हिन्दू धर्म के अनुसार ये समय कलयुग का समय है। पारम्परिक भारत का ये चौथा युग है। इसके पहले सतयुग, द्वापरयुग और त्रेतायुग हुए हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि वो क्या कारण था जिस वजह से कलियुग को धरती पर आना पड़ा? किस तरह और किस समय कलियुग की शुरुआत हुई? हम अक्सर कलियुग के खत्म होने की बात करते हैं मगर आइए हम आपको आज बताते हैं कि किस तरह कलियुग की शुरुआत हुई।
बहुत से लोगों का मानना है कि उस समय ये कलियुग खत्म होगा जब पूरी सृष्टी विनाश की ओर अग्रसर होगी। आइए आपको बताते हैं कलियुग का उदय कैसे हुआ और कलियुग को सालों-साल धरती पर क्यों रहना पड़ा।
आर्यभट्ट के अनुसार
आर्यभट्ट के अनुसार, महाभारत युद्ध 3136 ई पू में हुआ था। कलियुग का आरम्भ कृष्ण के इस युद्ध के 35 वर्ष के बाद निधन हुआ था। भगवत पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के इस पृथ्वी से प्रस्थान के तुरंत बाद 3102 ई पू से कलियुग की शुरुआत हो गई थी।
भगवत पुराण के अनुसार
भागवत पुराण के अनुसार कलियुग का प्रारम्भ तो हुआ जब आकाश में सप्तर्षियों का उदय हुआ। उस समय से पहले उनमें से दो ही दिखायी पड़ते हैं। उनके बीच में दक्षिणोत्तर रेखा समभाग में अश्विनी आदि नक्षत्रों में से एक नक्षत्र दिखायी पड़ता है। उस नक्षत्र के साथ सप्तर्षिगण मनुष्यों की गणना से सौ वर्ष तक रहते हैं।
कैसे हुयी कलियुग की शुरुआत
पुरानी कहानियों की मानें तो जब धर्मराज युधिष्ठिर अपना पूरा राजपाठ परीक्षित को सौंपकर अन्य पांडवों और द्रौपदी के साथ हिमालय की ओर निकल गए। वे स्वयं बैल का रूप लेकर गाय के रूप में बैठी पृथ्वी देवी से सरस्वती नदी के किनारे मिले।
जब पृथ्वी पर कलियुग ने कर लिया था शासन
गाय रूपी पृथ्वी के नयन आंसुओं से भरे हुए थे। पृथ्वी को दुखी देख धर्म ने उनसे उनकी परेशानी का कारण पूछा। धर्म ने कहा देवी तुम ये देख कर तो नहीं रो रही कि मेरा बस एक पैर है। या तुम इस बात से दुखी हो कि अब तुम्हारे ऊपर बुरी ताकतों का शासन होगा।
इस सवाल पर पृथ्वी देवी बोलीं तुम तो सब कुछ जानते हो ऐसे में मेरे दुख का कारण पूछने से क्या लाभ। सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, सन्तोष, त्याग, शास्त्र विचार, ज्ञान, वैराग्य, शौर्य, तेज, ऐश्वर्य, कान्ति, कौशल, स्वतंत्रता, निर्भीकता, कोमलता, आदि गुणों के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण के स्वधाम जाने की वजह से कलियुग ने मुझ पर कब्जा कर लिया है।
राजा परीक्षित ने कलियुग को दिया श्राप
धर्म और पृथ्वी आपस में बात कर ही रहे थे कि इतने में असुर रूपी कलियुग वहां आ गया। बैल और गाय रूपी धर्म और पृथ्वी को मारने लगा। इतने में राजा परीक्षित वहां से गुजर रहे थे। जब उन्होंने यह सब देखा तो कलियुग पर बहुत क्रोधित हुए।
राजा परीक्षित ने बैल के स्वरूप में धर्म और गाय के स्वरूप में पृथ्वी देवी को पहचान लिया था। राजा परीक्षित ने अपनी तलवार निकाली और कलियुग को मारने के लिए आगे बढ़े। राजा परीक्षित का क्रोध देखकर कलियुग कांपने लगा। कलियुग भयभीत होकर अपने राजसी वेष को उतार कर राजा परीक्षित के चरणों में गिर गया और क्षमा याचना करने लगा।
अधर्म, पाप और झूठ का मूल कारण बना कलियुग
राजा परीक्षित ने कहा कलियुग तू मेरे शरण में आ गया है इसलिए मैं तुझे जीवनदान दे रहा हूं। किन्तु अधर्म, पाप, झूठ, चोरी, कपट, दरिद्रता आदि अनेक उपद्रवों का मूल कारण केवल तू ही है। तू मेरे राज्य से अभी निकल जा और फिर कभी लौटकर मत आना।
राजा परीक्षित सोच ने किचार कर कहा झूठ, द्यूत, मद्यपान, परस्त्रीगमन और हिंसा, इन चार स्थानों में असत्य, मद, काम और क्रोध का निवास होता है। तू इन चार स्थानों पर रह सकता है।