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Chaitra Navratri 2021 Day 4: कल नवरात्रि के चौथे दिन होती है कुष्मांडा देवी की पूजा, जानें विधि, कथा और मंत्र

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: April 15, 2021 17:07 IST

नवरात्र के चौथे दिन मां को मालपुआ का भोग लगाया जाता है। इस दिन नारंगी वस्त्र पहनकर श्रद्धालु देवी कुष्मांडा की आराधना करते हैं और रोगों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। 

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नवरात्रि के चौथे दिन कल यानि 16 अप्रैल दिन शुक्रवार मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है. यह मां दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कूष्मांडा ने ही इस सृष्टि की रचना की थी.  इसी के चलते इन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा और आदिशक्ति भी कहा जाता है.

पुराण में बताया गया है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था और सृष्टि बिल्कुल शून्य थी तब आदिशक्ति मां दुर्गा ने अंड रूप में ब्रह्मांड की रचना की. इसी कारण देवी का चौथा स्वरूप कूष्मांडा कहलाया. यही देवी सृष्टि की उत्पत्ति करने वाली होने के कारण आदिशक्ति नाम से भी जानी जाती हैं. 

मां कुष्मांडा की पूजा विधि

नवरात्रि के चौथे दिन सुबह स्नान करने के बाद मां कुष्मांडा स्वरूप की विधिवत करने से विशेष फल मिलता है। पूजा में मां को लाल रंग के फूल, गुड़हल या गुलाब का फूल भी प्रयोग में ला सकते हैं, इसके बाद सिंदूर, धूप, गंध, अक्षत् आदि अर्पित करें। सफेद कुम्हड़े की बलि माता को अर्पित करें। कुम्हड़ा भेंट करने के बाद मां को दही और हलवा का भोग लगाएं और प्रसाद में वितरित करें।

मां कुष्मांड को प्रसन्न करने का मंत्र

ॐ देवी कूष्माण्डायै नम:॥

बीज मंत्रकूष्मांडा ऐं ह्री देव्यै नम:

प्रार्थनासुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

स्तुतिया देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

मालपुआ का लगता है भोग

नवरात्र के चौथे दिन मां को मालपुआ का भोग लगाया जाता है। इस दिन नारंगी वस्त्र पहनकर श्रद्धालु देवी कुष्मांडा की आराधना करते हैं और रोगों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। 

मां कुष्मांडा की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार मां कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा। मां दुर्गा असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए कुष्मांडा का अवतार लिया था। मान्यता है कि देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की थी। पूजा के दौरान कुम्हड़े की बलि देने की भी परंपरा है। इसके पीछे मान्यता है ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और पूजा सफल होती है।

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