#KuchPositiveKarteHain: धान की भूसी से इस शख्स ने 350 से अधिक गांवों को दी बिजली, खोले शिक्षा और रोजगार के नए द्वार
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 9, 2018 12:49 PM2018-08-09T12:49:39+5:302018-08-09T12:49:39+5:30
हस्क पावर सिस्टम के संस्थापक मनोज सिन्हा बिहार के रहने वाले हैं। बिहार भारत के उन राज्यों में से एक है जो कम बिजली उत्पादन करता है।
शाम ढलते ही भारत के कई हिस्सों में खासकर ग्रामीण इलाकों के बहुत से घरों में लालटेन यानी लैंप और दीये जलने शुरू हो जाते थे। गांवों में दीया या लैंप खासकर छात्रों के लिए बहुत ही सहायक रहा है। कई ग्रामीण घरों में लैंप की रोशनी से अंधेरों को मिट जाता था और किसी भी प्रकार कोई डर नहीं लगता था। लेकिन एक वक्त के बाद लैंप और दीया बुझते ही घरों में अंधेरा और डर का महौल उत्पन्न हो जाता था। थोड़ी हवा चलने से हमारे दीये गुलाटियां मारते ही बुझ जाते थे जिससे कई भविष्य और सपने अंधेरे तले दब जाते थे।
इसी अंधेरे और सपनो तले एक इंसान ऐसा निकला है जो छात्रों के सपने को अंधेरे तले दबने नहीं दिया। बिहार के मनोज सिन्हा जिन्होंने जैविक कचड़े से बिजली उत्पन्न कर घर-घर में रोशनी दिया। मनोज सिन्हा के पॉजिटिव कदम से न केवल लोगों के घरों में रोशनी पहुंची बल्कि छात्रों को शिक्षित किया और लोगों को रोजगार भी दिया। आइए जानते हैं क्या है मनोज सिन्हा द्वारा इजात हस्क पावर सिस्टम और उनके टीम की कहानी...
हस्क पावर सिस्टम के संस्थापक मनोज सिन्हा बिहार में ही पालन-पोषण हुआ और यहीं बड़े हुए। बिहार भारत के उन राज्यों में से एक है जो कम बिजली उत्पादन करता है। यानी यहां हमेशा से बिजली की कटौती होती रही है। बिहार के कई ऐसे गांव है जहां आज भी बिजली का खंभा तो है लेकिन बिजली बहुत कम आता है। ऐसे में मनोज सिन्हा ने कहा कि मेरी परविश भी कुछ ऐसी ही स्थित में हुई थी। उन्होंने कहा कि मैं ऐसे स्थान पर बड़ा हुआ जहां बिजली की कमी थी जिसने मेरे छात्र शिक्षा और खुद को प्रभावित किया। मैं चाहे देश में था या विदेश में, बिजली की कमी को लेकर लगातार मेरे दिमाग में चलता था।
हस्क पावर सिस्टम्स की स्थापना 2007 में हुई थी, जिसमें कंपनी ने बिहार और उत्तर प्रदेश में ग्रामीण ग्राहकों की सेवा के लिए ऑफ-ग्रिड पावर जनरेशन और वितरण समाधान की पेशकश की थी।
क्या है हस्क पावर सिस्टम
भारत में हस्क पावर ऐसी कंपनी है जो 100 फीसदी बायोमास गैसीफिकेशन का उपयोग कर बिजली का उत्पादन करती है। यह कंपनी गांव वालों और छोटे बिजनेस के लिए चावल के भूसा की तर्ज पर बिजली का उत्पादन करती है जो पूरी तरह से बायोमास गैसीफिकेशन है। कंपनी ने तब से अपना व्यावसायिक मॉडल विकसित किया है और यह लॉन्च किया है कि यह दुनिया की पहली हाइब्रिड संचालित मिनी-ग्रिड प्रणाली है जो ग्राहकों को ग्रिड-संगत, अत्यधिक विश्वसनीय और 24/7 पावर प्रदान करता है।
