1. बिल्व पत्र का भगवान शंकर के पूजन में विशेष महत्व है जिसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। बिल्वाष्टक और शिव पुराण में इसका स्पेशल उल्लेख है। अन्य कई ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शंकर एवं पार्वती को बिल्व पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है।
2. किसी भी माह की अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा तिथि और सोमवार को बिल्व पत्र नहीं तोडना चाहिए। एक दिन पहले ही तोड़े हुए पत्ते पूजन में उपयोग किए जाने चाहिए।
3. रविवार और द्वादशी तिथि एक साथ होने पर बिल्ववृक्ष का विशेष पूजन करना चाहिए। इस पूजन से महापाप से भी मुक्त हो जाते है। धन की कमी दूर होती है।
4. शिवलिंग पर चढ़े हुए बिल्व पत्र को कई दिनों तक बार-बार धोकर पुनः शिवजी को अर्पित किया जा सकता हैं।
5. भगवान शिव पर अर्पित करने के लिए बिल्व पत्र तोड़ने से पहले नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। उसके बाद बिल्व वृक्ष को प्रणाम करके बिल्व पत्र तोड़ना चाहिए।
अमृतोद्धव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा।गृहामि तव पत्रणि श्पिूजार्थमादरात्।।
6. भगवान शिव को बिल्वपत्र चिकनी ओर से ही अर्पित करें। बिल्वपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं। ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं। पत्तियां कटी या टूटी हुई न हों और उनमें कोई छेद भी नहीं होना चाहिए। शिव जी को बिल्वपत्र अर्पित करते समय साथ ही में जल की धारा जरूर चढ़ाएं। बिना जल के बिल्वपत्र अर्पित नहीं करना चाहिए।
7. घर में बिल्व वृक्ष लगाने से परिवार के सभी सदस्य कई प्रकार के पापों के प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं। इस वृक्ष के प्रभाव से सभी सदस्य यशस्वी होते हैं, समाज में मान-सम्मान मिलता है। ऐसा शिवपुराण में बताया गया है।
8. शिवपुराण में बताया गया है जिस स्थान पर बिल्ववृक्ष है, वह स्थान काशी तीर्थ के समान पूजनीय और पवित्र है। ऐसी जगह जाने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
9. बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में ‘स्कंदपुराण’ में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं।
10. बिल्व का वृक्ष घर के उत्तर-पश्चिम में हो तो सुख-शांति बढ़ती है और बीच में हो तो जीवन मधुर बनता हैं।