सीबीआई की जांच का दायरा राष्ट्रीय स्तर तक बढ़ाने के लिए कानून लाने का सही वक्त: एस एम खान

By भाषा | Published: November 8, 2020 12:49 PM2020-11-08T12:49:11+5:302020-11-08T12:49:11+5:30

The right time to bring a law to extend the scope of CBI's investigation to the national level: SM Khan | सीबीआई की जांच का दायरा राष्ट्रीय स्तर तक बढ़ाने के लिए कानून लाने का सही वक्त: एस एम खान

सीबीआई की जांच का दायरा राष्ट्रीय स्तर तक बढ़ाने के लिए कानून लाने का सही वक्त: एस एम खान

नयी दिल्ली, आठ नवंबर सीबीआई मामलों के विशेषज्ञ और पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के प्रेस सचिव रह चुके एस एम खान का मानना है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो को वैधानिक शक्तियां देने का यह सही वक्त है ताकि उसकी जांच का दायरा अखिल भारतीय स्तर पर हो और वह राज्यों और सरकारों के रहमोकरम पर ना रहे।

सीबीआई से जुड़े ताजा विवादों पर देश की इस प्रमुख जांच एजेंसी के पूर्व मुख्य प्रवक्ता खान से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब:-

सवाल: कई गैर-भाजपा शासित राज्यों ने हाल ही में अपने यहां मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस ले ली है। संघीय ढांचे के लिहाज से इसे आप कितना उचित मानते हैं?

जवाब: यह कोई नयी चीज नहीं है। जब से सीबीआई का गठन हुआ तभी से यह चला आ रहा है। पहले तो एक ही पार्टी की सरकारें रहा करती थीं। केंद्र और राज्यों में भी। बाद में परिस्थितियां बदलीं और गैर-कांग्रेसी सरकारें भी बनने लगीं। समस्या है सीबीआई का कानून। सीबीआई, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (डीएसपीई एक्ट) के अधीन काम करती है। इसके तहत सीबीआई का दायरा ही दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेशों तक सीमित है। एक अप्रैल 1963 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी से यह शक्ति मिली कि अगर कोई राज्य चाहे तो वह फैसला लेकर सीबीआई को अपने राज्य में जांच का अधिकार दे सकता है। उस समय कांग्रेस की सरकारें हर जगह थीं। सारी ही सरकारों ने सीबीआई को जांच की मंजूरी दे दी। इस प्रकार सीबीआई बिना रोकटोक के राज्यों में भी काम करती रही। जब प्रांतों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बननी शुरू हुईं तो यह समस्या उसी समय शुरू हुई। कुछ राज्यों ने सीबीआई जांच की अनुमति वापस लेनी शुरू कर दी। सबसे पहले नगालैंड ने ऐसा किया फिर कर्नाटक और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने भी किया। त्रुटि कानून में है। सबसे बढ़िया ये हो सकता है कि ऐसा कानून बने जो सीबीआई को पूरे भारत वर्ष में काम करने का अधिकार प्रदान करे। ऐसा कानून होता है तो सीबीआई राज्यों और सरकारों के रहमोकरम पर नहीं रहेगी। अपने कानून के तहत अपनी कार्रवाई करेगी। नहीं तो ये समस्या बरकरार रहेगी।

सवाल: सीबीआई किस मामले की जांच करे और ना करे, इसे लेकर भी समय-समय पर विवाद होते रहे हैं। हाल ही में फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के मामले में भी यह देखा गया। आपकी राय?

