पुण्यतिथिः नेहरू के निधन पर अटल बिहारी के उद्गार, 'सूर्य अस्त हो गया, तारों की छाया में हमें अपना मार्ग ढूंढना है'

By आदित्य द्विवेदी | Published: May 27, 2018 09:34 AM2018-05-27T09:34:10+5:302018-05-27T09:36:22+5:30

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि पर विशेष।

Jawahar Lal Nehru Death anniversary: Atal Bihari Vajpeyi speech in Lok sabha on 29 May 1964 | पुण्यतिथिः नेहरू के निधन पर अटल बिहारी के उद्गार, 'सूर्य अस्त हो गया, तारों की छाया में हमें अपना मार्ग ढूंढना है'

पुण्यतिथिः नेहरू के निधन पर अटल बिहारी के उद्गार, 'सूर्य अस्त हो गया, तारों की छाया में हमें अपना मार्ग ढूंढना है'

आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू वर्तमान चुनावी राजनीति में प्रासंगिक बने हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेता उन पर सवाल उठा रहे हैं। सरदार वल्लभ भाई पटेल से नेहरू की अनबन की कहानियां बन रही हैं। ट्रोल आर्मी पूरी तन्मयता से इस काम को अंजाम दे रही है। 27 मई 1964 जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ था। 29 मई 1964 को अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में उन्हें श्रृद्धांजलि देते हुए जो कहा था उसे आज के राजनेताओं को पढ़ने की जरूरत है। अटल जी का यह भाषण साबित करता है कि ना सिर्फ जनता और कांग्रेस, बल्कि विरोधी भी प्रधानमंत्री नेहरू के कायल थे। पढ़ें, अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दः-

अध्यक्ष महोदय,

एक सपना था जो अधूरा रह गया, एक गीत था जो गूँगा हो गया, एक लौ थी जो अनन्त में विलीन हो गई। सपना था एक ऐसे संसार का जो भय और भूख से रहित होगा, गीत था एक ऐसे महाकाव्य का जिसमें गीता की गूँज और गुलाब की गंध थी। लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रात भर जलता रहा, हर अँधेरे से लड़ता रहा और हमें रास्ता दिखाकर, एक प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गया।

मृत्यु ध्रुव है, शरीर नश्वर है। कल कंचन की जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ा कर आए, उसका नाश निश्चित था। लेकिन क्या यह ज़रूरी था कि मौत इतनी चोरी छिपे आती? जब संगी-साथी सोए पड़े थे, जब पहरेदार बेखबर थे, हमारे जीवन की एक अमूल्य निधि लुट गई। भारत माता आज शोकमग्ना है – उसका सबसे लाड़ला राजकुमार खो गया। मानवता आज खिन्नमना है – उसका पुजारी सो गया। शांति आज अशांत है – उसका रक्षक चला गया। दलितों का सहारा छूट गया। जन जन की आँख का तारा टूट गया। यवनिका पात हो गया। विश्व के रंगमंच का प्रमुख अभिनेता अपना अंतिम अभिनय दिखाकर अन्तर्ध्यान हो गया।

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में भगवान राम के सम्बंध में कहा है कि वे असंभवों के समन्वय थे। पंडितजी के जीवन में महाकवि के उसी कथन की एक झलक दिखाई देती है। वह शांति के पुजारी, किन्तु क्रान्ति के अग्रदूत थे; वे अहिंसा के उपासक थे, किन्तु स्वाधीनता और सम्मान की रक्षा के लिए हर हथियार से लड़ने के हिमायती थे।

वे व्यक्तिगत स्वाधीनता के समर्थक थे किन्तु आर्थिक समानता लाने के लिए प्रतिबद्ध थे। उन्होंने समझौता करने में किसी से भय नहीं खाया, किन्तु किसी से भयभीत होकर समझौता नहीं किया। पाकिस्तान और चीन के प्रति उनकी नीति इसी अद्भुत सम्मिश्रण की प्रतीक थी। उसमें उदारता भी थी, दृढ़ता भी थी। यह दुर्भाग्य है कि इस उदारता को दुर्बलता समझा गया, जबकि कुछ लोगों ने उनकी दृढ़ता को हठवादिता समझा।

मुझे याद है, चीनी आक्रमण के दिनों में जब हमारे पश्चिमी मित्र इस बात का प्रयत्न कर रहे थे कि हम कश्मीर के प्रश्न पर पाकिस्तान से कोई समझौता कर लें तब एक दिन मैंने उन्हें बड़ा क्रुद्ध पाया। जब उनसे कहा गया कि कश्मीर के प्रश्न पर समझौता नहीं होगा तो हमें दो मोर्चों पर लड़ना पड़ेगा तो बिगड़ गए और कहने लगे कि अगर आवश्यकता पड़ेगी तो हम दोनों मोर्चों पर लड़ेंगे। किसी दबाव में आकर वे बातचीत करने के खिलाफ थे।

महोदय, जिस स्वतंत्रता के वे सेनानी और संरक्षक थे, आज वह स्वतंत्रता संकटापन्न है। सम्पूर्ण शक्ति के साथ हमें उसकी रक्षा करनी होगी। जिस राष्ट्रीय एकता और अखंडता के वे उन्नायक थे, आज वह भी विपदग्रस्त है। हर मूल्य चुका कर हमें उसे कायम रखना होगा। जिस भारतीय लोकतंत्र की उन्होंने स्थापना की, उसे सफल बनाया, आज उसके भविष्य के प्रति भी आशंकाएं प्रकट की जा रही हैं। हमें अपनी एकता से, अनुशासन से, आत्म-विश्वास से इस लोकतंत्र को सफल करके दिखाना है। नेता चला गया, अनुयायी रह गए। सूर्य अस्त हो गया, तारों की छाया में हमें अपना मार्ग ढूँढना है।

यह एक महान परीक्षा का काल है। यदि हम सब अपने को समर्पित कर सकें एक ऐसे महान उद्देश्य के लिए जिसके अन्तर्गत भारत सशक्त हो, समर्थ और समृद्ध हो और स्वाभिमान के साथ विश्व शांति की चिरस्थापना में अपना योग दे सके तो हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने में सफल होंगे। संसद में उनका अभाव कभी नहीं भरेगा। शायद तीन मूर्ति को उन जैसा व्यक्ति कभी भी अपने अस्तित्व से सार्थक नहीं करेगा।

वह व्यक्तित्व, वह ज़िंदादिली, विरोधी को भी साथ ले कर चलने की वह भावना, वह सज्जनता, वह महानता शायद निकट भविष्य में देखने को नहीं मिलेगी। मतभेद होते हुए भी उनके महान आदर्शों के प्रति, उनकी प्रामाणिकता के प्रति, उनकी देशभक्ति के प्रति, और उनके अटूट साहस के प्रति हमारे हृदय में आदर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

इन्हीं शब्दों के साथ मैं उस महान आत्मा के प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

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English summary :
May 27 marks the 54th death anniversary of the first Prime Minister of India, Pandit Jawahar Lal Nehru. Read Atal Bihari Vajpeyi speech about Nehru in loksabha on 29 may 1964.


Web Title: Jawahar Lal Nehru Death anniversary: Atal Bihari Vajpeyi speech in Lok sabha on 29 May 1964

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