'डूम्सडे क्लॉक': परमाणु युद्ध के मुहाने पर पहुंची दुनिया, वैज्ञानिकों ने की ये भविष्यवाणी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 24, 2020 10:56 AM2020-01-24T10:56:51+5:302020-01-24T12:30:41+5:30
अफवाहों और फेक न्यूज के चलते भी दुनिया में युद्ध की आशंका बढ़ी है। फेक सूचनाओं पर विभिन्न देशों द्वारा विश्वास करना भी परमाणु हथियारों के खतरे को बढ़ाता है। पिछले साल कई सरकारों ने बाकायदा भ्रामक साइबर सूचनाओं का अभियान तक चलाया। इनका निशाना दूसरे देशों के बीच अविश्वास फैलाना था।
दुनिया के परमाणु वैज्ञानिकों की माने तो इस बात की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ गई है कि दुनिया परमाणु युद्ध के खतरे के और नजदीक पहुंच गई है। इससे मानवता पर सबसे बड़ा खतरा मंडरा है। दरअसल, 'डूम्सडे क्लॉक' (प्रलय की घड़ी) में अब आधी रात मतलब 12 बजने में 100 सेकंड से भी कम का वक्त बचा है। प्रलय का समय बताने वाली इस घड़ी में आधी रात का का वक्त होने में जितना कम समय रहेगा दुनिया में परमाणु युद्ध का खतरा उतना ही करीब होगा। प्रलय की यह घड़ी साल 1947 से काम कर रही है। अब इस घड़ी ने आगाह किया है कि दुनिया में युद्ध का खतरा बढ़ रहा है।
'डूम्सडे क्लॉक' ने दुनिया में युद्ध का खतरा बढ़ने की आशंका का आकलन युद्धक हथियारों, विध्वंसकारी तकनीक, फेक विडियो और ऑडियो, अंतरिक्ष में सैन्य ताकत बढ़ाने की कोशिश और हाइपरसोनिक मिसाइलों की बढ़ती होड़ से किया है। 'द बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स' (BAS) की तरफ से गुरुवार को जारी बुलेटिन में दुनिया में प्रलय की आशंका को और करीब बताया है। एक वैज्ञानिक ने कहा, 'हम देख पा रहे हैं कि दुनिया तबाही के कितने करीब पहुंच गई है। दुनिया में तबाही का समय अब घंटों की नहीं बल्कि सेकंड की बात रह गई है।
नोबेल विजेताओं और विशेषज्ञों का फैसला
'डूम्सडे क्लॉक' का फैसला 13 नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिकों सहित विशेषज्ञों के पैनल ने लिया। शुरू में इस घड़ी को मध्य रात्रि मतलब 12 बजने के 7 मिनट पहले सेट किया गया था। पिछली बार प्रलय के करीब पहुंचने का समय 2018-19 में आया था और उससे पहले 1953 में आया था। साल 1953 में इस घड़ी को मध्य रात्रि के 2 मिनट पहले सेट किया गया था। साल 1991 में कोल्ड वॉर खत्म होने के बाद इसे मध्य रात्रि के 17 मिनट पहले तक सेट किया गया था।
समझिए क्या है 'डूम्सडे क्लॉक'
डूम्सडे क्लॉक एक सांकेतिक घड़ी है। यह घड़ी मानव निर्मित खतरे से वैश्विक तबाही की आशंका को बताती है। घड़ी में मध्यरात्रि 12 बजने को भारी तबाही का संकेत माना जाता है। साल 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में हुए हमले के बाद वैज्ञानिकों ने मानव निर्मित खतरे से विश्व को आगाह करने के लिए इस घड़ी का निर्माण किया था।
इस घड़ी में मध्य रात्रि यानी 12 बजने का मतलब है कि दुनिया का अंत बेहद नजदीक है या फिर कहें कि दुनिया में परमाणु हमला होने की आशंका 100 प्रतिशत है। परमाणु वैज्ञानिक जेरी ब्राउन का कहना है कि, 'सुपर पॉवर बनने की होड़ ने दुनिया में परमाणु हमले की आशंका बढ़ा दी है। क्लामेट चेंज ने इस होड़ को और बढ़ा दिया है। दुनिया के जागने का यही वक्त है।'
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया परमाणु युग में है। महत्वपूर्ण बात यह है कि नेताओं ने पिछले कई सालों में हथियारों की होड़ रोकने वाली, ज्यादा से ज्यादा हथियार एकत्र कर लेने वाली कई संधियों को कमजोर किया है। इसके कारण दुनिया में परमाणु हथियारों की होड़ बढ़ी है। उत्तर कोरिया और ईरान की परमाणु हथियारों की होड़ पर अनिश्चितता है। अगर कहीं भी चूक हुई तो प्रलय तय है।
साल 2019 में पूरी दुनिया में युवाओं द्वारा क्लाइमेट चेंज को लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए हैं। लेकिन क्लाइमेट चेंज पर प्रयास बहुत कम हुए हैं। पिछले कुछ सालों में विश्वभर के लोगों द्वारा बरती जाने वाली लापरवाही के चलते होने वाले क्लाइमेट चेंज से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ी है। इससे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और उसी तेजी से दुनिया भी काफी गर्म होती जा रही है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भयंकर आग भी इसी का एक उदाहरण है जिसमें लाखों जंगली जानवर जलकर राख हो गए।
अफवाहों और फेक न्यूज के चलते भी दुनिया में युद्ध की आशंका बढ़ी है। फेक सूचनाओं पर विभिन्न देशों द्वारा विश्वास करना भी परमाणु हथियारों के खतरे को बढ़ाता है। पिछले साल कई सरकारों ने बाकायदा भ्रामक साइबर सूचनाओं का अभियान तक चलाया। इनका निशाना दूसरे देशों के बीच अविश्वास फैलाना था। इससे भी अशांति का खतरा बना हुआ है।