जवाब: इसके लिए भी सीबीआई कानून ही समस्या है। सीबीआई मूलत: बनी थी भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए। चूंकि कोई जांच एजेंसी नहीं थी केंद्र के पास तो सीबीआई को विशेष अपराध के महत्वपूर्ण मामले भी सौंपे जाने लगे, जिसका कि आप जिक्र कर रहे हैं (सुशांत सिंह राजपूत मामला)। फिर सीबीआई के पास आतंकवाद के मामले और फिर आर्थिक अपराध के मामले भी आने लगे। विशेष अपराध के मामलों को राज्य सरकारों की रजामंदी के बाद सीबीआई को सौंपा जाता है। इसमें विवेकाधिकार राज्य सरकारों का होता है। या फिर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय हस्तक्षेप करते हुए किसी मामले को सीबीआई को सौंप दे तो वह उसकी जांच करती है। इस प्रकार के मामले राज्यों पर निर्भर होते हैं कि वह सीबीआई को सौंपा जाए या नहीं। इसी को लेकर विवाद होता है। इसके बाद केंद्र पर निर्भर है कि वह राज्य सरकार की संस्तुति को मंजूर करे या ना करे।

सवाल: राष्ट्रीय स्तर पर सीबीआई जांच के दायरे का विस्तार हो, इसके लिए क्या कानून बनाने का सही वक्त आ गया है?

जवाब: जी, हां। बिल्कुल होना चाहिए। मैंने तो इस बारे में कई लेख भी लिखे हैं। ऐसे कानून की बहुत आवश्यकता है। इस समय केंद्र की सत्ता में जो पार्टी है, उसके पास बहुत अच्छा बहुमत है। लोकसभा में भी और राज्यसभा में भी। राज्यों में भी उसकी सरकारें हैं। इसलिए इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता कि ऐसा संघीय कानून बने, जिसमें सीबीआई का कार्यक्षेत्र निर्धारित किया जाए और वह पूरे देश में हो। कम से कम भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए सीबीआई को राष्ट्रीय स्तर पर अधिकार मिलने ही चाहिए। अभी तो भ्रष्टाचार के मामलों की भी पूरे देश में जांच करने का सीबीआई को कानूनी अधिकार नहीं है, जबकि उसकी स्थापना ही भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए हुई थी।

सवाल: सीबीआई की विश्वसनीयता और उसकी साख हमेशा सवालों के घेरे में रही है। क्या कहेंगे आप?

जवाब: यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है। सीबीआई पहले भी निष्पक्ष ढंग से काम करती थी और आज भी करती है। लेकिन सीबीआई को लेकर यह धारणा बन गई है। हालांकि यह पहले भी होता था लेकिन पहले कम होता था, अब अधिक होने लगा है। मैं अभी भी मानता हूं कि सीबीआई निष्पक्ष जांच करती है। जरूरत है सीबीआई को और समर्थ और सशक्त बनाने की। सीबीआई को निर्वाचन आयोग की तरह स्वतंत्र और स्वायत्त बनाना होगा। सीबीआई को बहुत सारी चीजों के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। जैसे अनुरोध पत्र (लेटर रोगेटरी) जारी करना, सीबीआई टीम को जांच के लिए विदेश जाने की अनुमति देना, उच्चतम और उच्च न्यायालयों में सीबीआई को अपीलें फाइल करना जैसे अनेकों ऐसे मामले हैं। सरकार चाहे तो अनुमति दे या ना दे। चाहे तो देरी करे। इसका असर सीबीआई की साख पर पड़ता है। इसलिए यह धारणा बनी है।

सवाल: सीबीआई की अपराध सिद्धि की दर पर भी सवाल उठते हैं। उसकी कार्यप्रणाली में सुधार हो इसके लिए किस प्रकार के सुधार होने चाहिए?

जवाब: ऐसा नहीं है कि सीबीआई की दोष सिद्धि दर कम है। आज भी यह पुलिस के मुकाबले बहुत बेहतर है। सीबीआई के पास मामले भी बहुत हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में दस्तावेजी साक्ष्य भी बहुत होते हैं। और अधिक विशेष अदालतों का गठन, विशेष अधिवक्ताओं का चयन करने की छूट होनी चाहिए। कुल मिलाकर सीबीआई को स्वायत्तता देनी होगी और उसे कानूनी रूप से और सशक्त बनाना होगा।

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