गंगा दशहरा 2020: जब महर्षि कपिल ने गुस्से में खोले नेत्र, भस्म हो गई सारी प्रजा, राजा भागीरथ ने किया ये काम-पढ़ें गंगा दशहरा की पूरी व्रत कथा
By मेघना वर्मा | Published: June 1, 2020 08:23 AM2020-06-01T08:23:06+5:302020-06-01T08:47:25+5:30
हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस दिन गंगा के घाटों काशी, प्रयाग और हरिद्वार में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ स्नान के लिए जुटती है।
आज देशभर में गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाएगा। गंगा को देवों की नदी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले या बाद में मां गंगा की पूजा की जाती है। हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस दिन गंगा के घाटों काशी, प्रयाग और हरिद्वार में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ स्नान के लिए जुटती है।
मान्यता है कि गंगा दर्शन मात्र से ही आपके पाप काट जाते हैं। गंगा स्नान को वेदों-पुराणों में भी शुभ बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि गंगा दशहरा के दिन ही मां गंगा का धरती पर आगमन हुआ था। इसलिए हर साल गंगा दशहरा को देश में बड़ी धूम से मनाते हैं।
गंगा दशहरा तिथि व मुहूर्त 2020
दशमी तिथि प्रारंभ - 31 मई 2020 को 05:36 बजे शाम
दशमी तिथि समाप्त - 01 जून को 02:57 बजे शाम
हस्त नक्षत्र प्रारंभ- 01 जून को 3 बजकर एक मिनट पर सुबह
हस्त नक्षत्र समाप्त- 02 जून को 01 बजकर 18 मिनट, सुबह
व्रत कथा
प्राचीन कथाओं की मानें तो एक बार राजा सगन ने व्यापक यज्ञ किया। इस यज्ञ की रक्षा की भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। इंद्र ने सगर से यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था। तभी अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा को लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया। इस अश्व को पाताल लोक में भी खोजा गया तो वहां महर्षि कपिल तपस्या कर रहे हैं। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा था। प्रजा उन्हें देखकर जोर-जोर से चिल्लाने लगी।
जब महर्षि कपिल ने अपने नेत्र खोले तो सारी प्रजा भस्म हो गई। इन मृत लोगों के उद्धार के लिए महाराज दिलीप के पुत्र भागीरथ ने कठोर तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उनसे वर मांगने को कहा। भागीरथ ने गंगा के धरती आगमन की बात कही।
ब्रह्मा जी ने कहा राजन तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो परंतु क्या पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा का वेग संभाल पाएगी। ब्रह्मा जी ने बताया कि गंगा का वेग संभालने की शक्ति सिर्फ भगवान शंकर में है। इसलिए गंगा के अवतरण के लिए भगवान शंकर का अनुग्रह करो।
महाराज भागीरथ फिर भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गए। इसके बाद ब्रह्माजी ने गंगा की एक धार छोड़ी जो सीधे शिव की जी जटाओं में जा गिरी। शिव जी ने अपनी जटाओं में गंगा को समेटकर बांध लिया। गंगा को अब शिव जी की जटा से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल रहा था। जब भागीरथ की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए तो उन्होंने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में बहने लगी और कल-कल कर मैदान की ओर मुड़ीं।
गंगा नदी का वरण कर भागीरथी भाग्यशाली हुए। युगों-युगों से बहने वाली गंगा ना सिर्फ प्राण देती है बल्कि मुक्ति भी प्रदान करती है। गंगा मईया का गुणगान देश ही नहीं विदेशों में भी गाया जाता है।