UP Elections 2022: अखिलेश यादव के 'मेला होबे' के जवाब में भाजपा लगाएगी कल्याण सिंह दाँव, खोजी सपा के जातीय गणित की काट
By सतीश कुमार सिंह | Published: January 17, 2022 06:40 PM2022-01-17T18:40:24+5:302022-01-17T18:42:33+5:30
UP Elections 2022: 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अकेले 312 और उसके सहयोगियों को 13 सीटों पर जीत मिली थी। सत्ता गंवाकर प्रमुख विपक्षी दल बनी समाजवादी पार्टी सिर्फ 47 सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी।
UP Elections 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शनिवार को 105 उम्मीदवारों की घोषणा की थी। उम्मीदवारों की पहली सूची में देखा जाए तो बीजेपी पूर्व सीएम कल्याण सिंह फॉर्मूले का अनुसरण कर रही है।
भाजपा ने जिन उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं, उनमें 44 अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं, जबकि 19 अनुसूचित जाति से हैं। दोनों वर्गों को मिलाकर यह आंकड़ा कुल घोषित उम्मीदवारों का 60 प्रतिशत है। पहले दो चरणों में जिन इलाकों में मतदान होना है, वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट बाहुल्य वाला इलाका है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब 2013 में उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे तो सभी जातियों को एकजुट किया था। खासकर ओबीसी और दलित पर फोकस किया था। भाजपा को उसका फायदा भी मिला। 2014 लोकसभा चुनाव, 2017 विधानसभा चुनाव और 2019 आम चुनाव में जोरदार जीत दर्ज की थी। आपको बता दें कि सपा प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 'मेला होबे' का नारा दिया है।
विपक्षी सदस्यों के एक वर्ग ने यह दावा करने की कोशिश की कि ओबीसी भगवा परिवार छोड़ रहे हैं। कुछ दिनों में तीन पिछड़े मंत्रियों और कई विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। भाजपा कल्याण सिंह द्वारा पहले इस्तेमाल किए गए फॉर्मूले पर काम कर रही है। 1991 में और फिर 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद ओबीसी और दलितों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने पर भाजपा को बहुमत मिला।
पार्टी ने जाट समुदाय के 16 किसानों को भी टिकट दिया है। पार्टी ने जिन 43 सीटों पर सामान्य जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है, भाजपा सूत्रों के मुताबिक उनमें 18 राजपूत, 10 ब्राह्मण और आठ वैश्य हैं। पार्टी ने जिन 19 दलितों को टिकट दिया है, उनमें 13 जाटव हैं।
राज्य की पूरी दलित आबादी में आधी आबादी जाटवों की है, जो लंबे समय तक बहुजन समाज पार्टी को एक बड़ा वोट बैंक रहा है। इतनी संख्या में जाटवों को भाजपा द्वारा टिकट दिए जाने को बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की उसकी कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
2017 में पार्टी ने इन सीटों पर 44 ओबीसी को मैदान में उतारा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में, दलित और मुस्लिम एकीकरण के कारण भाजपा को 2014 की तुलना में नौ सीटों पर हार का सामना करना पड़ा, जबकि बसपा 10 सीटों पर जीतने में सफल रही।