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पापांकुशा एकादशीः इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी पापों का होता है नाश, जानें पूजा विधि और कथा का महत्व

By रामदीप मिश्रा | Updated: October 9, 2019 09:20 IST

पापकुंशी एकादशी के व्रत में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है और रात्रि जागरण करते समय भगवान विष्णु के भजन-पूजन में लीन रहना चाहिए। साथ ही साथ रात में भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप ही सोना चाहिए।

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ठळक मुद्देआज पापांकुशा एकादशी है और इसे पापकुंशी एकादशी भी कहा जाता है। यह आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है।कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है और वह बैकुंठ धाम प्राप्त करता है।

आज पापांकुशा एकादशी है और इसे पापकुंशी एकादशी भी कहा जाता है। यह आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है और वह बैकुंठ धाम प्राप्त करता है। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है।

शास्त्रों में बताया गया है कि पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने वालों को कई चीजों का ध्यान रखना चाहिए। उन्हें दशहरे वाले दिन दशमी को गेंहू, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल, और मसूर का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इस एकादशी के व्रत में अन्न वर्जित माना गया है। जो भी मनुष्य पापांकुशा एकादशी का व्रत रखता है उसे सिर्फ फलाहार करना चाहिए। इस एकादशी के बराबर कोई पुण्य नहीं है। इसके बराबर पवित्र तीनों लोकों में कुछ भी नहीं, इसके बराबर कोई व्रत नहीं है। 

पापकुंशी एकादशी के व्रत में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है और रात्रि जागरण करते समय भगवान विष्णु के भजन-पूजन में लीन रहना चाहिए। साथ ही साथ रात में भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप ही सोना चाहिए। इसके अगले दिन द्वादशी तिथि को सुबह ब्रह्म मुहूर्त स्नान करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्माणों को अन्नदान व दक्षिणा देकर व्रत का समामन करना चाहिए। 

पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा

प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर एक क्रूर बहेलियां रहता था। उसने अपनी सारी जिंदगी हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति में व्यतीत कर दी थी। जब उसका अंतिम समय आया तब यमराज के दूत बहेलिये को लेने आए और यमदूत ने बहेलिये से कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है हम तुम्हें कल लेने आएंगे। यह बात सुनकर बहेलिया बहुत भयभीत हो गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर प्रार्थना करने लगा। महर्षि अंगिरा ने बहेलिये से प्रसन्न होकर कहा कि तुम अगले दिन ही आने वाली आश्विन शुक्ल एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करना। बहेलिये ने महर्षि अंगिरा के बताए हुए विधान से विधि पूर्वक पापांकुशा एकादशी का व्रत करा और इस व्रत पूजन के बल से भगवान की कृपा से वह विष्णु लोक को गया। जब यमराज के यमदूत ने इस चमत्कार को देखा तो वह बहेलिया को बिना लिए ही यमलोक वापस लौट गए। 

टॅग्स :एकादशीभगवान विष्णु
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