UP: पंचायत चुनाव में कोविड से दो हजार से ज्यादा कर्मचारियों की मौत, सरकार ने की मुआवजा राशि देने की सिफारिश
By अभिषेक पारीक | Published: July 19, 2021 07:30 PM2021-07-19T19:30:42+5:302021-07-20T09:24:43+5:30
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य चुनाव आयोग से पंचायत चुनावों के दौरान जान गंवाने वाले सरकारी कर्मचारियों के परिवार को मुआवजा देने का अनुरोध किया है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य चुनाव आयोग से पंचायत चुनावों के दौरान जान गंवाने वाले सरकारी कर्मचारियों के परिवार को मुआवजा देने की सिफारिश की है। इन कर्मचारियों की अप्रैल में आयोजित पंचायत चुनाव में अनिवार्य ड्यूटी के दौरान कोविड-19 से मौत हो गई थी।
इस बारे में अतिरिक्त मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने 13 जुलाई को राज्य चुनाव आयोग के सचिव को पत्र लिखा है। इसके लिए 3,092 आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें से 2,020 मतदानकर्मियों के परिजनों को मुआवजे के लिए पात्र पाया गया। कुछ आवेदन कोविड-19 सलाहकार बोर्ड को भेजे गए हैं।
30 दिनों में जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवजा
इस पत्र में लिखा है कि कोविड-19 के मद्देनजर डयूटी को संशोधित किया गया है। जिसके तहत अब चुनाव ड्यूटी की तारीख से 30 दिनों में अपनी जान गंवाने वाले सरकारी कर्मचारियों के परिजनों को मुआवजा राशि दी जाएगी। उन्होंने अधिकारियों से मुआवजा राशि के संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
सर्वाधिक आजमगढ़ के 75 सरकारी कर्मचारी
इस सूची में पंचायत चुनाव के दौरान जान गंवाने वाले आजमगढ़ के 75, गोरखपुर के 72, प्रयागराज के 59, देवरिया के 51, मुरादाबाद, सीतापुर, जौनपुर और बुलंदशहर के 43-43, रायबरेली, अयोध्या और बरेली के 47-47 सरकारी कर्मचारी शामिल हैं। बिजनौर से 41 और लखीमपुर खीरी से 46 सरकारी कर्मचारी शामिल हैं।
30 लाख रुपये की मुआवजा राशि
संशोधित नियमों के अनुसार, चुनाव ड्यूटी करने वाले मृतक सरकारी कर्मचारी की मृत्यु कोविड या कोविड बाद की जटिलताओं के कारण हुई है तो उनके परिजनों को 30 लाख रुपये की मुआवजा राशि दी जाएगी।
इसलिए उठाया कदम
इससे पहले, पंचायत चुनाव के तहत चुनाव ड्यूटी की अवधि, मतदानकर्मी के प्रशिक्षण, मतगणना और अन्य चुनाव संबंधी गतिविधियों की अवधि तक सीमित थी। इसलिए, कई कर्मचारी जिन्होंने चुनाव ड्यूटी अवधि के बाद संक्रमण के कारण दम तोड़ दिया, उन्हें मुआवजे के लिए पात्र नहीं माना गया। जिसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार की जमकर आलोचना हुई थी, जिसके कारण सरकार को नियमों में बदलाव करना पड़ा।