पांगणा गांव में खुदाई, निकली 12वीं शताब्दी की सूर्य देव की प्राचीन मूर्ति, जानिए सबकुछ

By बलवंत तक्षक | Published: January 14, 2021 05:56 PM2021-01-14T17:56:19+5:302021-01-14T17:57:20+5:30

हिमाचल प्रदेश में मंडी जिले के पांगणा गांव में प्राचीन मूर्ति मिली है.पहले भी यहां भगवान विष्णू, शिव, देवी और अन्य अति प्राचीन मूर्तियां निकल चुकी हैं.

mandi 12th century sculpture sun god found in pangana dehri temple himachal pradesh | पांगणा गांव में खुदाई, निकली 12वीं शताब्दी की सूर्य देव की प्राचीन मूर्ति, जानिए सबकुछ

पांगणा गांव में खुदाई के दौरान भगवान सूर्यदेव की प्राचीन मूर्ति मिली है. (file photo)

Highlightsश्रीनगर में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर मार्तंड का निर्माण करवाया था.माना जाता है कि उसी समय पांगणा गांव में सूर्य की प्रतिमा की स्थापना हुई होगी.भगवान सूर्यदेव अपने दोनों हाथों में पुष्प लिए हुए हैं.

चंडीगढ़ः हिमाचल प्रदेश में मंडी जिले के पांगणा गांव में खुदाई के दौरान भगवान सूर्यदेव की प्राचीन मूर्ति मिली है. इस मूर्ति को 12वीं शताब्दी का बताया जा रहा है.

मूर्ति के सिर के पृष्ठ भाग में आभामंडल है, जो धर्म चक्र का प्रतीक है. धर्मग्रंथों के ज्ञाता डॉ. हिमेंद्र बाली का कहना है कि आठवीं शताब्दी के मध्य में कश्मीर पर कर्कोटक वंश के शासक ललितादित्य मुक्तापीठ का राज था, जिन्होंने श्रीनगर में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर मार्तंड का निर्माण करवाया था.

माना जाता है कि उसी समय पांगणा गांव में सूर्य की प्रतिमा की स्थापना हुई होगी. पांगणा में मिली इस प्राचीन मूर्ति के पैरों के पास सारिथ अरुण कतारबद्ध बैठे हैं, वहीं उनकी पत्नियां उषा और प्रत्युषा आयुद्ध धारण कर जैसे अंधेरे का भेदन कर रही हैं. भगवान सूर्यदेव अपने दोनों हाथों में पुष्प लिए हुए हैं.

आठवीं शताब्दी  के मध्य में कश्मीर पर कर्कोटक वंश के शासक ललितादित्य मुक्तापीठ का राज्य था, जिसने श्रीनगर में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर मार्तंड का निर्माण किया था. ललितादित्य ने रावी और सतलुज के बीच जालंधर त्रिगर्त क्षेत्र अंतर्गत इस क्षेत्र में अधिपत्य स्थापित किया था.

ऐसी संभावना है कि सूर्य पूजा के प्रभाव के चलते पांगणा में शक्ति मंदिर में सूर्य की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया है. इस मूर्ति की स्थापना का काल आठवीं-नौवीं शताब्दी बैठता है. कला की दृष्टि से यह मूर्ति काओ ममेल के मंदिरों में स्थापित प्रतिहार शैली की मूर्तियों से कम नहीं है. उन्होंने कहा कि 12वीं से 23वीं शताब्दी में मुसलमानों के आक्रमण के कारण सूर्य पूजा में हृस हो गया.

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