200 रुपए रिश्वत लेने का केस चला 24 साल, फैसला आने से पहले मर चुका था बेगुनाह कांस्टेबल

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 5, 2022 05:16 PM2022-04-05T17:16:01+5:302022-04-05T17:22:07+5:30

महाराष्ट्र के मृत कांस्टेबल नागनाथ चावरे पर 200 रुपए रिश्वत लेने का आरोप था लेकिन अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए उन्हें एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी और उसे लड़ते हुए वो इस दुनिया से चले भी गये लेकिन 24 साल बाद कोर्ट ने चावरे को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है।

case of taking 200 rupees bribe went on for 24 years, the innocent constable was dead before the verdict | 200 रुपए रिश्वत लेने का केस चला 24 साल, फैसला आने से पहले मर चुका था बेगुनाह कांस्टेबल

सांकेतिक तस्वीर

Highlightsमृत कांस्टेबल नागनाथ चावरे पर 200 रुपए रिश्वत लेने का आरोप थाअपनी बेगुनाही साबित करने के लिए चावरे ने लंबी लड़ाई लड़ी लेकिन जीते जी उन्हें इंसाफ नहीं मिला मृत कांस्टेबल नागनाथ चावरे की पत्नी और बेटे ने उनकी तरफ से कोर्ट में बेगुनाही की लड़ाई लड़ी

मुंबई: महाराष्ट्र में एक अजीब-ओ-गरीब केस सामने आया है, जिसमें कोर्ट ने महज 200 रुपए के कथित रिश्वत के मामले में 24 साल सुनवाई करने के बाद एक कांस्टेबल को बरी कर दिया, लेकिन कोर्ट से मिले इस न्याय को देखने के लिए वो कांस्टेबल अब दुनिया में ही नहीं है।

जी हां, मृत कांस्टेबल नागनाथ चावरे पर 200 रुपए रिश्वत लेने का आरोप था लेकिन अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए उन्हें एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी और उसे लड़ते हुए वो इस दुनिया से चले भी गये लेकिन जिंदा रहते हुए उन्हें इंसाफ नहीं मिला।

उसके बाद मृत कांस्टेबल नागनाथ चावरे की पत्नी और बेटे ने उनकी तरफ से यह लड़ाई लड़ी और नागनाथ चावरे को बेकसूर साबित करने के लिए अदालत में लंबी लड़ई लड़ी और अंत में इसका नतीजा यह निकला कि नागनाथ चावरे अपनी मौत के बाद बेगुनाह साबित हुए।

जानकारी के मुताबिक 6 नवंबर, 1998 को मोहोल तालुका के वाघोली गांव के बाबूराव शेंडे पर कुछ लोगों ने हमला किया था। मोहोल पुलिस स्टेशन के एक सब-इंस्पेक्टर ने उसे कामती चौकी पर नागनाथ चावरे के पास जाने के लिए कहा। 

जिसके बाद वह 19 नवंबर को चावरे से मिला। शेंडे का आरोप था कि नागनाथ चावरे ने बयान दर्ज करने के बाद शेंडे से 200 रुपए की मांग की। जिसके बाद शेंडे ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से संपर्क किया और 21 नवंबर को चावरे ब्यूरों के चक्कर में फंस गए।

हाईकोर्ट में नागनाथ चावरे द्वारा कथित तौर पर 200 रुपए रिश्वत लेने का मामला पूरे चौबीस साल चला, लेकिन इन 24 वर्षों में मुंबई पुलिस कॉन्स्टेबल नागनाथ चावरे पर रिश्वत लेने का आरोप साबित नहीं हुआ। मामले में जस्टिस प्रकाश नाइक के बेंच ने फैसला सुनाया।

उन्होंने सोलापुर कोर्ट के 31 मार्च, 1998 के आदेश को रद्द कर दिया। बेंच ने कहा कि ‘रिश्वत की मांग पर मुकदमा चलाने का मामला संदेह के घेरे में हैं। सबूतों में विसंगतियों को ध्यान में रखते हुए, आरोपी को संदेह का लाभ मिलता है और वह बरी होने का हकदार है। इस तरह से कोर्ट ने चावरे को सभी आरोपों से बरी कर दिया है लेकिन चावरे अब इस दुनिया में नहीं हैं।

कोर्ट के इस फैसले से चावरे परिवार को बड़ी राहत मिली है। चावरे ने अपने बयान में रिश्वत मांगने से इनकार किया था। उन्होंने कहा कि उनके ऊपर दबाव बनाया जा रहा है। एसआई ने दोनों पक्षों के खिलाफ केस करने का निर्देश दिया था। शेंडे ने उससे कहा कि वह उसके खिलाफ केस न करे और उसके जेब में जबरन कुछ डाल दिया, जब वह जेब से वह चीज निकालने लगा तो उसी समय एसीबी पहुंच गई और उन्होंने उसके हाथ में करेंसी नोट सहित दबोच लिया।

चावरे के खिलाफ लोक सेवक के आपराधिक कदाचार और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत रिश्वत लेने का आरोप लगा, कोर्ट ने उन्हें दोनों धाराओं पर 1.5 वर्ष और 1 वर्ष की सजा सुनाई थी। जस्टिस नाइक ने मामले में अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा कि गवाहों के बयान आत्मविश्वास से प्रेरित नहीं है। गवाहों के बयान में कई तरह की गंभीर विसंगतियां है। 

जस्टिस नाइक ने अपने फैसले में आगे कहा कि यह कोर्ट मृत कांस्टेबल नागनाथ चावरे को संदेह का लाभ देते हुए सभी आरोपों से बरी करती है। 

Web Title: case of taking 200 rupees bribe went on for 24 years, the innocent constable was dead before the verdict

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