Kartik Purnima 2020: कार्तिक पूर्णिमा 2020 शुभ मुहूर्त,महत्व, पौराणिक कथा, कब किया जाएगा स्नान-दान
By प्रतीक्षा कुकरेती | Published: November 25, 2020 10:17 AM2020-11-25T10:17:55+5:302020-11-25T14:22:56+5:30
इस बार कार्तिक मास की पूर्णिमा 30 नवंबर 2020 को पड़ रही है. आगामी 30 नवंबर को रोहिणी नक्षत्र के साथ सर्वसिद्धि योग और वर्धमान योग का संयोग होने से इस कार्तिक पूर्णिमा पर शुभ योग बन रहा है. इसी दिन सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी का 551वां जन्मदिन भी मनाया जाएगा.
कार्तिक मास की अमावस्या का जितना महत्व माना गया है उतना ही महत्व कार्तिक मास की पूर्णिमा का माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस पूर्णिमा पर स्नान-दान का फल कई हजार गुना होकर मिलता है. इस बार कार्तिक मास की पूर्णिमा 30 नवंबर 2020 को पड़ रही है. आगामी 30 नवंबर को रोहिणी नक्षत्र के साथ सर्वसिद्धि योग और वर्धमान योग का संयोग होने से इस कार्तिक पूर्णिमा पर शुभ योग बन रहा है. इसी दिन सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी का 551वां जन्मदिन भी मनाया जाएगा
कार्तिक पूर्णिमा 2020 तिथि
कार्तिक पूर्णिमा आरंभ- 29 नवंबर 2020, रात 12: 47 बजे से
कार्तिक पूर्णिमा समाप्त- 30 नवंबर 2020, रात 02:59 बजे तक
इस बार 29 नवंबर की रात्रि में पूर्णिमा तिथि लगने के कारण 30 नवंबर को दान-स्नान किया जाएगा. इसी दिन कार्तिक स्नान का समापन भी होगा. कार्तिक पूर्णिमा पर इस साल का चौथा और आखिरी उप छाया चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है.
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक माह को हिंदू धर्म का पवित्र माह कहा गया है. कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान-दान की शुरुआत देवउठनी एकादशी से हो जाती है. कार्तिक पूर्णिमा से मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं. कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी के समीप और तालाब, सरोवर या गंगा तट पर दीप जलाने से या दीप दान करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर सुख समृद्धि का वरदान देती हैं. वहीं विष्णु जी को तुलसी पत्र की माला और गुलाब का फूल चढ़ाने से हर मनोकामना पूरी होती हैं. कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान की परंपरा भी है. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है. शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत के लिए भी कार्तिक पूर्णिमा का दिन बेहद अच्छा माना जाता है.
कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा
हिन्दू धर्म के अनुसार त्रिपुरासुर ने देवताओं को पराजित कर उनके राज्य छीन लिए थे. भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर का वध किया था. इसीलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. उसकी मृत्यु के बाद देवताओं में उल्लास था. इसलिए इस दिन को देव दिवाली कहा गया. देवताओं ने स्वर्ग में दीये जलाए थे.