सबरीमाला मंदिर मामला: सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष वकीलों ने व्यापक मुद्दों के लिए संदर्भ का किया विरोध

By भाषा | Published: February 4, 2020 12:35 AM2020-02-04T00:35:28+5:302020-02-04T00:35:28+5:30

वरिष्ठ अधिवक्ता एफ एस नरीमन ने दो घंटे चली सुनवाई के दौरान कहा कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ सबरीमला मामले में 2018 के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर फैसला करने के दौरान व्यापक दायरा संदर्भित करने में गलत थी।

Top lawyers of the Supreme Court opposed the reference to broader issues in the Sabarimala case | सबरीमाला मंदिर मामला: सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष वकीलों ने व्यापक मुद्दों के लिए संदर्भ का किया विरोध

सबरीमाला मंदिर मामला: सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष वकीलों ने व्यापक मुद्दों के लिए संदर्भ का किया विरोध

उच्चतम न्यायालय को सोमवार को शीर्ष वकीलों के एक समूह के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। वकीलों ने सबरीमला मामले की सुनवाई के दौरान धार्मिक स्थलों पर महिलाओं से भेदभाव से जुड़े सवालों पर पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए संदर्भ को त्रुटिपूर्ण बताया।

वरिष्ठ अधिवक्ता एफ एस नरीमन ने कहा कि पुनर्विचार अधिकारक्षेत्र का उपयोग करने के दौरान एक वृहद पीठ द्वारा सुनवाई किए जाने वाले मुद्दों पर कोई संदर्भ नहीं दिया जा सकता क्योंकि इसका बहुत ही सीमित दायरा होता है। नरीमन ने दो घंटे चली सुनवाई के दौरान कहा कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ सबरीमला मामले में 2018 के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर फैसला करने के दौरान व्यापक दायरा संदर्भित करने में गलत थी।

न्यायालय ने 2018 के अपने इस आदेश के जरिए केरल के सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने देने का निर्देश दिया था। हालांकि, प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वह पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पिछले साल 14 नवंबर को संदर्भित आदेश पर आगे बढ़ेगी।

पीठ ने इस बात का भी जिक्र किया कि 3:2 के बहुमत से पीठ ने कहा था कि वृहद पीठ को धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े विषयों में ठोस एवं पूर्ण न्याय करने के लिए एक न्यायिक नीति तलाशनी होगी। धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े इन विषयों में मस्जिदों एवं दरगाहों में मुस्लिम महिलाओं का प्रवेश और गैर पारसी पुरूष से शादी करने वाली पारसी महिला के अग्नि मंदिर में प्रवेश पर रोक आदि शामिल हैं। नरीमन ने कहा, ‘‘हालांकि, यह वो परंपरा नहीं है जिसे उच्चतम न्यायालय ने प्रिवी काउंसिल के दिनों से अपनाया है और इस बारे में कई फैसले हैं।’’

नौ न्यायाधीशों की पीठ ने नरीमन, कपिल सिब्बल,राजीव धवन, राकेश द्विवेदी और श्याम दीवान सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं के कड़े विरोध का भी संज्ञान लिया। साथ ही, पीठ ने विभिन्न धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव पर वकीलों द्वारा उनके बीच व्यापक मुद्दे तय किए जाने में आमराय नहीं बन पाने पर भी संज्ञान लिया तथा उसे खुद ही तय करने का फैसला लिया। वृहद पीठ में न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एम एम शांतनागौडर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत शामिल हैं।

पीठ ने कहा कि वह सुनवाई के लिए समय सीमा के बारे में पक्षों को सूचना देगी और अगले हफ्ते कार्यवाही शुरू करेगी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की तरफ से पेश हुए सिब्बल ने दलील दी कि बोर्ड ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं को नमाज अदा करने के लिए मस्जिदों में प्रवेश की इजाजत है और न्यायालय को उक्त धर्म से नहीं जुड़े व्यक्ति की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जरूरी धार्मिक परंपरा पर फैसले करने में आस्था(धर्म) के विषय में प्रवेश नहीं करना चाहिए।

न्यायालय ने कहा, ‘‘मुद्दों की खातिर हर चीज को रोकने का कोई तुक नहीं है। हम मुद्दों पर इस शर्त के साथ फैसला करेंगे कि आर्डर 14 (उच्चतम न्यायालय के नियमों) के तहत किसी भी वक्त अतिरिक्त मुद्दे आ सकते हैं। इस पर सिब्बल ने कहा, ‘‘...यदि उच्चतम न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ कुछ कहती है, तो इसका समूचे देश पर और सभी धर्मों पर प्रभाव पड़ेगा।’’ वहीं, केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने उच्चतम न्यायालय के नियमों का हवाला दिया और कहा कि न्यायालय अनुच्छेद 25, 26 (धर्म से जुड़े मूल अधिकार) के दायरे पर एक व्यापक बहस करा सकता है।’’

उन्होंने कहा कि न्यायालय सबरीमला विषय को वृहद पीठ को भी भेज सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने कहा कि न्यायालय व्यापक मुद्दों पर फैसला करने के लिए बैठा है। सिब्बल ने कहा कि मूल अधिकार सरकार की कार्रवाई के खिलाफ लागू होते हैं और यहां एक व्यक्ति जो उस धर्म से नहीं है, एक जनहित याचिका दायर की है और कहा है कि हलाला बुरा है, बहुविवाह बुरा है।

उन्होंने कहा, ‘‘वे लोग यह कहने वाले कौन होते हैं? ’’ इस पर पीठ ने कहा, ‘‘बार ऐंड बेंच को यह अवश्य ही समझना चाहिए कि मुद्दा क्या है। और इसे मंजूर या नामंजूर करना चाहिए। हमें हर मामले की तह में जाने की जरूरत नहीं है। ’’

Web Title: Top lawyers of the Supreme Court opposed the reference to broader issues in the Sabarimala case

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