सार्वजनिक संपत्ति नुकसान: खुद जज बन गया यूपी प्रशासन, बिना ठोस सबूतों के मनमाने तरीके से वसूली का दोषी ठहराया
By विशाल कुमार | Published: January 22, 2022 08:48 AM2022-01-22T08:48:57+5:302022-01-22T08:52:47+5:30
नुकसान का अनुमान लगाने, भरपाई करने के लिए जिम्मेदार प्रदर्शनकारियों की पहचान करने और उनसे वसूली करने की पूरी प्रक्रिया प्रशासन ने खुद उठाई और किसी भी वैध प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
लखनऊ: दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन विरोधी प्रदर्शनों के दौरान उत्तर प्रदेश में कथित तौर पर क्षतिग्रस्त हुई 3.35 करोड़ रुपये की सार्वजनिक संपत्तियों का हर्जाना वसूलने के लिए प्रशासन ने 10 जिलों के 500 लोगों को नोटिस भेजा था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ के हजरतगंज में कथित तौर पर 64.37 लाख रुपये की वसूली के लिए एडीएम वैभव मिश्रा ने दो एफआईआर में आरोपी बनाए गए सभी 46 लोगों को 64.37-64.37 लाख रुपये का नोटिस भेजा था।
एडीएम के सामने सिविल कार्रवाई में 47 में से 28 को नुकसान की भरपाई करने के लिए कहा गया। लेकिन, उनमें से एक भी मामले में पुलिस कोई फोटो या वीडियो सबूत नहीं पेश कर पाई और सभी आदेशों में ओबी वैन क्षतिग्रस्त होने और प्रदर्शनकारियों की तस्वीरें साफ नहीं होने की बात कही गई।
वहीं, नुकसान का अनुमान लगाने, भरपाई करने के लिए जिम्मेदार प्रदर्शनकारियों की पहचान करने और उनसे वसूली करने की पूरी प्रक्रिया प्रशासन ने खुद उठाई और किसी भी वैध प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
हालांकि, 28 में से किसी ने भी अब तक भुगतान नहीं किया है क्योंकि उनके वकीलों का कहना है कि व्यक्तिगत भुगतान के रूप में 64.37 लाख रुपये की राशि बहुत अधिक है और उन्हें डर है कि वास्तविक लक्ष्य उनकी संपत्ति है जिसे राशि की वसूली के लिए अटैच किया जा सकता है।
यही नहीं, मजिस्ट्रेट ने 28 में से 15 के खिलाफ वसूली का आदेश उनकी सुनवाई किए बिना एकतरफा सुना दिया। इनमें से कम से कम 10 मामलों में मजिस्ट्रेट ने आदेश में दर्ज किया कि 19 दिसंबर, 2019 को लखनऊ पुलिस द्वारा व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन मजिस्ट्रेट ने यह रिकॉर्ड नहीं किया कि गिरफ्तार किए गए लोगों को मामले का एकतरफा फैसला करते हुए जमानत दी गई थी या नहीं।
कम से कम 25 मामलों में विरोध के दिन एफआईआर में किसी व्यक्ति का नाम शामिल होने को ही सार्वजनिक संपत्ति को नुकसाई करने में उसकी भागीदारी मान ली गई लेकिन उसमें से भी केवल तीन मामलों में ही सबूतों के आधार पर प्रदर्शन में उपस्थिति साबित की जा सकी।
28 में से जिन 10 लोगों ने विरोध करने के मौलिक अधिकार का हवाला दिया और ऐसे नोटिस जारी करने पर मजिस्ट्रेट के अधिकार पर सवाल उठाया उन्हें दोषी पाया गया।
बता दें कि, एफआईआर में सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक रॉबिन वर्मा, पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी, कांग्रेस नेता सदफ जफर और आलमबाग निवासी पुलकित के साथ 43 अल्पसंख्यकों को आरोपी बनाया गया है।