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जितिया व्रत 2018: क्यों किया जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें व्रत नियम, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त

By गुलनीत कौर | Updated: October 1, 2018 12:23 IST

Jivitputrika (Jitiya) vrat 2018: Date, Time, Significance, Importance, Vrat Puja Vidhi, Puja Muhurat:जितिया व्रत 3 दिन का माना जाता है जिसमें पहले दिन को 'नहाय खाय' कहा जाता है।

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हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को महिलाएं एक खास व्रत करती हैं। ये व्रत वे अपने पति नहीं, बल्कि संतान के लिए करती हैं। इस व्रत को उत्तर भारत में जितिया (जिउतिया) या जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से जाना जाता है। यह 3 दिन का व्रत होता है जो इस साल 1 अक्टूबर से प्रारंभ हुआ है। 

जितिया या जीवितपुत्रिका व्रत उत्तर भारत में बिहार की महिलाओं में ज्यादा प्रचलित है। और यहां की महिलाएं विशेषतौर पर अपने पुत्रों के लिए ये व्रत करती हैं। लेकिन बदलते जमाने और सोच के साथ अब बेटियों की मंगलकामना और लंबी आयु के लिए भी ये व्रत किया जाता है।

जितिया व्रत 2018

नहाय खाय: 1 अक्टूबर 2018 सुबह 4 बजकर 9 मिनट सेनिर्जला व्रत: 2 अक्टूबर 2018 सुबह 2 बजकर 17 मिनट सेपारण तिथि: 3 अक्टूबर 2018

जितिया व्रत का महत्व

पारंपरिक रूप से जितिया व्रत 3 दिन का माना जाता है जिसमें पहले दिन को 'नहाय खाय' कहा जाता है। इसदिन सूर्योदय होने से पहले ही खाया पिता जाता है। इसके बाद पूरा डिब कुछ भी खाने या पीने की समाही होती है।

व्रत के नियम के अनुसार सूर्योदय से पहले जो भी खाया जाता है वह मीठा पकवान ही होना चाहिए। नमक या मसाले वाली चीजें नहीं खाई जाती हैं। दूसरे दिन भी निर्जला उपवास किया जाता है। तीसरे दिन स्य्रोदय के बाद तक उपवास रखा जाता है और फिर शुभ मुर्हुत देखते हुए व्रत का पारण किया जाता है।

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जितिया व्रत पूजा विधि

जितिया व्रत में 'जीमूतवाहन' की पूजा करती हैं। जीमूतवाहन एक राजकुमार थे। जितिया व्रत पर इन्हीं की पूरे मन से पूजा-अर्चना करने से संतान को लंबी आयु और सुखी जीवन प्राप्त होता है। 

व्रत की पूजा के लिए कुशा के इस्तेमाल से जीमूतवाहन राजकुमार की प्रतिमा बनाई जाती है। इसे पूजा स्थल परा विराजित करने के बाद धुप, दीप, चावल, पुष्प, आदि पूजन सामग्री से जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। 

पूजा से पहले महिलाएं व्रत की कथा भी सुनती हैं। कथा के बाद जीमूतवाहन की पूजा और आरती की जाती है और अंत में सिन्दूर का टीका लगाकर पूजा खत्म की जाती है। पूजा के अंत में महिलाएं हाथ जोड़कर अपनी संतान की मंगलकामना और लंबी आयु के लिए जीमूतवाहन से प्रार्थना करती हैं।

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