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Shardiya Navratri 2021: मां दुर्गा की पांचवीं शक्ति है मां स्कंदमाता, जानें पूजा विधि, मंत्र, कथा और आरती

By रुस्तम राणा | Updated: October 9, 2021 15:35 IST

शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व 7 अक्टूबर से प्रारंभ हुआ था और यह पर्व महानवमी के दिन 14 अक्टूबर को समाप्त होगा। 10 अक्टूबर को नवरात्रि का चौथा दिन है, लेकिन पंचमी तिथि होने के कारण इस दिन मां दुर्गा के पांचवें रूप मां स्कंदमाता की पूजा की जाएगी। मां स्कंद माता अपने भक्तों की पुकार शीघ्र ही सुनती हैं। इन्हें अत्यंत करुणामयी और दयालु माना गया है।

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ठळक मुद्देनवरात्रि की पंचमी तिथि के दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है।मां दुर्गा का यह रूप मातृत्व को परिभाषित करता है।

मां दुर्गा की पांचवीं शक्ति का नाम मां स्कंदमाता है। नवरात्रि की पंचमी तिथि के दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि जो कोई भक्त मां के इस रूप की पूजा करता है मां उसकी मुरादें शीघ्र पूरी करती हैं। मां दुर्गा का यह रूप मातृत्व को परिभाषित करता है। मां स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं और इनकी गोद में भगवान स्कंद विराजमान हैं और दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपरी भुजा वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा में भी कमल हैं। माता का वाहन शेर है। स्कंदमाता कमल के आसन पर भी विराजमान होती हैं। 

मां स्कंद माता की पूजा विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर व्रत और पूजा का संकल्प लें। मां को गंगाजल से स्नान करा कर वस्त्र अर्पित करें। मां को श्रृंगार अर्पित करें। उन्हें सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप-दीप, पुष्प, फल प्रसाद आदि से देवी की पूजा करें। उन्हें केले और इलायची का भोग लगाएं। मंत्र सहित मां की आराधना करें, उनकी कथा पढ़ें और अंत में आरती करें।  

स्कंदमाता का मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

स्कंद माता की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक तारकासुर नामक राक्षस था। अपनी कठोर तपस्या के बल पर उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरता का वरदान मांगा लेकिन, ब्रह्मा जी ने उसे समझाया कि जिसका जन्म हुआ है उसे मरना ही होगा। फिर तारकासुर ने निराश होकर ब्रह्मा जी से कहा कि प्रभु ऐसा कर दें कि शिवजी के पुत्र के हाथों ही उसकी मृत्यु हो। उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वो सोचता था कि कभी-भी शिवजी का विवाह नहीं होगा तो उनका पुत्र कैसे होगा। इसलिए उसकी कभी मृत्यु नहीं होगी। फिर उसने लोगों पर हिंसा करनी शुरू कर दी। हर कोई उसके अत्याचारों से परेशान था। सब परेशान होकर शिवजी के पास पहुंचे। उन्होंने शिवजी से प्रार्थना की कि वो उन्हें तारकासुर से मुक्ति दिलाएं। तब शिव ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बनें। बड़े होने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। स्कंदमाता कार्तिकेय की माता हैं।

स्कंदमाता की आरती

जय तेरी हो स्कंद माता। पांचवा नाम तुम्हारा आता।।सब के मन की जानन हारी। जग जननी सब की महतारी।।तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं। हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।।कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा।।कही पहाड़ो पर हैं डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा।।हर मंदिर में तेरे नजारे। गुण गाये तेरे भगत प्यारे।। भगति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।।इंद्र आदी देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे।।दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आएं। तुम ही खंडा हाथ उठाएं।।दासो को सदा बचाने आई। चमन की आस पुजाने आई।।

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