गुरु रविदास जी का जन्म माघ महीने के पूर्णिमा को आता है। इस साल यानी 2019 में उनकी जयंती 19 फरवरी को मनाई जाएगी। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी के गोबर्धन गांव में हुआ था। रविदास जी ने हमेशा लोगों को सच्चाई की राह पर चलने का मार्ग दिखाया। समाज में फैली ऊंच-नीच की भावना को लोगों के मन के अंदर से दूर किया।
अगर आप रविदास जी के दोहे पढ़ें या सुनेंगे, तो लगेगा जैसे वो सभी को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य कर रहे हैं। उनका मानना है कि सत्य का पालन करना ही भगवान की सच्ची भक्ति है। रविदास जी अध्यात्मिक गुरु के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। चलिए जानते हैं उनके कुछ दोहे-
रविदास जी के दोहे1) मन चंगा तो कठौती में गंगा
इसका मतलब है अगर आपका मन और दिल दोनो साफ हैं, तो आपको ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है अर्थात उनके मन अंदर निवास कर सकते हैं।
2) 'रविदास' जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच
इसका अर्थ है कि इंसान कभी जन्म से नीच नहीं होता, वो अपने बुरे कर्मों से नीच बनता है।
3) हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आसते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
जो मनुष्य ईश्वर की भक्ति छोड़कर दूसरी चीजों को ज्यादा महत्व देता है, उसे अवश्य ही नर्क में जाना पड़ता है। इसलिए इंसान को हमेशा भगवान की भक्ति में ध्यान लगाना चाहिए और इधर-उधर भटकना नहीं चाहिए।
4) जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
अगर केले के तने को छिला जाये पत्ते के नीचे पत्ता ही निकलता है और अंत में पूरा खाली निकलता है। मगर पेड़ खत्म हो जाता है। वैसे ही इंसान को जातियों में बांट दिया गया है। इंसान खत्म हो जाता है मगर जाति खत्म नहीं होती है। इसलिए रविदास जी का कहना है कि जब तक जाति खत्म नहीं होगीं, तब तक इंसान एक दूसरे से जुड़ नही सकता है, कभी भी एक नहीं हो सकता है।
5) कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखावेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव ये सभी एक ही ईश्वर के अलग-अलग नाम है। वेद, कुरान, पुराण में भी एक ही परमेश्वर का गुणगान है। सभी भगवान की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते है।
6) जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बासप्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास
जिस रविदास को देखने से लोगों को घृणा आती थी। उनका निवास नर्क कुंद के समान था। ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना सच में फिर से उनकी मनुष्य के रूप में उत्पत्ति हो गयी है।
7) रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन रामसो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम
जिसके दिल में दिन-रात राम रहते है। उस भक्त को राम समान ही मानना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योकि न तो उनपर क्रोध का असर होता है और न ही काम की भावना उस पर हावी होती है।