मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं को प्रवेश क्यों नहीं, यह तो अधिकार का हनन है, सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से मांगा जवाब

By भाषा | Updated: October 25, 2019 19:31 IST2019-10-25T19:31:40+5:302019-10-25T19:31:40+5:30

पीठ ने महाराष्ट्र राज्य बोर्ड ऑफ वक्फ, सेन्ट्रल वक्फ काउन्सिल और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को याचिका की प्रति के साथ नोटिस जारी करने का आदेश दिया। पीठ ने यास्मीन जुबैर अहमद पीरजाद और जुबेर अहमद नजीर अहमद पीरजाद की याचिका पांच नवंबर को आगे सुनवाई के लिये सूचीबद्ध की है।

Why Muslim women do not enter mosques, this is a violation of authority, Supreme Court asks the Center | मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं को प्रवेश क्यों नहीं, यह तो अधिकार का हनन है, सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से मांगा जवाब

केन्द्र सरकार की ओर से अधिवक्ता रजत नायर ने नोटिस स्वीकार किया।

Highlightsइससे जीवन जीने के अधिकार, समता और लैंगिक न्याय के अधिकारों का हनन होता है।संवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 21 का हनन करने वाला करार दिया जाये।

उच्चतम न्यायालय ने देश की सभी मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं को प्रवेश की अनुमति के लिये दायर जनहित याचिका पर शुक्रवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा।

याचिका में दावा किया गया है कि प्रवेश पर पाबंदी असंवैधानिक है और इससे जीवन जीने के अधिकार, समता और लैंगिक न्याय के अधिकारों का हनन होता है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस ए नजीर की पीठ ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति के लिये दायर याचिका पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, विधि एवं न्याय मंत्रालय तथा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय सहित प्रतिवादियों को नोटिस जारी किये गये थे लेकिन इनमें से तीन प्रतिवादियों पर इसकी तामील नहीं हुयी है।

पीठ ने महाराष्ट्र राज्य बोर्ड ऑफ वक्फ, सेन्ट्रल वक्फ काउन्सिल और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को याचिका की प्रति के साथ नोटिस जारी करने का आदेश दिया। पीठ ने यास्मीन जुबैर अहमद पीरजाद और जुबेर अहमद नजीर अहमद पीरजाद की याचिका पांच नवंबर को आगे सुनवाई के लिये सूचीबद्ध की है।

केन्द्र सरकार की ओर से अधिवक्ता रजत नायर ने नोटिस स्वीकार किया। याचिका मे सरकार के प्राधिकारियों और मुस्लिम संगठनों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि वे मुस्लिम महिलाओं को मस्जिदों में नमाज पढ़ने की इजाजत दें।

याचिका में कहा गया है कि कथित परंपरागत प्रथा को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 21 का हनन करने वाला करार दिया जाये। याचिकाकर्ताओं ने संविधान के प्रावधानों का हवाला देते हुये कहा कि देश के किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, वर्ण, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए।

याचिका में कहा गया है कि भारत में मस्जिदें सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं और अनुदान का लाभ उठा रही है, इसलिए उन्हें मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने का निर्देश दिया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने इससे पहले याचिका पर नोटिस जारी करते समय कहा था कि सबरीमला मंदिर प्रकरण में संविधान पीठ के फैसले की वजह से वह इस जनहित याचिका पर विचार करेगी।

संविधान पीठ ने 28 सितंबर, 2018 को बहुमत के फैसले में सबरीमला मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करते हुये कहा था कि उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लैंगिक भेदभाव के समान है। इस निर्णय से पहले तक इस मंदिर में एक आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था।

Web Title: Why Muslim women do not enter mosques, this is a violation of authority, Supreme Court asks the Center

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