चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन को महानवमी कहा जाता है। 10 अप्रैल को महानवमी है और इस दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। देवी के इस नौवें रूप को शक्ति स्वरूप माना गया है। जो सिद्धियों की देवी हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त देवी दुर्गा के इस रूप की उपासना करता है वह सारी सिद्धियों को प्राप्त करता है। आइए जानते हैं मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि, मंत्र, कथा और आरती।
महानवमी की पूजा विधि
इस दिन सुबह स्नानकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।पूजा घर में माता की चौकी पर मां सिद्धिदात्री की मूर्ती या तस्वीर रखें। अब देवी को धूप, दीप, नवैद्य दिखाकर उनकी उपासना करें। मां को भोग चढ़ाएं, पूजा घर में ही माता के नाम की आहुति दें।इसके बाद भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा करें।अंत में आरती गाकर चढ़ाएं हुए प्रसाद का वितरण करें।
मां सिद्धिदात्री का मंत्र
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरप।सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
मां सिद्धिदात्री की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मांड की शुरूआत में भगवान भोलेनाथ ने देवी की आदिशक्ति की अराधना की थी। तभी भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कृपा से आठ सिद्धियां प्राप्त किया था। उनका आधा शरीर भी नारी का हो गया था। इसी के कारण उन्हें अर्धनारीश्वर के नाम से बुलाया जाता है। देवी दुर्गा का ये रूप सभी देवों के तेज से प्रकट हुआ था। महिषासुर नामक राक्षस के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवगण ने भगवान भोले और विष्णु के समक्ष सहायता मांगी थी। तब वहां उपस्थित सभी देवगणों से एक-एक तेज उत्पन्न हुआ। उस तेज से दिव्य शक्ति का निर्माण हुआ। जिन्हें सिद्धिदात्री के नाम से जाना गया।
मां सिद्धिदात्री की आरती
जय सिद्धिदात्री मां, तू सिद्धि की दाता।तू भक्तों की रक्षक, तू दासों की माता।तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि।कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम।तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।तू जगदम्बे दाती तू सर्व सिद्धि है।रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो।तू सब काज उसके करती है पूरे।कभी काम उसके रहे ना अधूरे।तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया।सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली।हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।महा नंदा मंदिर में है वास तेरा।मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता।