WTO में चीन को मिली करारी मात, छिन गया बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का दर्जा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 22, 2020 07:15 AM2020-06-22T07:15:45+5:302020-06-22T07:15:45+5:30
चीन को यूरोपियन यूनियन के साथ जारी विवाद में हार मिली है. उसके बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का दर्जा खत्म हो गया है. जानकारों के अनुसार ये WTO में चल रहा सबसे गंभीर विवाद था.
भारत से लद्दाख सीमा पर जारी विवाद के बीच चीन को एक दूसरे मोर्चे पर करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है. चीन को वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूटीओ) में यूरोपियन यूनियन (ईयू) के साथ जारी विवाद में हार मिली है. इससे चीन का तथाकथित बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का दर्जा खत्म हो गया है.
चीन की सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) पिछले चार वर्षों से ईयू पर चीन को बाजार आधारित अर्थव्यवस्था स्वीकार करने का दबाव बना रही थी.
बता दें कि चीन ये मामला पिछले साल ही प्रोविजनल डिसीजन में हार चुका था. अमेरिका-ईयू लगाएंगे एंटी-डंपिंग शुल्क ईयू ने तर्क दिया कि सीसीपी स्टील और एल्युमिनियम समेत अपने ज्यादातर उद्योगों को बहुत ज्यादा सब्सिडी देता है. इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीन के उत्पादों की कीमतें तर्कशील नहीं रह जाती हैं.
अब सीसीपी के खिलाफ आए इस फैसले के बाद यूरोपीय संघ और अमेरिका में चीन के उत्पादों पर भारी-भरकम एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया जा सकेगा. इससे यूरोप और अमेरिका अपने घरेलू उद्योग को ज्यादा संरक्षण दे पाएंगे.
दरअसल, चीन बहुत कम कीमत पर अपने उत्पादों को दूसरे देशों में जमा कर देता है. इससे आयात करने वाले देश की अर्थव्यवस्था और स्थानीय कारोबारियों को बड़ा नुकसान होता है. भारत भी ऐसा करेगा भारत भी चीन की कारोबारी नीतियों से परेशान रहा है. अब वह चीन को सस्ता माल भारत में डंप करने से रोक सकेगा. ताजा फैसले के बाद चीन के उत्पादों पर एंडी-डंपिंग शुल्क लगाकर उसे ऐसा करने से रोका जा सकेगा.
अमेरिका के कारोबारी प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटजर ने कहा कि ये डब्ल्यूटीओ में चल रहा सबसे गंभीर विवाद था. उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी थी कि डब्ल्यूटीओ ने उचित फैसला नहीं दिया तो अमेरिका डब्ल्यूटीओ से बाहर हो जाएगा.
मामले से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि चीन ने इसमें बहुत कुछ खो दिया है. उन्हें मुख्य मामले में ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा है. सीसीपी संयुक्त राष्ट्र,वर्ल्ड बैंक,आईएमएफ समेत कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में घुस चुकी है. ऐसे में डब्ल्यूटीओ का ये फैसला काफी अहम माना जा रहा है.