जयंती विशेष: अपने सिख की ऐसी सोच देख चकित रह गए गुरु गोबिंद, एक प्रेरक कहानी

By धीरज पाल | Published: December 22, 2017 06:31 PM2017-12-22T18:31:07+5:302017-12-24T10:48:46+5:30

गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने सिखों को 'सिंह' बनाया, बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी।

Story of guru gobind singh ji | जयंती विशेष: अपने सिख की ऐसी सोच देख चकित रह गए गुरु गोबिंद, एक प्रेरक कहानी

जयंती विशेष: अपने सिख की ऐसी सोच देख चकित रह गए गुरु गोबिंद, एक प्रेरक कहानी

आज सिख धर्म के दसवें गुरू, गुरू गोबिंद सिंह की जयंती है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था कि 'भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन' मतलब इंसान को किसी को डराना नहीं चाहिए और ना ही उसे किसी से डरना चाहिए। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी की यह पंक्ति न केवल एक महान गुरु बल्कि बहुत अच्छे कवि और वीर योद्धा को दर्शाता है। गुरु जी ने अपने सिखों को 'सिंह' बनाया, बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। 

गुरु जी काफी ज्ञानी थे। वे समय-समय पर सिखों को ज्ञान देते थे। वे हमेशा जीवन जीने से लेकर सिखों के क्या कर्तव्य हैं इसके बारे में बताते थे। गुरु गोबिंद के पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था। गुरु जी के चार पुत्र थे जिनका नाम साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर साहिबजादा और साहिबजादा फतेह सिंह था। उनके बारे में कहा जाता है कि वे हर सिख को अपना पुत्र मानते थे। गुरु जी के लिए मित्र और दुश्मन एक जैसे थे। इसे जानने आपको ये कहानी पढ़नी पड़ेगी। 

क्या थी वो प्रेरक कहानी 

एक बार गुरु जी ने अपने प्रिय शिष्य ‘भाई घनैय्या जी’ को युद्ध के दौरान घायलों को पानी पिलाने की सेवा दी। उन्होंने कहा कि जब आपको युद्ध में घायल एवं प्यासा सैनिक दिखे, तो आप उसे पानी पिलाकर उसकी सहायता अवश्य करें। लेकिन भाई घनैय्या जी ने जो किया, वह वाकई हैरान कर देने वाला था।

एक दिन गुरु जी के पास कोई शिकायत लेकर आया, उसने कहा ‘गुरु जी, भाई घनैय्या जी युद्ध के दौरान हमारे सैनिकों को तो पानी पिलाते ही हैं, लेकिन वे दुश्मनों के सैनिकों को भी पानी पिलाते हैं’।

यह सुनकर गुरु जी हैरान हुए, उन्होंने भाई घनैय्या जी को बुलाया और पूछा कि क्या आप सच में ऐसा करते हैं? तो भाई घनैय्या जी ने बेहद नम्रता से जवाब दिया, ‘गुरु जी, युद्ध के मैदान में चाहे अपना सैनिक हो या फिर दुश्मनों का, सैनिक तो सैनिक ही होता है। वह अपनी जान की बाज़ी लगाकर युद्ध कर रहा है, तो ऐसे में उसकी मदद क्यों ना की जाए’?

भाई घनैय्या जी की यह बात सुन गुरु जी ने तुरंत उनकी पीठ थपथपाई और कहा कि ‘भाई घनैय्या जी, आप मेरे सच्चे शिष्य हैं। आपने मेरी दी हुई सीख को बखूबी निभाया है’।

'सेवा' का मतलब

'सेवा’ शब्द में कभी भी भेदभाव नहीं करना चाहिए, उसे मन से किया जाता है। सेवा करते समय किसी की जाति, संबंध या नीयत नहीं देखी जाती। यही गुरु गोबिंद सिंह जी का उपदेश है।

Web Title: Story of guru gobind singh ji

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