बसंत पंचमी स्पेशल: कैसे हुआ मां सरस्वती का जन्म, कौन हैं उनके माता-पिता, पढ़ें पौराणिक कहानी

By गुलनीत कौर | Published: February 5, 2019 05:05 PM2019-02-05T17:05:33+5:302019-02-05T17:05:33+5:30

9 फरवरी की दोपहर 12 बजकर 25 मिनट से बसंत पंचमी की पंचमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी, जो कि अगले दिन 10 फरवरी की दोपहर 2 बजकर 8 मिनट तक मान्य रहेगी। इस वर्ष पंचमी तिथि रविवार को है, साथ ही रवि सिद्धि योग एवं अबूझ नक्षत्र भी बन रहा है। इसे अत्यंत शुभ माना जा रहा है।

Basant Panchami special: Birth story of Maa Saraswati, Who is the mother of Saraswati?, Who is the father of Saraswati? | बसंत पंचमी स्पेशल: कैसे हुआ मां सरस्वती का जन्म, कौन हैं उनके माता-पिता, पढ़ें पौराणिक कहानी

बसंत पंचमी स्पेशल: कैसे हुआ मां सरस्वती का जन्म, कौन हैं उनके माता-पिता, पढ़ें पौराणिक कहानी

10 फरवरी, 2019 को बसंत पंचमी का त्योहार है। यह पर्व भारत में एक से अधिक कारणों से मनाया जाता है। पतझड़ समाप्त होने पर बसंत ऋतु के आगमन की खुशी में बसंत माह की पंचमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार इसीदिन विद्या की देवी मां सरस्वती का जन्म हुआ था। यह दिन उनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। चलिए इस पर्व के उपलक्ष्य में आपको मां सरस्वती के नाम और उनके परिवार के बारे में बताते हैं।

मां सरस्वती जन्म कथा

सृष्टि बनाने के बाद भगवान ब्रह्मा ने सबसे पहले मनुष्य 'मनु' को बनाया। इसके बाद भी उन्हें अधूरेपन का एहसास हुआ। उन्होंने अपने कमंडल में हाथ डाला, जल निकाला और धरती पर छिड़क दिया। जल का छिड़काव होते ही एक देवी प्रकट हुईं। इस देवी के एक हाथ में वीणा और दूसरे में पुस्तक थी। देवी का रूप निराला था।

ब्रह्मा की पुत्री सरस्वती

देवी के सुंदर रूप से मोहित होकर भगवान ब्रह्मा को उन्हें अपनी पत्नी बनाने की इच्छा हुई किन्तु ब्रह्मा द्वारा ही उसकी रचना करने की वजह से वह उनकी पुत्री थीं। इसलिए भगवान ब्रहमा ने अपनी यह इच्छा प्रकट ना होने दी। कुछ वर्षों के बाद भगवान ब्रह्मा ने एक महायज्ञ का आयोजना कराया। इस यज्ञ का हिस्सा बनने के लिए कई देवी देवता आए। 

इस तरह के यज्ञ में हमेशा पुरुष के साथ उसकी अर्धांगिनी यानी पत्नी बैठती है। ब्रह्मा ने यह इच्छा प्रकट की कि इस यज्ञ में उनके साथ देवी सरस्वती बैठेंगी। उन्होंने दासियों को देवी के पास भेजा और कहा कि देवी को यज्ञ में शामिल होने का न्योता देकर आएं। ब्रह्मा की आज्ञा पाकर दासियाँ वहां गईं किन्तु अकेली ही वापस लौटीं।

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ब्रह्मा का विवाह

देवी के बिना दासियों को आता देख ब्रह्मा बेहद क्रोधित हो उठे। उन्होंने तुरंत देवराज इंद्र से उनके लिए विवाह योग्य एक कन्या खोजने को कहा। इंद्र ने ब्रह्मा को देवी गायत्री के बारे में बताया। ब्रह्मा विवाह के लिए राजी हो गए और देवी गायत्री से उनके विवाह की रस्में आरम्भ हो गईं। 

इसी बीच देवी सरस्वती मां लक्ष्मी और माता पार्वती के साथ वहां पहुंच गई। ब्रह्मा का अविवाह होते देख वह गुस्से में आ गईं। उन्होंने फ़ौरन इंद्र को ब्रह्मा के लिए कन्या ढूंढने पर श्राप दिया। साथ ही विष्णु और शिव को भी श्राप दिया, क्योंकि वे भी उस विवाह रस्म का हिस्सा थे। अंत में सरस्वती ने ब्रह्मा को ऐसा श्राप दिया जो आज भी मान्य है।

सरस्वती ने दिया श्राप

देवी सरस्वती ने भगवान ब्रह्मा को यह श्राप दिया कि दुनिया भर में कोई मनुष्य उनकी पूजा नहीं करेगा। साल में केवल एक दिन उनकी पोजा होगी। यही कारण है कि देशभर में भगवान ब्रह्मा का केवल एक मंदिर है। किसी भी मंदिर में ब्रह्मा की मूर्ति नहीं मिलती है। क्योंकि उनकी पूजा करने से मां सरस्वती नाराज हो जाती हैं। 

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