8 दिनों तक पैदल चलने के बाद नसीब हुए पहिए, बच्चों-महिलाओं के साथ भिवंडी से निकला था छत्तीसगढ़ के मजदूरों का जत्था

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 12, 2020 08:41 AM2020-05-12T08:41:25+5:302020-05-12T08:41:25+5:30

करीब डेढ़ महीने से जारी लॉकडाउन ने श्रमिकों से रोजी और रोटी छीन ली है. परिवहन सेवाएं ठप हैं. ऐसे में मजदूर अपने घर लौटने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की पदयात्रा करने को विवश हैं.

akola news Migrant workers group walking For 8 days 500KM police help to reached home Chhattisgarh | 8 दिनों तक पैदल चलने के बाद नसीब हुए पहिए, बच्चों-महिलाओं के साथ भिवंडी से निकला था छत्तीसगढ़ के मजदूरों का जत्था

प्रतीकात्मक तस्वीर

Highlightsआठ दिनों पूर्व मुंबई के करीब भिवंडी से बच्चों, महिलाओं समेत कुल 42 लोगों का जत्था पैदल ही छत्तीसगढ़ की ओर रवाना हुआ था.अकोला प्रशासन ने सभी 42 लोगों को दो ट्रकों में बिठाकर उनके घर पहुंचाया।

अकोला:  कोरोना संक्रमण के कारण जारी लॉकडाउन ने भले ही कई मुश्किलें खड़ी की हैं लेकिन इन मुश्किलों ने मानवता को भी बढ़ावा दिया है. हर कोई एक-दूसरे की मदद करने को तत्पर है. फिर वह आम इंसान हो या वर्दीधारी अधिकारी. खाकी वर्दी में छिपे मानवता के इसी चेहरे की बदौलत बच्चों के साथ 500 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर चुके छत्तीसगढ़ के 42 श्रमजीवी एक ही रात में बसों के जरिए उनके घर पहुंचा दिए गए. इंसानियत की मिसाल पेश करती यह पहल अकोला आरटीओ, अकोला जिला प्रशासन एवं राज्य परिवहन निगम के अधिकारियों की संयुक्त कोशिश की बदौलत रंग ला सकी.

आठ दिनों से पैदल चल रहा था बच्चों, महिलाओं समेत कुल 42 लोगों का जत्था

आठ दिनों पूर्व मुंबई के करीब भिवंडी से बच्चों, महिलाओं समेत कुल 42 लोगों का जत्था पैदल ही छत्तीसगढ़ की ओर रवाना हुआ. इनमें श्रमिकों, महिलाओं और बच्चों का समावेश था. आठ दिनों से जारी पैदल यात्रा के दौरान करीब 500 किलोमीटर की दूरी तय कर ये लोग रविवार दोपहर को कलकत्ता-मुंबई राजमार्ग पर स्थित अकोला जिले की बालापुर तहसील के ग्राम रिधोरा तक पहुंचे थे.

अकोला प्रशासन ने ऐसे पहुंचाया घर

रविवार (10 मई) दोपहर अकोला आरटीओ के इंस्पेक्टर विनोद वसईकर अपने उड़न दस्ते में शामिल साथी पंचोली, नेवड़े, चालक मो. अतहर के साथ ड्यूटी पर थे. इस दौरान उनकी नजर इन श्रमिकों पर पड़ी. खाकी वर्दीधारी दस्ते को देखकर श्रमिकों ने राजमार्ग पर स्थित एक ढाबे की आड़ में छिपने की कोशिश की लेकिन वसईकर अपने दल के साथ वहां पहुंच गए. वर्दीधारियों को देखकर श्रमिक सहमे हुए थे क्योंकि इसके पूर्व उनके कुछ साथियों को घर भेजने की बजाय 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन कर दिया गया था. आरटीओ के दल ने श्रमिकों के असमंजस एवं डर को भांपकर उन्हें ढांढस बंधाया और पूछताछ शुरु की. बातचीत में पता चला कि छत्तीसगढ़ स्थित अपने गांव जाने के लिए बच्चों-महिलाओं के साथ यह जत्था भिवंडी से पैदल चला रहा रहा है. श्रमिकों की व्यथा सुनकर भावुक हुए आरटीओ इंस्पेक्टर वसईकर इन सभी को दो ट्रकों में बैठाकर अकोला के बस स्टैंड पर ले आए.

अकोला के उप प्रादेशिक परिवहन अधिकारी विनोद जिचकार, सहायक प्रादेशिक परिवहन अधिकारी गोपाल वरोकार, रापनि की अकोला विभाग की प्रमुख चेतना खिरोडकर, एसडीएम डॉ. नीलेश अपार, निवासी उप जिलाधिकारी संजय खड़से के बीच काफी समय तक बातचीत होती रही. उसके बाद जिलाधिकारी जितेंद्र पापलकर की अनुमति से श्रमिकों को निशुल्क सेवा देकर छत्तीसगढ़ की सीमा तक छोड़ने का निर्णय लिया गया. श्रमिकों की थर्मल स्क्रीनिंग कर रविवार रात दो बसें तैयार की गईं. 21-21 श्रमजीवियों को दो बसों के जरिए छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित महाराष्ट्र के देवड़ी तक छोड़ा गया.

आरटीओ की नजर न पड़ती और प्रशासन का साथ न मिलता तो इन मजदूरों को और न जाने कितने दिनों तक पैदल यात्रा करनी पड़ती, लेकिन वर्दी और प्रशासन की मानवता ने श्रमिकों का रास्ता आसान कर दिया. बॉक्स बच्चों को दिया दूध और बिस्कुट श्रमिकों के साथ छोटे बच्चे भी थे. आरटीओ एवं प्रशासन के अधिकारियों ने दोपहर में बच्चों के लिए दूध, बिस्कुट और बड़ों के लिए नाश्ते की व्यवस्था की. इसके उपरांत छत्तीसगढ़ रवाना होने के पहले श्रमिकों को भोजन भी दिया गया. राज्य सरकार द्वारा हाल ही में जारी आदेश के कारण श्रमिकों को घर वापसी के लिए बस का किराया भी नहीं देना पड़ा. फोटो: ट्रक से बस स्टैंड पहुंचे छत्तीसगढ़ के श्रमिक.

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