भारत का प्रतिबिंब -हिंद महासागर का छोटा भारत 'मॉरिशस'
By अनुभा जैन | Published: September 5, 2018 06:37 PM2018-09-05T18:37:22+5:302018-09-05T18:37:22+5:30
एंगलो फ्रेंच, 60 प्रतिशत हिन्दू, 2 प्रतिशत चाइनीज, 17 प्रतिशत एंगलो मॉरिशन व साउथ अफ्रिकन जनसंख्या वाले मिश्रित संस्कृति वाला चारों ओर पानी से घिरा यह टापू मुझ जैसे प्रकृति प्रेमियों का पसंदीदा पर्यटन स्थल है।
आज की भीड़भाड़ भरी जिन्दगी से एकदम अलग धरती का स्वर्ग माने जाने वाला मॉरिशस एक मनमोहक टापू है जिसकी धरा पर कदम रखते ही वहां चारों ओर बिखरी हरियाली और समुद्र की उंची उंची लहरों ने मुझे अभिभूत कर दिया।
भारत से 5110 कि.मी दूर महज 13 लाख की जनसंख्या वाले ज्वालामुखी से उद्ववेलित हुये मॉरिशस में लोग बिना भागमभाग के एक मध्यम रफ्तार की जिन्दगी जी रहे हैं जहां न भारत के समान गाड़ियों जैसा शोर है और ना लोगों की भीड़।
एंगलो फ्रेंच, 60 प्रतिशत हिन्दू, 2 प्रतिशत चाइनीज, 17 प्रतिशत एंगलो मॉरिशन व साउथ अफ्रिकन जनसंख्या वाले मिश्रित संस्कृति वाला चारों ओर पानी से घिरा यह टापू मुझ जैसे प्रकृति प्रेमियों का पसंदीदा पर्यटन स्थल है।
बिहार व भारत के अन्य प्रदेशों से मुख्य रूप से मजदूरों के रूप में काम करने आये भारतीयों की चौथी पीढी यहां रह रही है।
वे हनुमान चालीसा, रामायण और लोक कथाओं के माध्यम से इस देश में अपनी परंपरा व संस्कृति को जिंदा किये हुये हैं। इसी कडी में अप्रवासी घाट के नाम से वह स्थान बनाया गया है जहां सबसे पहले हिन्दुओं ने जहाज से उतरकर मॉरिशस में कदम रखा था।
ये हिन्दू गन्ने के खेतों में काम करने के लिये मजदूरों के रूप में यहां आये थे। उनके बर्तन व अन्य काम आने वाली वस्तुओं के अवशेषों को इस स्थल पर सहेज कर रखा गया है। इस स्थल को यूनेस्को के वर्ल्ड हैरिटेज सेंटर के रूप में आज विकसित किया गया है।
मॉरिशस में पहले डच फिर फ्रेंच और अंत में अंग्रेजी का प्रभाव रहा। यहां हिंदी का विकास इन भाषाओं के साथ ही हुआ है। गन्ने का निर्यात कर और आई टी, टैक्सटाइल व पर्यटन क्षेत्रों के जरिये आज मॉरिशस विश्व पटल पर अपनी विशेष पहचान बनाये हुये है।
सकडी गलियों में बने सुंदर घर, उंची अटटालिकाएं व गन्ने के विशाल खेत मनोरम होने के साथ मॉरिशस को परंपरा व आधुनिकता का संगम स्थल बना रहे है। यहां गंगा तालाब, सुशुप्त ज्वालामुखी, नार्थ व साउथ व्यू पाइंट कुछ बेहद रमणीय स्थल है। मॉरिशस की राजधानी पोर्ट लुई आईटी हब है जहां सभी आधुनिक कंपनियां स्थित हैं।
पोर्ट लुई में हिंदी भाषा को बढावा देने के लिये व यूनाइटेड नेशनस की सातवीं संवैधानिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिये 18 से 20 अगस्त तक तीन दिवसीय ग्यारहवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया।
मुझे भी अन्य जाने माने लेखकों व देश विदेश से सम्मेलन में शिरकत करने आई प्रतिष्ठित हस्तियों के साथ् इस सम्मेलन में भाग लेने का गौरव प्राप्त हुआ। सम्मेलन स्थल को गोंविद तुलसीदास नगर का नाम दिया गया था।
पूरा प्रांगण उन तीन दिनों के लिये हिन्दीमयी हो चुका था। जहां एक ओर विभिन्न सत्रों के माध्यम से विचार विमर्श हुये वहीं हिंदी साहित्य पर चल रही पुस्तक प्रदर्शनी, विभिन्न लेखकों के पुस्तक विमोचन भी खासे आकर्षण का केंद्र रहे।
सम्मेलन में हुये आठ सत्रों में प्रथम सेशन पूरी तरह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी को समर्पित रहा। मुझे यह देखकर बेहद आश्चर्य व सुकून महसुस हुआ जब अटल जी जैसे महान नेता को खोने का गम मॉरिशस में भी देखा गया।
वहां न केवल भारत के राष्ट्रीय झंडे आधे झुके रहे अपितु पोर्ट लुई के प्रसिद्व साइबर टॉवर को मॉरिशस के प्रधानमंत्री प्रवीण कुमार जगन्नाथ ने अटल बिहारी वाजपेयी टॉवर के नाम से करने की घोषणा की।
यह साइबर टॉवर भारत के सहयोग से वाजपेयी जी के प्रधानमंत्री रहते हुये बना था इसलिये इस टावर का नामकरण अटल बिहारी वाजपेयी किया गया। इस अवसर पर बोलते हुये प्रवीण कुमार जगन्नाथ ने कहा कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हिंदी में भाषण देकर भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने सिद्व कर दिया है कि वह अपनी भाषा को कितना सम्मान देते हैं।
