ओलंपिक पुरुष हॉकी में 41 साल के पदक के सूखे को खत्म करने वाले भारतीय खिलाड़ियों की गाथा
By भाषा | Published: August 5, 2021 05:28 PM2021-08-05T17:28:17+5:302021-08-05T17:28:17+5:30
तोक्यो, पांच अगस्त भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने गुरुवार को यहां कांस्य पदक के प्ले-ऑफ मैच में जर्मनी को 5-4 से हराकर 41 साल बाद ओलंपिक पदक जीतकर इतिहास रच दिया।
टीम को कांस्य पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले कुछ खिलाड़ियों जीवन और करियर पर एक नजर।
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मनप्रीत सिंह: प्रेरणादायक कप्तान
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जालंधर के मीठापुर के एक छोटे से गांव का रहने वाले 29 साल के मनप्रीत ने कम उम्र से ही अपनी मां मनजीत कौर को कड़ी मेहनत करते देखा था।
कौर को परिवार का समर्थन करने के लिए काम करना पड़ा, क्योंकि उनके पति मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से घिरे हुए थे। मनप्रीत 2016 में जब सुल्तान अजलान शाह कप में प्रतिस्पर्धा कर रहे थे तब उनके पिता का निधन हो गया था।
भारतीय कप्तान ने 2011 में 19 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय पदार्पण किया था। सीनियर टीम के सदस्य के रूप में उनका पहला बड़ा टूर्नामेंट 2012 लंदन ओलंपिक था। उन्होंने तब से सभी प्रमुख टूर्नामेंटों में देश का प्रतिनिधित्व किया है और 2014 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे।
मनप्रीत की कप्तानी में भारत ने 2018 एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी का खिताब जीता । उन्हें 2019 में एफआईएच साल का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया।
वह पिछले साल कोविड-19 से संक्रमित हो गये थे।
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पीआर श्रीजेश : भारतीय दीवार
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केरल के एर्नाकुलम जिले के किजहक्कमबलम गांव में किसानों के परिवार में जन्में श्रीजेश भारत दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपरों में से एक हैं।
इस 35 वर्षीय खिलाड़ी ने 2006 में श्रीलंका में दक्षिण एशियाई खेलों में सीनियर टीम के लिए पदार्पण किया और 2011 से राष्ट्रीय टीम का अभिन्न अंग रहे हैं।
वह 2016 में कप्तान नियुक्त हुए। टीम ने उनके नेतृत्व में 2016 और 2018 में एफआईएच पुरुष हॉकी चैंपियंस ट्रॉफी में रजत पदक जीता।
उनके पिता, पी वी रवीन्द्रन को गोलकीपिंग किट दिलाने के लिए अपनी गाय बेचनी पड़ी थी।
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हरमनप्रीत सिंह: ड्रैग-फ्लिक के बादशाह
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अमृतसर के बाहरी इलाके में स्थित गांव जंडियाला गुरू टाउनशिप में रहने वाले एक किसान के बेटे, हरमनप्रीत ने 2015 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी में पदार्पण किया। वह 2016 में सुल्तान अजलान शाह कप और एफआईएच पुरुष चैंपियंस ट्रॉफी में रजत जीतने वाली टीमों का हिस्सा थे।
उन्होंने पुरुष विश्व सीरीज फाइनल्स के साथ साथ 2019 ओलंपिक क्वालीफायर में भारत के स्वर्ण जीतने वाले अभियान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
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रुपिंदर पाल सिंह: ड्रैग फ्लिकर
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अपने साथियों के बीच ‘बॉब’ के नाम से जाने जाने वाले रुपिंदर दुनिया के सबसे घातक ड्रैग-फ्लिकर में से एक है। इस लंबे कद के डिफेंडर ने 2010 में सुल्तान अजलान शाह टूर्नामेंट में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण किया, जहां भारत ने स्वर्ण पदक जीता था।
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सिमरनजीत सिंह: सुपर स्ट्राइकर
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जर्मनी के खिलाफ कांस्य पदक प्ले ऑफ में गोल करने वाले 24 साल के इस खिलाड़ी को अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के ‘वैकल्पिक खिलाड़ी’ को टीम में शामिल करने की अनुमति के बाद मैदान पर उतरने का मौका मिला।
जालंधर की सुरजीत सिंह हॉकी अकादमी में अभ्यास करने वाले सिमरनजीत भारत की 2016 जूनियर विश्व कप विजेता टीम के सदस्य भी थे।
उनके चचेरे भाई और जूनियर विश्व कप टीम के साथी गुरजंत सिंह भी इस टीम का हिस्सा हैं। गुरजंत का परिवार उत्तर प्रदेश के पीलीभीत शहर का रहने वाला है।
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हार्दिक सिंह: भविष्य का सितारा
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हॉकी हार्दिक के रगो में है। उनके पिता से लेकर उनके चाचा-चाची तक ने हॉकी में देश का प्रतिनिधित्व किया है।
जालंधर के खुसरूपुर में पैदा हुए 22 वर्षीय मिडफील्डर ने पूर्व भारतीय ड्रैग-फ्लिकर अपने चाचा जुगराज सिंह की देखरेख में अभ्यास किया है।
उनके चाचा गुरमैल सिंह 1980 ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारतीय टीम के सदस्य थे।
हार्दिक ने 2018 हीरो एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में सीनियर टीम के साथ अंतरराष्ट्रीय हॉकी में पदार्पण किया जहां भारत ने स्वर्ण पदक जीता।
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ग्राहम रीड: कोच
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रीड 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली ऑस्ट्रेलियाई हॉकी टीम के सदस्य थे। उन्हें 130 अंतरराष्ट्रीय मैचों के अनुभव है।
महान रिक चार्ल्सवर्थ के शिष्य, रीड 2014 में शीर्ष स्थान पर पहुंचने से पहले पांच साल तक ऑस्ट्रेलियाई टीम के सहायक कोच थे।
उनकी देखरेख में ऑस्ट्रेलिया की टीम क्वार्टर फाइनल में नीदरलैंड से हारकर रियो ओलंपिक में छठे स्थान पर रही।
इस 57 वर्षीय को 2019 में भारतीय पुरुष टीम का कोच नियुक्त किया गया था।
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