Holi 2020: रंग और खुशियों का त्योहार होली इस बार 10 मार्च को मनाया जाएगा। इससे पहले 9 मार्च की शाम होलिका दहन है। वैसे, दिलचस्प बात ये है कि इस बार होली पर एक बेहद विशेष योग बन रहा है जो बेहद शुभ माना जा रहा है।
दरअसल, ग्रहों का जो योग इस बार होली पर होगा ऐसा करीब 499 साल बाद हो रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ग्रहों के इन योग में होली के आने से ये शुभ फल देने वाला समय होगा। व्यापार के लिए भी ये समय हितकारी होगा। आईए, जानते हैं होली से जुड़े इस अनोखे संयोग के बारे में...
Holi 2020: होली पर 499 साल बाद अनोखा योग
इस साल होली पर गुरु और शनि का विशेष योग बन रहा है। दरअसल, ये दोनों ग्रह इस बार होली के मौके पर अपनी-अपनी राशि में रहेंगे। होलिका दहन के दिन यानी 9 मार्च को गुरु अपनी धनु राशि में और शनि भी अपनी ही मकर राशि में रहेंगे। इससे पहले ऐसा योग 3 मार्च, 1521 को बना था। उस दौरान भी दोनों ग्रह अपनी-अपनी राशि में थे।
अन्य ग्रहों की बात करें तो होली पर शुक्र मेष राशि में, मंगल और केतु धनु राशि में, राहु मिथुन में, सूर्य और बुध कुंभ राशि में, चंद्र सिंह में रहेंगे। वहीं, मार्च के आखिर में गुरु भी अपनी राशि धनु से निकल कर शनि के साथ मकर राशि में आ जाएंगे।
Holi 2020: होलिका दहन पर इस बार भद्रा का भी साया नहीं
होलिका दहन पर इस बार भद्रा का साया नहीं रहने वाला है। भद्रा के साए में होलिका दहन शुभ नहीं माना जाता है। होलिका दहन का शुभ समय इस बार शाम को 6 बजकर 32 मिनट से 8 बजकर 52 मिनट तक का होगा। बता दें कि होलिका जलाने के लिए प्रदोष काल सबसे अच्छा माना जाता है।
इस दौरान स्वार्थ सिद्धि योग भी लगा हुआ है। होलाष्टक की भी शुरुआत 3 मार्च से हो चुकी है। पंचागों के अनुसार इन दिनों में मांगलिक कार्य जैसे विवाह, सगाई, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं। पंचांग और हिंदी कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है।
होलिका दहन और होली की कथा
पौराणिक कथाओं में होली का जुड़ाव भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद और उनकी भक्ति से नाराज असुर पिता हिरण्यकश्यप की कहानी से है। कहते हैं कि होलाष्टक के दिन से हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद पर अत्याचार शुरू किये थे। होलिका दहन के दिन होलिका के जलने के बाद होली मनाया जाता है। वहीं, एक कथा भगवान शिव और कामदेव से जुड़ी है।
शिव पुराण की कथा के अनुसार तारकासुर का वध करने के लिए शिव और देवी पार्वती का विवाह होना आवश्यक था। उसे वरदान हासिल था कि उसका वध शिव पुत्र के हाथों ही होगा। हालांकि, देवी सती के आत्मदाह के बाद शिव ने खुद को तपस्या में लीन कर लिया था। ऐसे में देवताओं ने भगवान शिव को तपस्या से विमुख करने की जिम्मेदारी कामदेव को सौंपी।
कामदेव ने अपने बाण से शिवजी की तपस्या भंग कर दी। शिवजी ने तब क्रोधित होकर कामदेव को भंग कर दिया। यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी। देवी रति ने इसके बाद शिवजी से क्षमा-याचना की जिसके बाद भोले शंकर ने आठ दिन बाद कामदेव को फिर से जीवित होने का वरदान दिया। कहते हैं कि इसलिए ये आठ दिन अशुभ माने गये।