Pradosh Vrat in April: इस विशेष कथा के बिना अधूरा है सोम प्रदोष का व्रत, पढ़िए यहां-जानिए शुभ मुहूर्त
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 20, 2020 06:20 AM2020-04-20T06:20:52+5:302020-04-20T06:20:52+5:30
हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है।
आज सोम प्रदोष है। वैशाख महीने के इस प्रदोष व्रत को खास बताया जाता है। भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत का का गुणगान शास्त्रों में भी मिलता आया है। परण कल्याणकारी इस प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भोले बाबात की सच्चे मन से पूजा करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है। सोम प्रदोष का व्रत की पूजा बिना सोम प्रदोष व्रत कथा के अधूरी मानी जाती है।
प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
प्रदोष व्रत - 20 अप्रैल
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ - 12:42 AM
त्रयोदशी तिथि समाप्त - 03:11 AM (21 अप्रैल)
सोम प्रदोष व्रत कथा
एक समय की बात है एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। वह अपने पुत्र के साथ रहती थी और भीख मांग कर अपना गुजारा करती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला।
ब्राह्मणी उसे अपने साथ घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।
जब राजकुमार बड़े हो गए तो एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा। उन्हें देखते ही वो मोहित हो गईं। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गये।
अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने सपने में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा।
राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं।