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श्रीलंकाः राष्ट्रपति सिरिसेना को जबर्दस्त झटका, संसद ने किया प्रधानमंत्री राजपक्षे के खिलाफ मतदान

By भाषा | Updated: November 14, 2018 11:57 IST

जयसूर्या ने राजपक्षे समर्थकों के विरोध के बीच घोषणा करते हुए कहा, ‘‘मैं स्वीकार करता हूं कि सरकार को बहुमत नहीं है।’’ 

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कोलंबो, 14 नवंबरः श्रीलंका की संसद ने बुधवार को नव नियुक्त प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की सरकार के खिलाफ मतदान किया। इससे राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना को जबर्दस्त झटका लगा है। संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या ने घोषणा की कि संसद ने प्रधानमंत्री राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। जयसूर्या ने राजपक्षे समर्थकों के विरोध के बीच घोषणा करते हुए कहा, ‘‘मैं स्वीकार करता हूं कि सरकार को बहुमत नहीं है।’’ 

श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना को मंगलवार को उस वक्त जोरदार झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग करने के उनके विवादित फैसले को पलटते हुए पांच जनवरी को प्रस्तावित मध्यावधि चुनाव की तैयारियों पर विराम लगा दिया। इससे बर्खास्त श्रीलंकाई प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को जबर्दस्त मजबूती मिली है। 

प्रधान न्यायाधीश नलिन पेरेरा की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की एक पीठ ने संसद भंग करने के सिरिसेना के नौ नवंबर के फैसले के खिलाफ दायर तकरीबन 13 और उसके पक्ष में दायर पांच याचिकाओं पर दो दिन की अदालती कार्यवाही के बाद यह व्यवस्था दी। राष्ट्रपति ने विवादित कदम उठाते हुए कार्यकाल पूरा होने के तकरीबन दो साल पहले ही संसद भंग कर दी थी।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि संसद भंग करने का सिरिसेना का फैसला सात दिसंबर तक निलंबित रहेगा और अदालत अगले महीने कोई अंतिम व्यवस्था देने से पहले राष्ट्रपति के फैसले से जुड़ी तमाम याचिकाओं पर विचार करेगी।

शीर्ष अदालत के फैसले का मतलब है कि संसद बुलाई जा सकती है और यह पता लगाने के लिए शक्ति परीक्षण कराया जा सकता है कि 225 सदस्यीय संसद में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री महिन्दा राजपक्षे के पास बहुमत है या नहीं।

न्यायालय के फैसले के बाद संसद अध्यक्ष कारू जयसूर्या ने बुधवार को संसद का सत्र बुलाया है। जयसूर्या के कार्यालय से जारी विज्ञप्ति में कहा गया, ‘‘अध्यक्ष की ओर से एतद द्वारा सूचना दी जाती है कि संसद की बैठक कल 14 नवंबर को सुबह 10 बजे होगी। सभी सम्मानित सदस्य सत्र में शामिल हों।’’ 

सिरिसेना के सामने जब स्पष्ट हो गया कि रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर प्रधानमंत्री बनाए गए महिंदा राजपक्षे के पक्ष में संसद में बहुमत नहीं है तो उन्होंने संसद भंग कर दी थी। साथ ही, उन्होंने पांच जनवरी को संसद का मध्यावधि चुनाव कराने के आदेश जारी कर दिया। इससे देश अभूतपूर्व संकट में फंस गया।

शीर्ष अदालत ने यह भी व्यवस्था दी कि सिरीसेना के फैसले से जुड़ी सभी याचिकाओं पर अब चार, पांच और छह दिसंबर को सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट की आज की व्यवस्था से 67 साल के राष्ट्रपति की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को चोट पहुंच सकती है।

यूनाइटेड नेशनल पार्टी और जनता विमुक्ति पेरामुना समेत प्रमुख राजनीतिक पार्टियां सिरिसेना के फैसले के खिलाफ सोमवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। याचिकाकर्ताओं में स्वतंत्र चुनाव आयोग के एक सदस्य रत्नाजीवन हुले भी शामिल हैं। उन्होंने राष्ट्रपति के कदम के खिलाफ मौलिक अधिकार से जुड़ी याचिकाएं दायर कीं।

मंगलवार को सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से पेश अटार्नी जनरल जयंता जयसूर्या ने सिरिसेना के कदम को उचित ठहराया और कहा कि राष्ट्रपति की शक्तियां साफ और सुस्पष्ट हैं और उन्होंने संविधान के प्रावधानों के अनुरूप संसद भंग की है। जयसूर्या ने सभी याचिकाएं रद्द करने का आग्रह किया और कहा कि राष्ट्रपति के पास संसद भंग करने की शक्तियां हैं।

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