें। इस समस्या से निबटने के लिए विश्व भर के वैज्ञानिकों ने एक संगठन बनाया और एक साथ काम करने का निर्णय लिया।

ब्लैक होल की तस्वीर लेना बेहद मुश्किल क्यों था?

ब्लैक होल की छवि लेना की वैज्ञानिक समस्या कोई साधारण समस्या नहीं थी। इसमें कई ऊंचे स्तर की रुकावटें थीं, जिन्हें बिन्दुवार समझना चाहिए-

1- ब्लैक होल की प्रकृति: वैज्ञानिक “इवेंट होराजन” देखना चाह रहे थे। इवेंट होराइजन वह जगह है जहां तक ब्लैक होल के आसपास प्रकाश पहुँच सकता है और ब्लैक होल द्वारा खींच नहीं लिया जाता। इस प्रकार यह प्रकाश ब्लैक होल को बाहर से एक तरह से ऐसे ढँक लेता है जैसे ब्लैक होल ने प्रकाश के कपड़े पहन लिए हों।

ब्लैक होल को नहीं देखा जा सकता मगर इसके चारों और फैले प्रकाश की उन किरणों को देखा जा सकता है जो बस इवेंट होराइजन को छूकर निकल जाती हैं। अतः यह तय था कि ब्लैक होल को देखना संभव नहीं है मगर इवेंट होराइजन में प्रकाश से लिपटे हुए ब्लैक होल को देखना संभव है।

इवेंट होराइजन के साथ ब्लैक होल की फोटो लेने का काम आसान नहीं था। इवेंट होराइजन में लिपटी प्रकाश किरणों को भी अपने टेलेस्कोप्स में समेट पाना आसान नहीं होता जिसे हम आगे समझेंगे।

2- ब्लैक होल की आकाश में स्थिति: सबसे पहले तो यह तय कर पाना आसान नहीं है कि ब्लैक होल कहाँ है? चूँकि यह प्रकाश को दबोच लेता है और हम किसी भी चीज को तब देख पाते हैं जब वह वस्तु प्रकाश को या तो उत्सर्जित करती है या परावर्तित करती है।

ब्लैक होल की स्थिति जानने में ही वैज्ञानिकों को कई दशक लगे। अनेकों विशालकाय टेलेस्कोपों की सहायता से अनगिनत वैज्ञानिक पूरे आकाश की निगरानी रखते हैं। कई वर्षों तक एक गैलेक्सी में कई तारों का अध्ययन करने के बाद उन्हें पता चला कि वे तमाम तारे किसी ख़ास केंद्र बिंदु के चारों और चक्कर लगा रहे हैं जो कि चमकीला नहीं है।

यह गैलेक्सी M87 थी। इसके तारे विशालकाय हैं। इतने भारी तारे खुद से कई गुना भारी पिंड के चारों और ही चक्कर लगा सकते हैं और वैज्ञानिकों ने गणना की कि यह ब्लैक होल होना चाहिए। इस तरह लम्बी और थकाऊ गणनाओं के बाद ब्लैक होल की संभव स्थिति पता चली।

3- पृथ्वी से दूरी: गणनाओं और प्रयोगों के आधार पर यह पाया गया कि यह ब्लैक होल पृथ्वी से 5.5 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर है। इस बात का मतलब यह है कि यह ब्लैक होल M87 गैलेक्सी में धरती से इतना दूर है कि प्रकाश को इससे धरती तक आने में 5.5 करोड़ वर्ष लग जाते हैं।

इसका एक मतलब यह भी है हमने जिस प्रकाश के साथ इसकी छवि खींची है वह प्रकाश इस ब्लैकहोल से 5.5 करोड़ साल पहले चला था। मतलब जो छवि हमारे पास है वह इस ब्लैक होल की 5.5 करोड़ साल पुरानी फोटो है। यह तो हम सब जानते हैं कि दूर होते जाने पर वस्तुएं छोटी दिखाई देने लगती हैं। इसी प्रकार से यह ब्लैक होल भी पृथ्वी से बहुत दूर होने के कारण बहुत छोटा दिखाई दे रहा था।

वैज्ञानिकों ने गणना की कि धरती से यह इतना छोटा दिखाई देता कि इसे देखने के लिए घरती के आकार के बराबर के दूरदर्शी की ज़रूरत पड़ती। धरती के आकार के बराबर का दूरदर्शी बना पाना मानव के हाथ से बाहर की बला है।

वैज्ञानिक कई सालों तक यह सोचकर परेशान रहे कि कैसे इस कठिनाई से पार पाया जाए। फिर वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह बात सही है कि हम पृथ्वी के आकार का दूरदर्शी नहीं बना सकते लेकिन पूरी पृथ्वी पर जगह जगह लगे टेलेस्कोपों को एकजुट करके पृथ्वी के आकार का एक आभासी टेलेस्कोप बनाया जा सकता है।

