पांचरात्र शास्त्रों के अनुसार बलराम (बलभद्र) भगवान वासुदेव के ब्यूह या स्वरूप हैं। उनका श्रीकृष्ण के अग्रज और शेष का अवतार होना ब्राह्मण धर्म को अभिमत है। जैनों के मत में उनका सम्बन्ध तीर्थकर नेमिनाथ से है।
बलराम जी के बारे में कहा जाता है कि क्रोध में वह अच्छे-अच्छों को सब सिखाने में माहिर थे। शास्त्रों में लिखा है कि बलराम जी को कौरवों से विशेष लगाव था। विशेष कर दुर्योधन से। दुर्योधन उनका प्यारा शिष्य था। उसकी मृत्यु पर बलराम ने पांडवों को फटकारा भी था। फिर ऐसा क्या था जो वह, दुर्योधन व उसके पूरे कुनबे को धरती से खींचते हुए गंगा में डुबाने जा रहे थे।
कहते हैं कि श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से प्रेम था। लक्ष्मणा दुर्योधन व भानुमति की पुत्री थी। सांब जाबवंती और कृष्ण के पुत्र थे। लक्ष्मणा भी सांब को पसंद करती थी। दोनों विवाह करना चाहते थे। मगर दुर्योधन इस बात को लेकर सहमत नहीं थे। एक दिन मौका देख कर सांब लक्ष्मणा को रथ में बिठा कर द्वारिका ले आए। यह बात जब कौरवों को पता चली तो वह पूरी शक्ति से द्वारिका पर चढ़ाई करने पहुंच गए।
कौरवों ने सांब को बंदी बना लिया और वापस हस्तिनापुर ले आए। उधर, जब कृष्ण और बलराम को इस बात का पता चला तो वह हस्तिनापुर सांब को लेने पहुंचे। मगर, पहले से क्रोधित चल रहे दुर्योधन व उनका परिवार इस बात पर नहीं माना। कृष्ण बलराम के बार-बार निवेदन पर भी कौरव पक्ष उनकी बात को सुनने को तैयार नहीं था।
कौरवों के व्यवहार से बलराम बुरी तरह क्रोधित हो गए। गुस्साए बलराम ने अपना हल निकाल लिया। उन्होंने हल से पूरी हस्तिनापुर को ही बांध लिया और सीधे गंगा की ओर चल पड़े। गुस्से में उन्होंने दुर्योधन को चेताया कि यदि उसने सांब को नहीं छोड़ा तो पूरी हस्तिनापुर गंगा में डुबा देंगे।
कौरवों ने बलराम का गुस्सा देख सुलह करने में ही समझदारी समझी। सांब को रिहा तो किया ही साथ ही लक्ष्मणा का विधि पूर्वक विवाह भी कराया।