मनोज सिन्हा बताते हैं शुरुआत में हमने सौर उर्जा का उपयोग किया। लेकिन बाद में समझ में आया कि यह बहुत ही मंहगा है। इसके बाद हमने बिजली का उत्पान करने के लिए बायोमास गैसफिकेशन का इस्तेमाल किया। सौर उर्जा के बारे में बताते हुए कहा कि "सौर संयंत्र इकाई की स्थापना करना लगभग 20 गुना अधिक महंगा था।"
कैसे काम करता है हस्क पावर
चावल की भूसी बिजली संयंत्रों के लिए ईंधन एक संसाधन है जो बिहार में बहुतायत में उपलब्ध है। किसानों को अपने चावल मिलों में मिलता है जहां अनाज और भूसी अलग हो जाती है। जबकि किसान अनाज के साथ छोड़ देता है, भूसी इकट्ठा और हुस्क पावर सिस्टम को बेचा जाता है। बिजली उत्पादन करने की यह विधि भी अत्यधिक ऊर्जा-कुशल है क्योंकि कार्बन उत्पादित लगभग नगण्य है।
मनोज कहते हैं कि इसमें एक स्मार्ट प्री-पेड मीटर के साथ प्राइज लगा है जो दिन के समय के आधार पर भिन्न होता है, जिसमें 10 रुपये के अंदर आने वाले उछाल के साथ मूल्य-मूल्य निर्धारण होता है।
शिक्षा और बिजनेस को मिला लाभ
पावर प्लांट से लाभ के बाद ग्रामीणों का कहना है कि मुझे लगता है कि जब मैं अपने बच्चों को घर पर उचित रोशनी में पढ़ने में सक्षम हूं तो मुझे खुशी की भावना महसूस होती है। जब मैं पढ़ रहा था, सूर्यास्त के बाद पढ़ने में सक्षम होना ऐसा काम था। आधा समय, मुझे नहीं पता था कि मैं क्या पढ़ रहा था। इसके अलावा पावर प्लांट ने न केवल रोशनी देकर शिक्षा का विस्तार किया बल्कि इससे छोटे रोजगार भी पैदा हुए। मनोज कहते हैं, "मैंने लोगों को अब विभिन्न व्यवसायों में शामिल होने को देखा है, क्योंकि उनके पास बिजली की निर्बाध आपूर्ति है। हुस्क पावर के एक ग्राहक ने पहले से चल रहे एक से दस फ्रीजर स्थापित किए हैं और गर्मियों के दौरान एक दिन में लगभग 2,000 आइसक्रीम बेचते हैं। यह, एक गांव में जहां निवासियों ने कभी भी आइसक्रीम का स्वाद नहीं लिया था। एक अन्य ग्राहक ने एक नई आरओ जल शोधन इकाई स्थापित की है और हर दिन 2,500 लीटर पानी बेच रहे है। "
पिछले दशक में, कंपनी निवेश के कई दौर से गुजर चुकी है। मनोज कहते हैं, "हमने 50 लाख रुपये की शुरुआती पूंजी शुरू कर दी और इसके साथ दो बिजली संयंत्र स्थापित किए। एक और चीज जिसे हम जानबूझकर करते हैं, स्थानीय गांवों से लोगों की भर्ती करते हैं। जबकि हम राजस्व पैदा कर रहे हैं, हम उस राजस्व का एक हिस्सा सिस्टम में वापस पंप कर रहे हैं। "
यह प्रदर्शित करने में सक्षम होने के नाते कि ये सिस्टम टिकाऊ हैं, उन्हें प्रारंभिक निवेश के साथ उनकी मदद मिली, जो कि सामाजिक प्रभाव फंड जैसे कि इक्मेन फंड और बांस फाइनेंस से आया था। मनोज कहते हैं कि इन निवेशों ने उन्हें दो बिजली संयंत्रों से लगभग 50 बिजली संयंत्रों तक पहुंचने में मदद की।