खगोल विज्ञान में यह तकनीक नयी नहीं है। भारत में ही गैलेक्सियों को देखने के लिए लगा GMRT यानी जाइंट मीटरवेव रेडियो टेलेस्कोप पूना के पास लगभग 25 किमी में फैला है, जिसमे छोटे छोटे कई टेलेस्कोप लगे हैं और उन सब टेलेस्कोपों को मिलाकर एक विशालकाय 25 किमी लम्बा टेलेस्कोप बनता है जो अन्तरिक्ष में दूरदूर तक फैले छोटे छोटे दिखने वाले पिंडों की फोटो खींचने में मदद करता है। इसमें कई टेलेस्कोपों से ली गई छवियों को एकसाथ मिलकर एक फोटो बनाई जाती है।

यह एक पुरानी और पूरी तरह से स्थापित तकनीक है। हालांकि धरती जितने आभासी टेलेस्कोप के लिए कुछ अन्य तकनीकी कठिनाइयां थी जिन्हें दूर किया गया।

4-  टेलीस्कोप का डिजाइन: दुनिया के तमाम देशों के वैज्ञानिकों ने मिलकर दुनिया भर में फैले कई टेलीस्कोपों का एक समूह बनाया और उन्हें एक साथ सिंक्रोनाइज़ किया। एक और समस्या यह थी कि पृथ्वी तेज रफ़्तार से अपनी अक्ष पर घूमती है इसलिए छवियों में इस घूर्णन का प्रभाव भी ख़त्म करना था। इसके लिए वैज्ञानिकों ने कुछ दशक तक गणनाएं कीं ताकि प्रयोगों से त्रुटियों को हटाया जा सके।

ख़ास समयों पर दुनियां भर के कई टेलीस्कोपों ने उस ख़ास बिंदु की फ़ोटोज़ लीं जहाँ ब्लैक होल होने की गणनाएं हुई थी। इस तरह कई हज़ार टेराबाइट का डेटा उत्पन्न हुआ। अब इस भारीभरकम डेटा को एक साथ मिलाकर देखने की बारी थी। इस डेटा को मिलाने का काम मैसच्यूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी की कंप्यूटर साइंस की पीएचडी की छात्रा केटी बौमन ने किया। इसके लिए उन्हें एक अल्गोरिदम बनानी पड़ी।

इस प्रक्रिया में वैज्ञानिकों में बहुत ख़ास ख्याल रखा कि वह कुछ ऐसी चीज़ न देख लें जो वह देखना चाह रहे थे बल्कि वह देखें जो कि वहां उपस्थित था। लम्बे संघर्ष के बाद जब वैज्ञानिक इस बात को लेकर तय हो गए कि सारे टेलेस्कोपों की मदद से ब्लैक होल रिंग ही बन सकती है तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।

इसके अलावा तमाम तकनीकी और वैज्ञानिक चुनैतियाँ वैज्ञानिकों के समक्ष थीं जिन्हें आम जनता को समझाना बहुत मुश्किल है। 

प्रकाश के घेरे में छिपा अंधाकरमय ब्लैक होल

काश के घेरे में छिपा ब्लैकहोल देखा जा सकता है। (फाइल फोटो)
काश के घेरे में छिपा ब्लैकहोल देखा जा सकता है। (फाइल फोटो)
ऊपर दी गयी फोटो में एक प्रकाशिक अंगूठीनुमा आकार में काला केंद्र छुपा हुआ है। यह ठीक वैसे ही है जिसकी गणनायें वैज्ञानिक एक सदी से भी अधिक समय से कर रहे थे। इस छवि में साफ़ देखा जा सकता है कि प्रकाशिक इवेंट होराइजन में अंधकारमय ब्लैक होल छुपा हुआ है।

हालांकि इस प्रक्रिया में तमाम बड़ी वैज्ञानिक रुकावटें थीं और ब्लैक होल की छवि उतारना असंभव माना जाता रहा लेकिन वैज्ञानिकों ने चतुराई से यह कर दिखाया। दुनिया भर के विद्वान इसे मानवजाति की सर्वकालिक सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिन रहे हैं।

विज्ञान का सर्वकालिक काम असंभव लगने वाली बात को संभव बनाना ही तो है। और चुनौती जितनी बड़ी हो जीत उतनी ही बड़ी मानी जाती है। अंततः यह ब्लैक होल की पहली छवि है समय आने पर बेहतर छवियाँ भी हम मानव खींच पायेंगे ऐसा विश्वास है। 

English summary :
This image of black hole was important and challenging for many reasons. In this experiment, Einstein's "General Theory of Relativity" was at stake, along with that scientific knowledge was also at stake, which had been earned about black holes over the last several decades.


Web Title: why black hole image taken by event horizon telescope is historical scientific feat

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