शनिवार विशेषः शनिदेव से हनुमान जी ने लिया था अपने भक्तों से दूर रहने का वचन, ऐसे दी थी पटखनी
By गुणातीत ओझा | Published: September 5, 2020 02:05 PM2020-09-05T14:05:48+5:302020-09-05T14:05:48+5:30
प्रातः काल का समय था, हनुमान जी श्रीराम के ध्यान में डूबे थे, तन-मन का होश न था। समुद्र की लहरों का शोर तक उन्हें सुनाई नहीं दे रहा था। उनसे कुछ ही दूरी पर सुर्यपुत्र शनि भी विचरण कर रहे थे।
प्रातः काल का समय था, हनुमान जी श्रीराम के ध्यान में डूबे थे, तन-मन का होश न था। समुद्र की लहरों का शोर तक उन्हें सुनाई नहीं दे रहा था। उनसे कुछ ही दूरी पर सुर्यपुत्र शनि भी विचरण कर रहे थे। बार-बार वह सोचते-‘किसी को अपना शिकार बनाएं?’ किंतु दूर-दूर तक समुद्र तट पर उन्हें कोई दिखाई नहीं दे रहा था। उनकी वक्र दृष्टि ज्वार-भाटे से गीली बालू पर जहां-जहां पड़ती थी, वहीं की बालू सूख जाती थी। उससे शनि का अहं और बढ़ जाता था।
पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि अचानक शनि की दृष्टि आंखें बंद किए बैठे हनुमान जी पर पड़ी। कुटिलता से मुस्कुराते शनिदेव हनुमान जी की ओर चल दिए। दूर से ही उन्होंने पुकारा– “अरे ओ वानर! शीघ्रता से आंखें खोल। देख, मैं तेरी सुख-शांति को नष्ट करने आया हूं। मैं सुर्यपुत्र हूं। इस सृष्टि में ऐसा कोई नहीं, जो मेरा सामना कर सके।”
शनि सोचते थे कि उनका नाम सुनते ही हनुमान जी सिर से पैर तक कांपते हुए उनके चरणों पर लोटने लगेंगे। गिड़गिड़ाकर प्राणों की भीख मांगेंगे, किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ। हनुमान जी ने धीरे से आंखें खोलीं। क्रोध से काले पड़े शनि को देखा। फिर चेहरे पर अचरज के भाव लाते हुए पूछा– “महाराज! आप कौन हैं? इस तपती बालू पर क्या कर रहे हैं? कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?”
हनुमान जी की बात सुनकर शनि गुस्से से लाल-पीला होकर बोले– “अरे मुर्ख बन्दर! मैं तीनों लोकों को भयभीत करने वाला शनि हूं। आज मैं तेरी राशि पर आ रहा हूं। साहस हो तो मुझे रोक!”
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि हनुमान जी मुस्कुराते हुए बोले – “आपकी नाक पर तो गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता है महाराज। मैं बूढ़ा वानर, आप युवा सुर्यपुत्र! क्या खाकर आपको रोकूंगा? प्रार्थना ही कर सकता हूं कि व्यर्थ का क्रोध छोड़िए। कहीं अन्यत्र जाकर अपना पराक्रम दिखाइए। मुझे आराम से श्रीराम की आराधना करने दीजिए।” शनि ने आगे बढ़कर हनुमान जी की बांह पकड़ ली और अपनी ओर खींचने लगे। हनुमान जी को लगा, जैसे उनकी बांह किसी ने दहकते अंगारों पर रख दी हो। एक झटके से उन्होंने अपनी बांह शनि की पकड़ से छुड़ा ली। शनि ने विकराल रूप धरकर उनकी दूसरी बांह पकड़नी चाही तो हनुमान जी का धैर्य चूक गया।
बस, हनुमान जी ने श्रीराम का नाम लेकर अपनी पूंछ बढ़ानी शुरू कर दी। पूंछ बढ़ाते जाते और उसमें शनि को लपेटते जाते। शक्ति के मद में शनि को शूरू-शूरू में इसका अहसास नहीं हुआ। जब अहसास हुआ, तब तक हनुमान जी उन्हें पूरी तरह अपनी पूंछ में कस चुके थे। शनि पूरी शक्ति लगाकर पूंछ की लपेट तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। शनिदेव की अकड़ अभी तक नहीं गई थी। चीखकर बोले – “तुम तो क्या श्रीराम भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। देखते जाओ, मैं तुम्हारी कैसी दुर्गति करता हूं।”
श्रीराम के बारे में हनुमान जी कठोर बन गए। उन्होंने उछल-उछलकर समुद्र तट पर तेजी से दौड़ना शुरू कर दिया। उनकी लंबी पूंछ कहीं शिलाओं से टकराती, कहीं बालू पर घिसटती तो कहीं नुकीली शाखाओं वाले वृक्षों और कंटीली झाड़ियों से रगड़ खाती।
पूंछ में लिपटे शनिदेव का हाल बेहाल हो गया। उनके वस्त्र फट गए। सारे शरीर पर खरोंचे लग गईं। हनुमान जी थे कि समुद्र के चक्कर पर चक्कर लगाए जा रहे थे। न पलभर कहीं रुके, न पलटकर छटपटाने शनि को देखा। लहूलुहान शनि ने कातर स्वर में सूर्य को पुकारा। मन-ही-मन अनेक देवी-देवताओं को याद किया लेकिन कहीं से भी उनको सहायता न मिली। आखिर में कातर स्वर में शनि ने हनुमान जी को ही पुकारा– “दया करो वानरराज! मुझे अपनी उद्दंडता का फल मिल गया। मेरे प्राण मत लीजिए। मैं वचन देता हूं, भविष्य में आपकी छाया से भी दूर रहूंगा।”
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि हनुमान जी ने शनि को एक और पटकनी दी। बोले– “अकेली मेरी छाया से ही नहीं, मेरे भक्तों की छाया से भी दूर रहना होगा। झटपट ‘हां’ कहो या एक पटखनी और…” “ठीक है, ठीक है!” शनि पीड़ा से छटपटाते हुए बोले– “आपके भक्त क्या, जिसके मुंह से आपका नाम भी निकलेगा, उसके पास भी नहीं फटकूंगा। शनि की बात सुनकर हनुमान जी का क्रोध शांत हो गया। उन्होंने शनि को मुक्त किया।