संकट में मुस्कुराइए, हमारे पुर्वज भाी यही करते थे
By भाषा | Updated: May 31, 2021 17:35 IST2021-05-31T17:35:45+5:302021-05-31T17:35:45+5:30

संकट में मुस्कुराइए, हमारे पुर्वज भाी यही करते थे
लूसी रेफील्ड, ब्रिस्टल विश्वविद्यालय
ब्रिस्टल (ब्रिटेन), 31 मई (द कन्वरसेशन) हममें से ज्यादातर लोगों को पिछले 12 महीनों के दौरान एक अच्छी सी मुस्कुराहट और खुलकर ठहाके लगाने की जरूरत महसूस होती रही, यही वजह है कि पहले लॉकडाउन के समय पर नेटफ्लिक्स पर डरावनी फिल्मों की तलाश करने वालों की संख्या में गिरावट आई और अब स्टैंड-अप कॉमेडी से जुड़े कार्यक्रमों के दर्शकों में भारी उछाल देखा गया।
सोशल मीडिया की दुनिया में, वायरस से जुड़ी बातों का मजाक उड़ाने वाले अकाउंट को भी बहुत लोगों ने फॉलो किया है जैसे क्वेंटिन क्वारेंटिनो और रेडिट थ्रेड कोरोना आदि। कोरोनावायरसमीम्स जैसे अकाउंट की लोकप्रियता पिछले एक साल में बढ़ी है।
हमने जूम मीटिंग्स, हाथ धोने के गाने और घर में ही बाल काटने को लेकर मजाक करने में काफी समय बिताया है। लेकिन ऐसा क्या है कि हम एक पल में मरने वालों की बढ़ती संख्या के बारे में जानकर घबरा जाते हैं और दूसरे ही पल दोस्त द्वारा भेजा वीडियो देखकर हंसने लगते हैं, यह परिवर्तन कैसे होता है?
अपने करियर का अधिकांश समय हंसी और हास्य का अध्ययन करने में बिताने वाले एक विद्वान के रूप में, मुझे अक्सर हास्य से जुड़े आश्चर्यजनक पहलू देखने को मिलते हैं। मैंने 16वीं सदी के फ़्रांस में इतालवी कॉमेडी और इसकी स्वीकार्यता, धर्म के युद्धों में हँसी के राजनीतिक परिणाम और आज के हास्य के मुख्य सिद्धांतों के ऐतिहासिक पूर्व अनुभवों का अध्ययन किया है।
मेरे अधिकांश शोधों से मजेदार बातों का खुलासा होता है कि कैसे कठिनाई के समय में हास्य हमें लुभाता है। लेकिन महामारी के इस समय ने वास्तव में उन भूमिकाओं को बढ़ा दिया है जो कॉमेडी निभा सकती है और यही वजह है कि हास्य पर हमारी निर्भरता बढ़ गई।
प्राचीन रोम में हास्य
आपदा के समय हंसने की हमारी जरूरत कोई नई बात नहीं है। प्राचीन रोम में, ग्लैडिएटर अपनी मृत्यु के लिए जाने से पहले बैरक की दीवारों पर विनोदी भित्तिचित्र छोड़ देते थे। प्राचीन यूनानियों ने भी घातक बीमारी पर हंसने के नए तरीके खोजे। और १३४८ में ब्लैक डेथ महामारी के दौरान, इतालवी गियोवन्नी बोकाशियो ने डेकैमेरोन लिखा, जो मज़ेदार कहानियों का एक संग्रह है।
हास्य के साथ उपहास से बचने की आवश्यकता भी उतनी ही प्राचीन है। 335 ईसा पूर्व में, अरस्तू ने किसी भी दर्दनाक या विनाशकारी चीज पर हंसने के खिलाफ सलाह दी थी। रोमन शिक्षक क्विंटिलियन ने भी हँसी और उपहास के बीच बहुत महीन रेखा की बात कही थी। इसे अभी भी आम तौर पर एक सामान्य स्थिति के रूप में स्वीकार किया जाता है कि हास्य से किसी को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए, विशेष रूप से तब जब हंसने की वजहें पहले से ही कमजोर हों।
जब हँसी और उपहास के बीच की सीमा का सम्मान किया जाता है, तो हास्य हमें आपदा से उबरने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह ऐसे लाभ प्रदान करता है जो गंभीर परिस्थितियों में हास्य की तलाश करने की हमारी प्रवृत्ति की व्याख्या करते हैं, विशेष रूप से शारीरिक और मानसिक सेहत को ठीक रखने की हमारी भावना को बढ़ाने के संदर्भ में।
संकट के समय हास्य कैसे मदद करता है
