हनुमान जन्मोत्सव: हनुमान जी को क्यों कहा जाता है पवन पुत्र? पढ़ें बजरंग बली के जन्म से जुड़ी ये रोचक कथा

By मेघना वर्मा | Published: April 5, 2020 10:06 AM2020-04-05T10:06:48+5:302020-04-05T10:06:48+5:30

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार बजरंगबली का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था।

Hanuman Janmotsav 2020, know the date and story was birth of hanuman ji in hindi, | हनुमान जन्मोत्सव: हनुमान जी को क्यों कहा जाता है पवन पुत्र? पढ़ें बजरंग बली के जन्म से जुड़ी ये रोचक कथा

हनुमान जन्मोत्सव: हनुमान जी को क्यों कहा जाता है पवन पुत्र? पढ़ें बजरंग बली के जन्म से जुड़ी ये रोचक कथा

Highlightsहनुमान जी के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे।हनुमान जी पवन पुत्र के नाम से भी जाने जाते हैं।

संकट हरने वाले अष्टसिद्धियों के दाता हनुमान जी सभी के कष्ट दूर करते हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार बजरंगबली का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था। हर साल इस पर्व को लोग हनुमान जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। इस साल हनुमान जन्मोत्सव 8 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन ना सिर्फ भगवान हनुमान की विधि-विधान से पूजा होती है बल्कि लोग अपने घरों में पाठ का भी आयोजन करवाते हैं। 

हनुमान जी के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे। माता का नाम अंजनी था। हनुमान जी पवन पुत्र के नाम से भी जाने जाते हैं। हनुमान जी के इस नाम के पीछे एक अलग कहानी है। आइए आपको बताते है हनुमान जी के जन्म से जुड़ी कहानी।

मिला था शाप

प्राचीन कहानी के अनुसार देवराज इंद्र की सभा में एक बेहद खूबसूरत अप्सरा थीं जिनका नाम था पुंजिकस्थली। जब एक बाद ऋषि दुर्वासा इन्द्र की सभा में आए तो अप्सरा पुंचिकस्थली बार-बार अंदर-बाहर आने-जाने लगीं। ये देखकर ऋषि को क्रोध आ गया और उन्होंने अप्सरा को वानरी होने का श्राप दे दिया। पुंजिकस्थली ने इसके लिए उनसे क्षमा मांगी। ऋषि ने उन्हें इच्छानुसार रूप धारण करने को कहा। कुछ साल बाद पुंजिकस्थली ने वानर श्रेष्ठ विरज की पत्नी के गर्भ से वानरी के रूप में जन्म लिया जिनका नाम अंजनी रखा गया। अंजनी का विवाह शिरोमणी वनराज केसरी के कर दिया गया। 

ऋषियों ने दिया केसरी को वर

प्राचीन कहानी के अनुसार एक बार वनराज केसरी प्रभास तीर्थ के निकट पहुंचे। उन्होंने देखा कि बहुत से ऋषि वहां आए हुए हैं। कुछ साधु किनारे पर आसन लगाकर पूजा कर रहे हैं। उसी समय वहां विशाल हाथी आ गया और उनके ध्यान में खलल डालने लगा। वहीं पास के शिखर से केसरी ने हाथी को यूं उत्पात मचाते देखा तो बलपूर्वक उसके दांत उखाड़ फेंके। 

हाथी के मारे जाने पर प्रसन्न होकर ऋषियों ने कहा कि वर मांगो वानराज। केसरी ने वरदान में मांगा- प्रभु इच्छानुसार रूप धारण करने वाला, पवन के समान पराक्रमी और रूद्र के समान पुत्र आप मुझे प्रदान करें। 

इसलिए कहा जाता है पवन पुत्र हनुमान

एक दिन माता अंजनी, मानव रूप धारण कर पर्वत के शिखर पर जा रही थीं। वहीं डूबते हुए सूर्य को देख रही थीं। तभी अचानकर तेज हवाएं चलने लगीं। माता अंजनी के वस्त्र कुछ उड़ सा गया। उन्होंने चारों तरफ देखा लेकिन आस-पास के और कोई पत्ते भी नहीं हिल रहे थे। 

माता अंजनी ने विचार किया की कोई राक्षस उनके साथ धृष्टता कर रहा है। वो जोर से बोलीं- कौन दुष्ट मुझ परिपराण स्त्री का अपमान कर रहा है। तभी वहां अचानक से पवन देव प्रकट हो गए। उन्होंने कहा-देवी मुझे क्षमा करें मुझपर क्रोधित ना हों। आपके पति को ऋषियों ने मेरे समान पराक्रमी पुत्र होने का वरदान दिया है। उन्हीं महात्माओं के वचनों से विवश होकर मैंने आपके शरीर का स्पर्श किया। मेरे अंश से आपको एक महातेजस्वी बालक प्रप्त होगा। 

उन्होंने आगे कहा, 'भगवान रुद्र मेरे स्पर्श द्वारा आप में प्रविस्ट हुए हैं। वही आपके पुत्र रूप में प्रकट होंगे।' वानरराज केसरी के क्षेत्र में भगवान रुद्र ने स्वयं अवतार धारण किया। इस तरह श्रीरामदूत हनुमानजी ने वानरराज केसरी के यहां जन्म लिया।

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