शशिधर खान का ब्लॉग: म्यांमार में लोकतंत्र बहाली के नहीं दिख रहे आसार

By शशिधर खान | Published: February 11, 2023 05:13 PM2023-02-11T17:13:45+5:302023-02-11T17:13:45+5:30

म्यांमार में लोकतंत्र के इतिहास का पहला अध्याय पूरा होने से पहले ही समाप्त हो गया। लोकतंत्र बहाली का गला दबाए रखने का तीसरा वर्ष 2023 करीब आने से पहले ही जनरलों ने सत्ता में जनभागीदारी के आसार खत्म करने के उपाय शुरू कर दिए।

There is no possibility of restoration of democracy in Myanmar | शशिधर खान का ब्लॉग: म्यांमार में लोकतंत्र बहाली के नहीं दिख रहे आसार

शशिधर खान का ब्लॉग: म्यांमार में लोकतंत्र बहाली के नहीं दिख रहे आसार

म्यांमार में लोकतंत्र बहाली के लिए सड़क पर उतरी जनता के दमन के लिए सैनिक सरकार ने पहले इमरजेंसी शासन की अवधि छह महीने बढ़ाई और फिर मार्शल लॉ लागू कर दिया. इसका अंदाजा म्यांमार के अंदर और पड़ोसी भारत समेत दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को पहले से ही था। म्यांमार में न तो सैनिक सरकार की तानाशाही नई है, न ही लोकतंत्र के आंदोलन को कुचलने के लिए मार्शल लॉ और फौजी जनरलों के सत्ता पर काबिज रहने के लिए इमरजेंसी का ऐलान।

वास्तव में म्यांमार में लोकतंत्र कायदे से स्थापित कभी हुआ ही नहीं। भारत और पश्चिमी देशों के दबाव में चुनाव जरूर हुए मगर फौजी शासन का अप्रत्यक्ष रूप से दबदबा बना रहा और किसी भी निर्वाचित सरकार के हाथ में जनरलों ने सत्ता नहीं जाने दी। फरवरी महीने में ही 2021 में आंग सान सू की के नेतृत्ववाली एनएलडी (नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी) सरकार को अपदस्थ कर सू की समेत सभी लोकतंत्र समर्थक नेताओं को जेल में डाल दिया गया।

म्यांमार की सेना सैनिक जुंटा के नाम से जानी जाती है। सैनिक जुंटा के प्रमुख जनरल मिन आंग हलांग ने आंग सान सू की और उनके संगठन के नेताओं, मंत्रियों पर कई आधारहीन आरोप लगाकर उनके खिलाफ मुकदमा चलाना शुरू कर दिया। उसी समय अनुमान लग गया कि अब म्यांमार में लोकतंत्र की वापसी अनिश्चित समय तक नहीं हो सकती। नोबल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू की ने सैनिक तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाने के लिए अपनी जवानी के दिन या तो जेल में गुजारे हैं अथवा घर में नजरबंद रहकर।

संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, भारत और प्रमुख पश्चिमी प्रेक्षकों की देखरेख में सैनिक जुंडा को मजबूरन 2015 में आम चुनाव कराना पड़ा था। 49 वर्षों के सैनिक शासन के अंत से दमित, पीड़ित म्यांमार की जनता ने खुली हवा में सांस ली। लेकिन फौजी जनरलों ने खुद को सहज महसूस नहीं किया और पूरे कार्यकाल तक आंग सान सू की पर शिकंजा कसने में कोई कसर नहीं छोड़ी ताकि चुनी हुई सरकार स्वतंत्र रूप से निर्णय न ले सके।

आखिरकार जब आंग सान सू की के दूसरा कार्यकाल शुरू होने का समय आ गया तो तख्तापलट करके फिर से दुनिया भर में बदनाम अपनी तानाशाही परंपरा कायम कर दी। म्यांमार में लोकतंत्र के इतिहास का पहला अध्याय पूरा होने से पहले ही समाप्त हो गया। लोकतंत्र बहाली का गला दबाए रखने का तीसरा वर्ष 2023 करीब आने से पहले ही जनरलों ने सत्ता में जनभागीदारी के आसार खत्म करने के उपाय शुरू कर दिए। म्यांमार में जनरल सत्ता में बने रहने के लिए अपनी ही जनता को गुमराह करते हैं, धूर्तता, चालाकी वाले तरीके अपनाते हैं।

Web Title: There is no possibility of restoration of democracy in Myanmar

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