हँसी एक महान कसरत के रूप में कार्य करती है (सौ बार हंसने से उतनी ही कैलोरी नष्ट होती हैं, जितनी 15 मिनट व्यायाम बाइक चलाने से नष्ट होती हैं), हंसी हमारी मांसपेशियों को आराम देने और रक्त संचार बढ़ाने में मदद करती है। व्यायाम और हँसी का संयोजन - जैसे कि तेजी से लोकप्रिय हो रहा ‘‘लाफ्टर योग’’ - अवसाद के रोगियों को भी महत्वपूर्ण लाभ प्रदान कर सकता है।
हंसी तनाव हार्मोन को भी कम करती है और एंडोर्फिन को बढ़ाती है। कठिन समय में, जब हमारे पास एक दिन में हजारों विचार होते हैं, तो हंसी-मजाक हमारे दिमाग को वह राहत प्रदान करता है जिसकी हमें सख्त जरूरत होती है।
ठीक उसी तरह, हम संकट में हास्य तलाश करते हैं क्योंकि एक ही समय में डर और खुशी महसूस करना मुश्किल होता है, और अक्सर, इन भावनाओं के संयोजन से हमें रोमांच महसूस होता है खौफ नहीं। सिगमंड फ्रायड ने 1905 में तथाकथित ‘‘राहत सिद्धांत’’ को संशोधित करते हुए इसकी खोज की, यह सुझाव देते हुए कि हँसी अच्छी लगती है क्योंकि यह हमारी ऊर्जा प्रणाली को शुद्ध करती है।
अब बात करते हैं पिछले बरस की सर्दियों की, जब लॉकडाउन के दौरान अकेलेपन का स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया (नवंबर में, ब्रिटेन में हर चार वयस्क में से एक ने अकेलापन महसूस करने की सूचना दी), हंसी भी लोगों को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण रही है। यह न केवल आम तौर पर एक सामूहिक गतिविधि है - कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारे मानव पूर्वज जब बोल नहीं पाते थे तब भी समूहों में हंसते थे - यह जम्हाई लेने से भी अधिक संक्रामक है।
यह देखते हुए कि अमूमन हम उन विषयों पर हंसते हैं, जो खुद से जुड़े लगते हैं, हास्य ने लोगों को लॉकडाउन के दौरान एक दूसरे को पहचानने में मदद की। यह बदले में जुड़ाव और एकजुटता की भावना पैदा करता है, जिससे हमारी अलगाव की भावना कम हो जाती है। साहित्यिक विद्वान और लेखक जीना बैरेका का कहना है कि ‘‘छुए बिना आप किसी के जितने करीब आ सकते हैं, मिलकर हंसना आपको उतने करीब ले आता है’’।
हंसी हमारी चिंताओं को कम करने का एक साधन भी हो सकती है। एक डर के बारे में मजाक करना, विशेष रूप से एक महामारी के दौरान, हमें बेहतर तरीके से इसका मुकाबला करने के लायक बना देता है।
हम हंसते हैं क्योंकि हम खुद को उस वायरस से श्रेष्ठ, निर्भय और नियंत्रक मानते हैं। इस तरह किसी वायरस के बारे में मज़ाक करने से उस पर हमारी शक्ति का भाव बढ़ जाता है और चिंता दूर हो जाती है। मजाक भी उपयोगी हो सकता है क्योंकि यह हमें हमारी समस्याओं के बारे में बात करने और अपने डर को व्यक्त करने में सक्षम बनाता है जो शब्दों में बयां करना मुश्किल हो सकता है।
हालांकि हम में से कई लोगों ने महामारी में हास्य की तलाश के लिए एक अपराधबोध का अनुभव भी किया है, लेकिन हमें इसे अपनी चिंताओं में शामिल नहीं करना है। निश्चित रूप से हमारी स्थिति हमेशा हंसी का विषय नहीं हो सकती। लेकिन हंसी अपने आप में मायने रखती है, और जब इसका उचित उपयोग किया जाता है, तो यह संकट के दौरान हमारे सबसे प्रभावी प्रतिरक्षा तंत्रों में से एक हो सकती है, जिससे हम दूसरों के साथ, खुद के साथ और यहां तक कि हमारे नियंत्रण से परे की घटनाओं के साथ एक स्वस्थ संतुलन स्थापित कर सकते हैं।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।