Hazrat Ali Birthday: समाज में बराबरी और इंसाफ़ की पैरोकार शख़्सियत हज़रत अली
By नईम क़ुरैशी | Published: February 25, 2021 08:23 AM2021-02-25T08:23:46+5:302021-02-25T08:31:26+5:30
Hazrat Ali: हजरत अली को मुस्लिमों में पहले वैज्ञानिक का दर्जा भी दिया जाता है। पढ़िए हज़रत अली के जन्मदिवस 25 फ़रवरी पर उनके प्रासंगिक संदेश
मुसलमानो के चौथे ख़लीफ़ा, सुन्नियों के आख़िरी राशिदून और शिया समुदाय के पहले इमाम हज़रत अली एक ऐसी आदर्श शख़्सियत थे, जिन्होंने अपना जीवन अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ बिताया।
वे पैग़म्बर ए इस्लाम हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैही व सल्लम के दामाद तो थे ही उन्हे अमीरुल मोमिनीन, हैदर ए र्करार, इमामुल मुत्तकीन, असदुल्लाह, अबूतराब, वसी ए रसूल और ना जाने कितने लकब दिये गये। इतने सारे नामों से उन्हे यूं ही नही पुकारा जाता था, उन्होने इन्हें अपने दामन मे उतार लिया था।
अल्लाह के जो हुक्म वह लोगों को देते थे, पहले ख़ुद पर अमल कर के दिखाते थे। मुस्लिमों में पहले वैज्ञानिक का दर्जा भी उन्ही को दिया जाता है। उनका कहना है था कि अत्याचार करने वाला, उसमे सहायता करने वाला और अत्याचार से ख़ुश होने वाला भी अत्याचारी ही है।
अगर आज अली के बताये रास्ते पर कुछ दूरी तक भी चला जाये तो दुनियां और समाज मे फैली अशांति ख़त्म हो सकती है। इंसानों के बीच गैरबराबरी और नफ़रत मिट सकती है।
पिछली कई शताब्दियों से लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम और अली को याद तो किया जाता है, लेकिन हम इन तारीख़ों के बीत जाने के बाद फिर अपने अंदाज़ मे जीने लगते है। जन्म के लिए पवित्र क़ाबे की दीवार ने रास्ता दे दिया।
आपकी पैदाइश अल्लाह के घर पवित्र क़ाबे शरीफ़ मे हुई थी। आपकी वालदा फ़ातिमा बिंत असद पैदाइश के पहले जब क़ाबे शरीफ के पास गईं तो अल्लाह के हुक्म से क़ाबे की दीवार ने आपकी मां को रास्ता दे दिया था।
उनके क़ाबे मे तशरीफ लाने के चार दिन बाद अली का जन्म मुसलमानों की सबसे पवित्र इबादतगाह में 17 मार्च सन 600, इस्लामी वर्ष 13 रजब 24 हिजरी को हुआ था।
मोहम्मद मुस्तफ़ा स. स. का आपकी ज़िंदगी पर गहरा असर पड़ा था। चाहे वह मस्जिद हो, जंग का मैदान हो या फिर आम जगह इमाम अली हर वक्त पैग़म्बरे इस्लाम के साथ रहते थे। यहां तक कि जब रसूले अकरम शबे मेराज पर गए तो अपने बिस्तर पर अली को सुला कर गये थे।
उदारवादियों की उम्मीद हज़रत अली
हज़रत अली जंग के मैदान में बहादुरी के साथ रुहानी आत्मिक प्रार्थना के अग्रीम कहलाए। उन्हें असदुल्लाह यानी अल्लाह का शेर के ख़िताब से भी नवाज़ा गया है। जंग के दौरान पैर में चुभे तीर को नमाज़ के दौरान निकाला गया और उन्हें पता भी नहीं चला।
कोई आश्चर्य नहीं कि दुनिया भर में फैले सूफी-संतों का समूह पैगंबर साहब, हज़रत अली और उनके ख़ानदान का दम भरते नहीं थकता। उदारवादी सदैव इनसे बड़ी उम्मीद रखते रहे हैं। हज़रत अली धार्मिक आतंकवाद के पहले शिकार होकर हालते नमाज़ में मस्जिदे कुफे में शहीद कर दिये गए।
निराले अंदाज़ मे रहे और ख़ास अंदाज़ मे दुनिया से विदा ली
इमाम और ख़लीफ़ा होने के बाद भी उनके जीवन का बड़ा हिस्सा इबादत मे बीता था। कहा जाता है कि इंसानी क़लम मे इतनी ताक़त नही कि इमाम अली की तारीफ़ कर सके।
बुलंद फिक्र व ख़यालात, मखलूस अंदाज़ मे एक ख़ास मेयार पर ज़िंदगी बसर की वह निराले अंदाज़ मे रहे और खास अंदाज़ मे इस दुनिया से विदा ली।
अपने क़ातिल के साथ भी इंसाफ़ किया
ख़ुदा की सिफात के आईनेदार, तमाम सिफात के मरकज़ अली आज से करीब 1356 साल पहले 660 ई. मे माहे रमज़ान मुबारक की 21 वीं तारीख़ को कूफे की मस्जिद मे सुबह की नमाज़ ए फ़ज्र के वक्त शहीद कर दिये गये।
19 रमज़ान को सहरी के बाद जब सुबह की नमाज़ अदा की जा रही थी तो नमाज़ियों के बीच खड़े क़ातिल रहमान इब्ने मुलज़िम ने ज़हर से बुझी तलवार से मौला अली पर वार कर दिया। आप इसके बाद दो दिन तक बिस्तर पर रहे।
19 रमज़ान को नमाज़ के वक्त मौला अली ने ये जानते हुए कि यही क़ातिल है, उसे नमाज़ के लिए उठाया था। अब देखिये अली का इंसाफ, हमले के बाद नमाज़ियों ने इब्ने मुल्ज़िम को पकड़ लिया था।
मौला अली ने निर्देश दिया कि हमलावर क़ातिल के खाने पीने का पूरा ख़्याल रखा जाये, उसे न्याय होने तक कोई तकलीफ़ न दी जाए।
हज़रत अली के प्रासंगिक संदेश
- जो दुनिया में विश्वास रखता है, दुनिया उसे धोखा देती है।
- सब्र से जीत तय हो जाती है।
- महान व्यक्ति का सबसे अच्छा काम होता है, माफ़ कर देना और भुला देना।
- मुसीबतों से दुखी ना हों क्योंकि दुखी होना मूर्खों का काम है।
- ज़िल्लत उठाने से बेहतर है तकलीफ़ उठाओ।
- इख्तियार, ताकत और दौलत ऐसी चीजें हैं जिनके मिलने से लोग बदलते नहीं बेनक़ाब होते हैं।
- अगर दोस्त बनाना तुम्हारी कमज़ोरी है तो तुम दुनिया के सबसे ताक़तवर इंसान हो।
- कम खाने में सेहत है, कम बोलने में समझदारी है और कम सोने में इबादत है।
- जिसको तुमसे सच्चा प्रेम होगा वह तुमको व्यर्थ और नाजायज़ कामों से रोकेगा।
- भीख मांगने से बदतर कोई और चीज़ नहीं होती है।
- अपनी सोच को पानी के क़तरों से भी ज़्यादा साफ़ रखो क्योंकि जिस तरह क़तरों से दरिया बनता है उसी तरह सोच से ईमान बनता है।
- चुगली करना उसका काम होता है जो अपने आप को बेहतर बनाने में असमर्थ होता है।