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देवों के देव हैं देवराज इंद्र मगर फिर भी हिन्दू धर्म में क्यों नहीं होती उनकी पूजा?

By मेघना वर्मा | Updated: November 23, 2019 11:24 IST

दरअसर इंद्र किसी विशेष व्यक्ति नहीं बल्कि एक पदवी थी। जिन्हें देवों के देव इंद्र भी कहा जाता था। इंद्र को देवताओं का अधिपति माना गया है। मगर बावजूद इसके इंद्र देव की कभी पूजा नहीं की जाती।

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ठळक मुद्देइंद्र देव को देवराज भी कहा जाता है।स्वर्ग पर राज करने वाले इंद्र के बारे में कहा जाता है कि अभी तक कुल 14 इंद्र देव हुए हैं।

हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता माने जाते हैं। जिनमें से प्रमुख ईश्वर की पूजा लोग पूरे विधि-विधान से करते हैं। अक्सर पुराने ग्रंथों या धर्म से जुड़ी कहानियों में आपने देवराज इंद्र का नाम सुना होगा। दरअसर इंद्र किसी विशेष व्यक्ति नहीं बल्कि एक पदवी थी। जिन्हें देवों के देव इंद्र भी कहा जाता था। इंद्र को देवताओं का अधिपति माना गया है। मगर बावजूद इसके इंद्र देव की कभी पूजा नहीं की जाती। आइए आपको बताते हैं क्या है वो वजह जिसके कारण इंद्र देव की कभी पूजा नहीं की जाती। 

अब तक हुए 14 इंद्र

स्वर्ग पर राज करने वाले इंद्र के बारे में कहा जाता है कि अभी तक कुल 14 इंद्र देव हुए हैं। इंद्र एक काल का नाम है। इन 14 इंद्रों के नाम-यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि हैं।

क्यों नहीं होती इंद्र देव की पूजा

मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र को श्राप दिया था। जिस वजह से इंद्र देव की पूजा नहीं की जाती। भगवान कृष्ण के पहले 'इंद्रोत्सव' नामक उत्तर भारत में एक बहुत बड़ा त्योहार होता था। मगर भगवान कृष्ण ने इंद्र की इस पूजा को बंद करवा दिया। उनका मानना था कि ऐसे किसी व्यक्ति की पूजा नहीं करना चाहिए जो न ईश्वर हो और न ईश्वरतुल्य हो। गाय की पूजा इसलिए क्योंकि इसी के माध्यम से हमारा जीवन चलता है। 

श्रीकृष्ण के इस निवेदन पर स्वर्ग के सभी देवी और देवताओं की पूजा बंद हो गई। इसके बाद धूमधाम से गोवर्धन पूजा शुरू हो गई। जब इंद्र को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने प्रलय कालीन बादलों को आदेश दिया कि ऐसी वर्षा करो कि ब्रजवासी डूब जाएं और मेरे पास क्षमा मांगने पर विवश हो जाएं। जब वर्षा नहीं थमी और ब्रजवासी कराहने लगे।

तभी भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक अंगुली पर धारण करके सभी ब्रजवासियों को बुला लिया। गोवर्धन पर्वत के नीचे आने पर ब्रजवासियों पर वर्षा और गर्जन का कोई असर नहीं हो रहा। इससे इंद्र का अभिमान चूर हो गया। बाद में श्रीकृष्ण का इंद्र से युद्ध भी हुआ और इंद्र हार गए। तब ही से इंद्र की पूजा का प्रचलन नहीं है।

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