UP: सीएम योगी के चहेते IAS राजेश सिंह हटाए गए, कैदियों की रिहाई में लापरवाही और सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोलने की मिली सजा

By राजेंद्र कुमार | Published: September 7, 2024 07:51 PM2024-09-07T19:51:34+5:302024-09-07T19:57:12+5:30

राजेश सिंह 1991 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। वर्तमान में वह कारागार और सहकारिता विभागों के प्रमुख सचिव पद पर तैनात थे। सुप्रीम कोर्ट में उम्रकैद के कैदियों की समय पूर्व रिहाई को लेकर उन्होंने कोर्ट में गलत बयानी की थी, जिसे लेकर उन्हें फटकार लगाई गई थी। 

UP: CM Yogi's favorite IAS Rajesh Singh removed, punished for negligence in releasing prisoners and lying in the Supreme Court | UP: सीएम योगी के चहेते IAS राजेश सिंह हटाए गए, कैदियों की रिहाई में लापरवाही और सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोलने की मिली सजा

UP: सीएम योगी के चहेते IAS राजेश सिंह हटाए गए, कैदियों की रिहाई में लापरवाही और सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोलने की मिली सजा

लखनऊ: उम्र कैद की सजा काट रहे कैदियों की सजा में छूट के मामले को लेकर लापरवाही बरतना और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में गलत शपथ पत्र दाखिल करना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चहेते आईएएस राजेश कुमार सिंह पर भारी पड़ गया। योगी सरकार ने शनिवार को उन्हें उन्हें सभी पदों से हटाते हुए वेटिंग लिस्ट में डाल दिया है। राजेश सिंह 1991 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। वर्तमान में वह कारागार और सहकारिता विभागों के प्रमुख सचिव पद पर तैनात थे। सुप्रीम कोर्ट में उम्रकैद के कैदियों की समय पूर्व रिहाई को लेकर उन्होंने कोर्ट में गलत बयानी की थी, जिसे लेकर उन्हें फटकार लगाई गई थी। 

कोर्ट ने कहा था कि वह किसी आईएएस अधिकारी को न्यायालय के सामने झूठ बोलते हुए और सुविधानुसार अपना रुख बदलते हुए बर्दाश्त नहीं करेगा। इस मामले में 9 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट को आदेश पारित करना था। इसके पहले ही प्रदेश सरकार ने राजेश कुमार को सभी पदों से हटा दिया। इसके साथ ही अब एमपी अग्रवाल को प्रमुख सचिव सहकारिता और अनिल गर्ग को प्रमुख सचिव कारागार का चार्ज दिया गया हैं। 

इस मामले में हटाए गए राजेश सिंह :  

सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई 2022 को प्रदेश सरकार को आदेश दिया था कि कई उम्रकैद के समय पूर्व रिहाई के आवेदनों पर तीन महीने के अंदर अंतिम निर्णय लिया जाए। इसके बावजूद कई कैदियों की समय से पहले रिहाई की याचिकाओं पर फैसला नहीं लिया गया।

इस मामले में सितंबर 2022 को फिर सुनवाई हुई और कोर्ट ने समय पूर्व रिहाई से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अगर कोई कैदी पूर्व रिहाई की एलिजबिलिटी पूरी करता है तो बिना एप्लिकेशन की भी उसकी रिहाई पर विचार किया जाए।

इसके बाद भी सूबे में कारगार महकमे ने कोई कार्रवाई नहीं की। गत अगस्त में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में सुना गया, तो जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने यह पाया की प्रमुख सचिव कारागार राजेश कुमार सिंह द्वारा 14 अगस्त को दिए गए शपथ पत्र में लिया गया रुख उनके उन बयानों से पूरी तरह भिन्न है, जिन्हें इस अदालत के 12 अगस्त के आदेश में दर्ज किया गया है तो पीठ ने कहा कि शपथ पत्र के पैराग्राफ पांच के खंड (जी) में दिए गए बयान समेत शपथ पत्र में दिए गए कुछ बयान झूठे प्रतीत होते हैं।

राजेश कुमार सिंह ने 12 अगस्त को दलील दी थी कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के कार्यालय ने हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों के कारण राज्य में लागू आदर्श आचार संहिता के कारण एक दोषी की सजा माफी से संबंधित फाइल के निपटारे में देरी हुई। 

पीठ ने उन्हें इस शपथ-पत्र को लेकर यह कहा कि इस मामले में कुछ अधिकारियों को जेल जाना ही होगा, अन्यथा यह आचरण नहीं रुकेगा। प्रदेश सरकार को उनके खिलाफ कार्रवाई करनी ही होगी। कोर्ट के इस कथन पर राजेश कुमार सिंह ने कहा कि उन्होंने अनजाने में यह कह दिया कि आदर्श आचार संहिता के कारण मुख्यमंत्री सचिवालय ने सजा माफी से संबंधित फाइलें स्वीकार नहीं की। 

इस पर पीठ ने राजेश कुमार सिंह से कहा कि आप अनपढ़ नहीं हैं कि आप यह नहीं समझ सके कि अदालत ने क्या कहा। पीठ ने राजेश कुमार सिंह के शपथ पत्र को रिकॉर्ड पर लिया और कहा कि अदालत मामले की जांच करेगी और 9 सितंबर को आदेश पारित करेगी। यह आदेश पारित होता इसके पहले ही प्रदेश सरकार ने राजेश कुमार सिंह पर गाज गिरा दी। 

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