महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध की कहानी में कई ऐसे मोड़ हैं जो इस महाग्रंथ को और दिलचस्प बनाते हैं। यही नहीं, महाभारत की कहानियां हमें जीवन से संबंधित कई प्रकार की शिक्षा देती हैं। इसी में से एक दुर्योधन द्वारा युद्ध के बीच अर्जुन समेत समस्त पांडवों की जान बचाने की कहानी भी है। यह दिलचस्प और हैरान करने वाला इसलिए भी है क्योंकि दुर्योधन की जिद ही महाभारत के युद्ध का सबसे अहम कारण बना।
दुर्योधन पांडवों से इतना जलता था कि उसने युद्ध को टालने के लिए श्रीकृष्ण की ओर से लाए गये शांति के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया था। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को पांडवों को केवल पांच गांव देने का आग्रह किया था लेकिन वह नहीं माना। ऐसे में यह बेहद दिलचस्प और हैरान करने वाली बात है कि पांडवों से ऐसी दुश्मनी के बावजूद उसने उन्हें क्यों बचाया। वह भी तब जब पांडवों का वध लगभग निश्चित हो चुका था।
महाभारत: दुर्योधन ने बचाई अर्जुन और पांडवों की जान
महाभारत युद्ध में कौरवों ने सबसे पहले भीष्म पितामह को अपना सेनापति बनाया था। पितामह के बाणों के सामने पांडवों की सेना का लगातार नुकसान हो रहा था लेकिन अर्जुन समेत पांचों भाई एकदम सुरक्षित रहे। कुछ दिनों के युद्ध के पश्चात दुर्योधन नाराजगी जताने पितामह के पास गया और कहने लगा कि आप अपनी पूरी शक्ति से यह युद्ध नहीं लड़ रहे हैं। यह सुन भीष्म पितामह को काफी गुस्सा आया और उन्होंने तुरंत पांच तीर निकाले और कुछ मंत्र पढ़े। इसके बाद उन्होंने दुर्योधन से कहा कि कल इन्ही तीरों से वे पांडवों का वध कर देंगे। दुर्योधन यह सुनकर खुश तो हुआ लेकिन उसे पितामह पर विश्वास नहीं हुआ। वह ये कहते हुए तीर अपने साथ वापस लेकर चला गया कि अगले दिन वह युद्ध के समय इन्हे पितामह को लौटा देगा।
महाभारत: श्रीकृष्ण की सूझबूझ से बची पांडवों की जान
पांडवों को मारने के लिए विशेष तीरों को तैयार किये जाने की यह बात पांडव शिविर में भी पहुंची। भगवान श्रीकृष्ण को जब तीरों के बारे में पता चला तो उन्होंने अर्जुन को बुलाया और कहा कि वे दुर्योधन के पास जाएं और पांचो तीर उससे मांग कर ले आएं। अर्जुन को यह सुनकर अचरज हुआ और उन्होंने कृष्ण से पूछा कि भला दुर्योधन इसे वापस क्यों करेगा।
यह सुन श्रीकृष्ण ने अर्जुन द्वारा एक बार गंधर्वों से दुर्योधन की जान बचाने की बात याद दिलाई। यह उस समय की बात थी जब पांडव वनवास काट रहे थे। दुर्योधन ने तब बुरी मानसिकता से एक गंधर्व कुमारी के हरण की कोशिश की थी। इस पर गंधर्वों ने दुर्योधन को ही बंदी बना लिया और उसे मारने पर आमादा थे। वन में उस समय पांडव भी भ्रमण कर रहे थे। उन्हें इस बात की जब जानकारी मिली तो युधिष्ठर के आदेश पर अर्जुन ने जाकर दुर्योधन को बचाने का काम किया था।
श्रीकृष्ण ने इसी बात की याद दिलाते हुए अर्जुन से कहा, 'तुमने एक बार गंधर्व से दुर्योधन की जान बचायी थी। इसके बदले उसने कहा था कि कोई एक चीज जान बचाने के लिए मांग लो। समय आ गया है कि अभी तुम उन पांच तीरों को उससे मांग लो।'
इसके बाद अर्जुन बात समझ गये और दुर्योधन के पास जाकर तीर मांगे। दुर्योधन भले ही पांडवों से जलता था लेकिन क्षत्रिय होने के कारण वचन का पक्का था और इसलिए वह ना नहीं कह सका। उसने अपना वचन निभाया तीर अर्जुन को दे दिए। इस तरह दुर्योधन ने भी इतने बड़े युद्ध में एक बड़ा उदाहरण पेश किया।