Tulsi Vivah 2020: तुलसी विवाह के दौरान इन बातों का रखें ध्यान
By प्रतीक्षा कुकरेती | Published: November 24, 2020 08:25 AM2020-11-24T08:25:10+5:302020-11-24T08:25:22+5:30
ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों की कन्याएं नहीं होती हैं और वह कन्या दान का पुण्य कमाना चाहते हैं उन्हें देवी तुलसी का विवाह कराने से कन्या दान का पुण्य प्राप्त होता है.
कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष एकादशी को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है. भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के चार महीने बाद इसी दिन अपनी निंद्रा तोड़कर जागते हैं. इस दिन तुलसी विवाह कराने की परंपरा है और तुलसी के पौधे का श्रृंगार दुल्हन की तरह किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह करवाने से भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. हिन्दू धर्म के अनुसार तुलसी विवाह करवाने से पुण्यों की प्राप्ति होती है. ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों की कन्याएं नहीं होती हैं और वह कन्या दान का पुण्य कमाना चाहते हैं उन्हें देवी तुलसी का विवाह कराने से कन्या दान का पुण्य प्राप्त होता है. हिंदू धर्म में तुलसी विवाह के बाद ही शादियों के मुहूर्त निकाले जाते हैं. इतना ही नहीं मान्यता है कि इससे दांपत्य जीवन में प्रेम और अटूटता आती है. इस बार तुलसी विवाह 25 नवम्बर को किया जायेगा.
तुलसी विवाह के दौरान ध्यान रखें ये बातें
1. विवाह के समय तुलसी के पौधे को आंगन, छत या पूजास्थल के बीचोंबीच रखें
2. तुलसी का मंडप सजाने के लिए गन्ने का प्रयोग करें
3. विवाह के रिवाज शुरू करने से पहले तुलसी के पौधे पर चुनरी जरूर चढ़ाएं
4. गमले में शालिग्राम रखकर चावल की जगह तिल चढ़ाएं
5. तुलसी और शालिग्राम पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं
6. अगर विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आपको आता है तो वह अवश्य बोलें
7. विवाह के दौरान 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें
8. प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें और उसका वितरण करें
9. पूजा खत्म होने पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें
देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त
देवउठनी एकादशी बुधवार, नवम्बर 25, 2020 को
एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 25, 2020 को 02:42 बजे
एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 26, 2020 को 05:10 बजे
तुलसी विवाह से जुड़ी पौराणिक कथा
भगवान शालिग्राम ओर माता तुलसी के विवाह के पीछे की एक प्रचलित कहानी है. दरअसल, शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी वृंदा अत्यंत सती थी. शंखचूड़ को परास्त करने के लिए वृंदा के सतीत्व को भंग करना जरूरी था. माना जाता है कि भगवान विष्णु ने छल से रूप बदलकर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और उसके बाद भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध कर दिया. इस छल के लिए वृंदा ने भगवान विष्णु को शिला रूप में परिवर्तित होने का शाप दे दिया. उसके बाद भगवान विष्णु शिला रूप में तब्दील हो गए और उन्हें शालिग्राम कहा जाने लगा.