इसी क्रम में जी गोपीनाथन, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व प्रॉफेसर का कहना है कि विश्व हिंदी जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन से संकल्प पैदा हुआ कि हिंदी विश्व भाषा बन सकती है और हिंदी भाषा में विश्व भाषा बनने की शक्ति है।
सम्मेलन की मुख्य अतिथि रहीं भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उदघाटन समारोह में कहा, ‘हिंदी को बढाने की जिम्मेदारी भारत की है। इस सम्मेलन का मुख्य विषय हिंदी विश्व और भारतीय संस्कृति रखा गया। गिरमिटिया देशों में लुप्त हो रही भाषा को बचाने की जिम्मेदारी भारत की है।
भारत ने वह जिम्मेदारी बखूबी संभाली भी है। इन गिरमिटिया देशों में संस्कृति का गौरव कायम है। पूरे विश्व में जहां भी हिंदी है वहां पर भारतीय संस्कृति है। मॉरिशस इस संदर्भ में विशेष स्थान रखता है। यहां हिंदी के साथ अन्य भारतीय भाषायें और संस्कृतियां विद्यमान हैं।
इसलिये हिंदी विश्व और भारतीय संस्कृति जैसे थीम पर आधारित यह सम्मेलन तीसरी बार मॉरिशस की धरती पर आयोजित होना बहुत महत्वपूर्ण घटना है। यह सम्मेलन यहां पर भारतीय संस्कृति व भाषा को और सुदृढ करेगा।‘ सुषमा स्वराज ने आगे कहा कि मॉरिशस में हिंदी भाषा को बहुत संजोकर रखा गया है। यहां हिंदी का भविष्य पूरी तरह से सुरक्षित है।
पहले दिन सम्मेलन का उदघाटन सुषमा स्वराज, मॉरिशस की शिक्षा मंत्री लीला देवी दुकुन लछुमन व गोवा की राज्यपाल मृदुला सिंहा ने दीप जलाकर किया।
अभिमन्यु अनन्त सभागार में फिल्मो के माध्यम से भारतीय संस्कृति का संरक्षण विषय पर सत्र का आयोजन हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्व फिल्मकार और सेंसर बोर्ड के चेयरमैन प्रसून जोशी ने की।
प्रसून जोशी ने विषय पर विचार रखते हुये कहा कि संस्कृति वही है जो मानवता का विकास करे। सिनेमा अपने विचार संस्कृति व समाज से लेता है। यदि समाज में संस्कृति नहीं होगी तो सिनेमा में कंटेंट कैसे आयेगा।
फिल्म आज प्रोडेक्ट हो गयी है। अब फिल्म का विषय रिसर्च और लोगों की रूचि का होने लगा है। समाज के साथ जुडाव, उनके साथ संवेदनशीलता की समझ को विकसित किया जाता है तब फिल्में बनती हैं।
एनएसडी की प्रशिक्षिका व कलाकारा वाणी त्रिपाठी ने कहा कि सिनेमा में भारतीय संस्कृति ही परिलक्षित होती है। साहित्य समाज का दर्पण है सिनेमा आज भी जिंदगी का दर्पण है।
भाषा और लोक संस्कृति का अंतरसंबंध विषयक सत्र में विचार रखते हुये अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति और मनोविज्ञानी व भारतीय संस्कृति के भाष्यकार प्रो.गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि संस्कृति जहां प्राणी है वहीं भाषा उसका प्राण।
भाषा से ही संस्कृति जीवित रहती है। हिंदी रूपी लोकभाषा में अवधी, ब्रज, भोजपुरी भाषाओं से लिये शब्दों का उपयोग होता है। इस तरह हिंदी विभिन्न भाषाओं से बने परिवार को व्यक्त करने वाली भाषा है।
सम्मेलन के अन्य महत्वपूर्ण सत्र सुनने को मिले उनमें थे - आई टी के द्वारा हिंदी का विकास, आईटी के उत्पादों को संभव बनाने में शासन का योगदान, हिंदी शिक्षण में भारतीय संस्कृति, हिंदी साहित्य में सांस्कृतिक चिंतन, प्रवासी भारतीय देशों में संस्कृति की पहचान, संचार व भारतीय संस्कृति तथा हिंदी व बाल साहित्य।
समारोह के अंतिम दिन यूएन रेडियो द्वारा हिन्दी साप्ताहिक बुलेटिन का लोकापर्ण किया गया। सुषमा स्वराज की अध्यक्षता में सीडैक संस्थान द्वारा बनायी ‘निकश‘ नेशनल व इंटरनेशनल नॉलेज एकरीडियेशन स्टैंर्डड इन हिंदी नामक फिल्म स्क्रीनिंग की गयी।
अंत में इस सम्मेलन की साक्षी बन मैने यह पाया कि इस अंतर्राष्ट्रीय मंच के माध्यम से हिन्दी भाषा को वैश्विक रूप में प्रतिष्ठापित करना विश्व हिंदी सम्मेलन का मूल उददेश्य रहा।
अनंत संभावनाओं से भरी हिंदी बहुत तेजी से आगे बढती हुई तथा इस तरह के प्रयासों के माध्यम से आज विश्व की आर्थिक व्यवस्था व तकनीकि क्षेत्र में भी शामिल हो रही है।
हालांकि हमारी प्रगति थोडी धीमी है पर हिंदी भाषा के और अधिक विकास व इसे अधिकारिक दर्जा दिलाने के लिये इसके प्रति हमें खुले दृष्टिकोण से हिंदी को आत्मसात करने की आवश्यकता है। इस सम्मेलन में लोकमत मीडिया के राजस्थान ब्यूरो के धीरेंद्र जैन भी शामिल हुए थे।