Ahoi Ashtami Vrat 2020: अहोई अष्टमी आज, जानिए व्रत की पौराणिक कथा और शुभ मुहूर्त
By गुणातीत ओझा | Published: November 8, 2020 10:57 AM2020-11-08T10:57:14+5:302020-11-08T11:01:35+5:30
उत्तर भारत में मनाया जाने वाली अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) महिलाओं के विशेष पर्वों में से एक है। देवी अहोई को समर्पित इस पर्व पर महिलाएं व्रत रखती हैं।
Ahoi Ashtami Vrat 2020: उत्तर भारत में मनाया जाने वाली अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) महिलाओं के विशेष पर्वों में से एक है। देवी अहोई को समर्पित इस पर्व पर महिलाएं व्रत रखती हैं। अहोई माता (Ahoi Mata) का यह व्रत महिलाएं अपनी संतानों की लंबी आयु और परिवार की सुख समृद्धि के लिए रखती हैं। इस व्रत में अहोई देवी के चित्र के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजा करने की परंपरा है। अहोई अष्टमी का व्रत दीपावली से एक सप्ताह पहले आता है। इस बार अहोई अष्टमी 8 नवंबर को यानि आज रविवार को है।
अहोई अष्टमी की तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त-
-अष्टमी तिथि प्रारंभ- 8 नवंबर 2020 को सुबह 07 बजकर 29 मिनट से।
-अष्टमी तिथि समाप्त- 9 नवंबर 2020 को सुबह 06 बजकर 50 मिनट तक।
-पूजा का मुहूर्त- 8 नवंबर को शाम 05 बजकर 31 मिनट से शाम 06 बजकर 50 मिनट तक।
-कुल अवधि- 1 घंटे 19 मिनट।
-तारों को देखने का समय- 8 नवंबर 2020 को शाम 05 बजकर 56 मिनट।
-चंद्रोदय का समय- 8 नवंबर 2020 को रात 11 बजकर 56 मिनट तक।
अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी पर मां अपने बच्चों के कल्याण के लिए विधि-विधान से व्रत रखती हैं। चंद्रमा या तारों को देखने और पूजा करने के बाद ही यह उपवास तोड़ा जाता है। इस दिन पुत्रवती स्त्रियां निर्जल व्रत रखती हैं और शाम के समय दीवार पर आठ कोनों वाली एक पुतली बनाती हैं। पुतली के पास ही स्याउ माता और उसके बच्चे भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा नि:संतान महिलाएं भी संतान प्राप्ति की कामना से अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं। यह व्रत करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को पड़ता है।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
एक शहर में एक साहूकार और उसके 7 पुत्र रहते थे। एक दिन साहूकार की पत्नी अष्टमी के दिन मिट्टी लेने गई। मगर मिट्टी खोदने के लिए उसने जो कुदाल चलाई, वह सेई की मांद में लग गई। कुदाल लगने से सेई का बच्चा मर गया। इस घटना से व्यथित साहूकार की पत्नी को बहुत पश्चाताप हुआ। इसी बीच कुछ समय बाद उसके एक पुत्र की मृत्यु हो गई। इसके बाद उसके अन्य पुत्रों की भी मृत्यु हो गई। इससे साहूकार की पत्नी शोक में डूब गई। उसने महसूस किया कि यह उसी अभिशाप के कारण हुआ। साहूकार की पत्नी ने अपनी व्यथा अपने पड़ोस की महिलाओं को सुनाई। महिलाओं ने उससे अष्टमी के दिन सेई और उसके बच्चों का चित्र बनाकर मां भगवती की पूजा करके क्षमा याचना करने की सलाह दी। इसके बाद साहूकार की पत्नी हर साल कार्तिक मास की अष्टमी को मां अहोई की पूजा और व्रत करने लगी। देवी उनकी प्रार्थना से इतनी प्रसन्न हुईं कि वह फिर से गर्भवती हो गई और एक के बाद एक उसके सात पुत्र उत्पन्न हुए।