पश्चिम बंगाल एनआरसी के बाद अब नागरिकता बिल को लेकर पशोपेश में, बीजेपी, तृणमूल हैं आमने-सामने
By अभिषेक पाण्डेय | Published: December 11, 2019 08:10 AM2019-12-11T08:10:45+5:302019-12-11T08:10:45+5:30
West Bengal: NRC, CAB: एनआरसी के बाद अब पश्चिम बंगाल में नागरिकता संशोधन बिल को लेकर भी अजीबोगरीब स्थिति है
नागरिकता संशोधन बिल 2019 को लेकर पूर्वोत्तर के राज्य उबाल पर हैं और वहां तीव्र विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में ये विधेयक कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, अगर बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार अवैध अप्रवासियों की पहचान के लिए पूरे देश में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंश (एआरसी) लागू करती है।
पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं। शायद इसी को देखते हुए बीजेपी ने सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पर बहस के लिए पश्चिम बंगाल से अपने पांच सांसदों को उतारा। इनमें राज्य बीजेपी प्रमुख दिलीप घोष, महिला मोर्चा की अध्यक्ष लॉकेट चटजी, दार्जिलिंग से संसांद राजू बिष्टा, शांतनु ठाकुर, जिनका मतुआ समुदाय धार्मिक उत्पीड़न के डर से बांग्लादेश छोड़कर भारत आ गया और सौमित्र खान, जो लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे। ये पार्टी के लिए किसी भी राज्य से इस बिल पर बोलने वाले सांसदों की सबसे ज्यादा संख्या था। इसके उलट, असम के इसने केवल तीन सांसदों को उतारा।
बांग्लादेश से आए लोगों पर जमकर होती रही है राजनीति
पश्चिम बंगाल में 1971 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से लगभग 1 करोड़ लोगों की आमद पिछले कई वर्षों से राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच विवाद की वजह रहा है- इनमें से कुछ लौट गए थे। पहले, कांग्रेस और तृणमूल लेफ्ट फ्रंट सरकार पर वोटों के लिए उन्हें बसाने का आरोप लगाती थी। अब कहानी उलट गई है, और बीजेपी कुछ वैसे ही आरोप तृणमूल कांग्रेस पर लगा रही है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार को सीएबी को लोकसभा में पेश करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चिंताओं को दूर करने की कोशिश की और बंगाल के अपने सांसदों से कहा कि, 'कई लोग इस बहस को इस उम्मीद में देख रहे हैं कि आप उनकी नागरिकता का समर्थन करेंगे।'
सीएबी को लेकर शाह ने दिया था गैर-मुस्लिमों को रक्षा का आश्वासन
संयोग से 1 अक्टूबर को, अमित शाह ने इस बात पर प्रकाश डालने के लिए कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम को चुना कि सीएबी एनआरसी से बाहर हुए गैर-मुस्लिमों की सुरक्षा करता है। शाह का यह बयान मुख्य रूप से असम से प्राप्त उन रिपोर्टों के कारण कि एनआरसी में मुसलमान से ज्यादा हिंदू बाहर हुए हैं, को लेकर उनकी पार्टी की बंगाल इकाई के भीतर उठी आशंकाओं को दरकिनार करने के लिए था।
लोकसभा में साह ने जोर देकर कहा कि सीएबी उन लोगों की भी रक्षा करता है जिन्हें शरणार्थी के तौर पर भारत आने के बाद नौकरी मिल गई। उन्होंने कहा, 'ये संदेश बंगाल और पूवोत्तर के उन शरणार्थियों तक स्पष्ट पहुंचना चाहिए कि जिस दिन आप भारत आए उसी दिन से आपको नागरिकता दी जाएगी।'
बांग्लादेश से लोग धार्मिक नहीं भाषाई उत्पीड़न से आए: तृणमूल
इस रिपोर्ट के मुताबिक, तृणमूल राज्यसभा प्रमुख व्हिप सुखेंदु सेखर रॉय ने कहा कि पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोगों की आमद लंबे समय से एक समस्या रही है। वह कहते हैं, 'यहां एक समस्या है: बांग्लादेश में ये भाषाई आधार पर हुआ। ये बंगाली बोलने वाले लोग यहां धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर नहीं आए बल्कि उर्दू बोलने वालों के हाथों भाषाई उत्पीड़न के डर से आए।'
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही इस पर कड़ा रुख अख्तियार कर चुकी हैं और कह चुकी हैं कि वह सीएबी को बंगाल में लागू नहीं होने देंगी। नागरिकता बिल पर बहस के दौरा उनकी पार्टी का यह कहना है कि NRC को CAB से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि उत्तरार्द्ध का उद्देश्य NRC से पैदा हुए गलतियों को ढंकना है।
बीजेपी ने बंगाल में लोकसभा चुनावों में 42 में से 18 सीटें जीती
मई में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अवैध घुसपैठियों पर नकेल कसने का वादे पर राज्य में 42 में से 18 सीटों पर कब्जा जमाया था। इनमें बड़ी संख्या में सीमा पार से आने वाले मुसलमान भी हैं, जो परंपरागत रूप से तृणमूल वोटबैंक रहे हैं।
लेकिन जब नवंबर में बीजेपी तीने विधानसभा उपचुनावों में हार गई तो दोनों ही पार्टियों ने इसके लिए अमित शाह द्वारा पूरे देश में प्रस्तावित एनआरसी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया।
पूर्वोत्तर के राज्यों को छोड़कर लोकसभा चुनावों के दौरान एनआरसी का मुद्दा सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल में ही उठा। रानीगंज में अमित शाह ने घुसपैठियों को 'दीमक' के रूप में परिभाषित किया। मालदा में उन्होंने वादा किया कि न सिर्फ 'बंगाल बल्कि पूरे देश की घुसपैठियों से रक्षा की जाएगी।'
वहीं नेताजी इंडोर स्टेडियम में शाह ने कहा, 'ममता बनर्जी कह रही हैं कि लाखों हिंदू शरणार्थियों को देश के बाहर फेंक दिया जाएगा। मैं यहां अपने सभी शरणार्थी भाइयों को आश्वस्त करने आया हूं...मैं सभी हिंदुओं, सिखों, जैन, बौद्धों और ईसाई शरणार्थियों को निश्चिंत करना चाहता हूं कि आपको भारत छोड़ने को विवश नहीं किया जाएगा। एनआरसी से पहले हम नागरिकता संशोधन बिल लाएंगे, ये सुनिश्चित करने के लिए इन लोगों को भारतीय नागरिकता मिले। इन लोगों को भारतीय नागरिकों के सभी अधिकार मिलेंगे।'
सोमवार को नागरिकता बिल पर लोकसभा में चर्चा के दौरान शाह ने जोर देकर कहा कि पूरे देश में एनआरसी लागू करना पाइपलाइन में है। इससे महज एक साल पहले 18 दिसंबर 2018 को तब के गृह मंत्री रहे राजनाथ सिंह ने कहा थआ कि अभी असम के अलावा एनआरसी को कहीं और लागू करने की कोई योजना नहीं है।