Shiv Rudrashtakam Stotram: प्रत्येक सोमवार करें शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ, भोलेनाथ खोल देते हैं धन, समृद्धि के द्वार, शत्रुओं की होगी पराजय

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 11, 2024 06:58 AM2024-03-11T06:58:17+5:302024-03-11T06:58:17+5:30

Shiv Rudrashtakam Stotram: गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीराम के महाकाव्य 'रामचरित मानस' में महादेव शिव शंकर के अविनाशी रूप पर अत्यंत सुंदर तरीके से वर्णन किया गया है, जिसे शिव रूद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ कहते हैं।

Shiv Rudrashtakam Stotram: Recite Shiv Rudrashtakam, Bholenath opens the doors of wealth and prosperity, enemies are defeated | Shiv Rudrashtakam Stotram: प्रत्येक सोमवार करें शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ, भोलेनाथ खोल देते हैं धन, समृद्धि के द्वार, शत्रुओं की होगी पराजय

फाइल फोटो

Highlightsशिव रूद्राष्टकम का पाठ करने से मनुष्य को धन-संपदा और यश मिलता है, शत्रुओं का नाश होता हैमान्यता है कि संस्कृत भाषा में लिखी गई रूद्राष्टकम स्तोत्र की रचना तुलसीदास ने की हैशिव रुद्राष्टकम का पाठ करने से भोलेनाथ के भक्त को तुंरत मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है

Shiv Rudrashtakam Stotram: गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीराम के महाकाव्य 'रामचरित मानस' में महादेव शिव शंकर के अविनाशी रूप पर अत्यंत सुंदर तरीके से वर्णन किया गया है, जिसे शिव रूद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ कहते हैं। मान्यता है कि तुलसीदास द्वारा संस्कृत भाषा में लिखी गई रूद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य को धन संपदा मिलती है। यश मिलता है और शत्रुओं का नाश होता है।

इसलिए कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति यदि भगवान भोलेनाथ की तुरंत कृपा प्राप्त करना चाहता है, तो उसे प्रत्येक सोमवार को उषाकाल में रुद्राष्टकम का पाठ करना चाहिए। शिव रुद्राष्टकम का पाठ करने से भोलेनाथ के भक्त को तुंरत मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। रुद्राष्टकम को भगवान शिव का बहुत ही प्रभावी और त्वरित फल दायक स्तोत्र माना जाता है।

तुलसीदास जी ने शिव रूद्राष्टकम में भगवान शंकर के महिमा की वंदना की है और उनके गुणों का बखान किया है। तुलसीदास जी कहते हैं कि जो शिव शंकर को नहीं भजता है, उसके दुख, रोग, दोष, संकट का समाधान नहीं हो सकता है। भगवान नीलकंठ के आशीष के बिना इस पृथ्वी पर और परलोक में मनुष्य को कभी सुख-शांति नहीं मिलती है।

वहीं रूद्राष्टकम के संबंध में प्रचलित एक किंवदंती में यह भी कहा जाता है कि जब श्रीराम ने भी रावण पर विजय पाने के लिए समुद्र तट के किनारे रामेशवरम में शिवलिंग की स्थापना की तो उन्होंने स्वयं महादेव को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए रूद्राष्टकम स्तुति का पाठ किया था। राम द्वारा रूद्राष्टकम का पाठ करने के परिणाम स्वरूप उन्होंने रावण वध किया और लंका पर विजय प्राप्त की।

रुद्राष्टकम के पाठ से मानव मन और भावनाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह बेचैन मन को शांत करने, तनाव कम करने और शांति की भावना को बढ़ावा देने में मदद करता है। इसके लयबद्ध जप और पाठ से उत्पन्न शक्तिशाली अनुनाद से वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।

भगवान शिव के भक्तों के लिए रुद्राष्टकम का अत्यधिक प्रिय है। रुद्राष्टकम आत्म परिवर्तन के लिए सकारात्मक वातावरण का निर्माण करता है। प्रभु शिव के इस पवित्र भजन का पाठ करने से मनुष्य स्वयं और परमात्मा को अत्यधिक करीब से महसूस कर सकता है।

श्री शिव रूद्राष्टकम

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं,
चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं
गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालुं,
गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा,
लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं,
प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं,
भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी,
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं,
प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा
न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं,
प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो॥

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।

इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम्

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