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जम्मू-कश्मीर में लोगों में डर पैदा करने के लिए उन्हें चुन-चुनकर निशाना बना रहे हैं आतंकवादी : भागवत

By भाषा | Updated: October 15, 2021 19:24 IST

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नागपुर, 15 अक्टूबर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी डर का माहौल बनाने के लिए लोगों को चुन-चुनकर निशाना बना रहे हैं। साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सीमाओं पर सेना की तैयारी हर तरह से और हर वक्त मजबूत बनाए रखने की आवश्यकता है।

नागपुर के रेशमबाग मैदान में वार्षिक विजयादशमी रैली को संबोधित करते हुए भागवत ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की समीक्षा एवं इसे फिर से बनाने का आह्वान किया और हिंदू मंदिरों के नियंत्रण के मुद्दे पर भी बात की।

मुंबई में इजराइल के महावाणिज्य दूत कोब्बी शोशनी, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता देवेंद्र फडणवीस भी कार्यक्रम में मौजूद थे।

भागवत ने अपने भाषण में ओटीटी मंचों को विनियमित करने और “अनियंत्रित” क्रिप्टोकरेंसी तथा मादक पदार्थों की समस्या पर भी चिंता जाहिर की।

जम्मू-कश्मीर के अपने हालिया दौरे का जिक्र करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिली विशेष शक्तियों के खत्म होने के बाद आम लोग लाभ ले पा रहे हैं, लेकिन एक कदम आगे बढ़ाते हुए, देश के बाकी हिस्सों में इसके भावनात्मक एकीकरण के लिए प्रयास करने की जरूरत है।

भागवत ने कहा, “दिल-दिमाग मिलने चाहिए। किसी भी भारतीय का देश के साथ संबंध कारोबारी लेन-देन नहीं है। हमें यह भावना कश्मीर के लोगों के मन में जगानी होगी।”

उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सरकार और लोग इस दिशा में काम कर रहे हैं और इन प्रयासों को बढ़ाने की जरूरत है।

भागवत ने कहा, “अनुच्छेद 370 के तहत विशेष प्रावधानों को रद्द करने के बाद, आतंकवादियों का डर खत्म हो गया है। लेकिन चूंकि वे अपने मकसदों को पूरा करने के लिए भय का इस्तेमाल करते हैं, (उन्हें लगता है) उनके लिए उस भय (लोगों के मन में) को वापस लाना महत्वपूर्ण है।”

उन्होंने घाटी में सिखों और हिंदुओं की हाल में हुई हत्याओं का जिक्र करते हुए कहा, “यही कारण है कि वे मनोबल गिराने के लिए लक्ष्य बनाकर की जा रही हत्याओं का सहारा ले रहे हैं, जैसा वे पहले करते थे।” साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार को उनसे प्रभावी तरीके से निपटना होगा ताकि जंग जीती जा सके।

उनका यह बयान इस महीने की शुरुआत में महज पांच दिनों में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा कम से कम सात आम नागरिकों की हत्या के मद्देनजर आया है। मारे गए लोगों में से चार अल्पसंख्यक समुदायों के थे और छह मौतें श्रीनगर में हुई थीं।

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के मुद्दे पर भागवत ने कहा कि उनकी प्रवृत्ति - "इस्लाम के नाम पर भावुक कट्टरता, अत्याचार और आतंकवाद" सभी को उनके प्रति आशंकित करने के लिए पर्याप्त है।

उन्होंने कहा, "लेकिन अब चीन, पाकिस्तान और तुर्की तालिबान के साथ एक "अपवित्र गठबंधन" में शामिल हो गए हैं। उन्होंने साथ ही कहा, “हम शालीनता से प्रतीक्षा नहीं कर सकते। सीमाओं पर हमारी सैन्य तैयारियों को हर तरफ और हर समय सतर्क और मजबूत रखने की जरूरत है।”

भागवत ने कहा कि ऐसी स्थिति में, देश की आंतरिक सुरक्षा और स्थिरता को सरकार एवं समाज द्वारा सतर्कता एवं सजगता से संरक्षित किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि रक्षा एवं सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के प्रयास और साइबर सुरक्षा जैसी नयी चिंताओं की जानकारी रखने के प्रयास तेज किए जाने चाहिए।

इस साल की शुरुआत में असम और मिजोरम पुलिस के बीच हिंसक झड़प पर दुख व्यक्त करते हुए उन्होंने पूछा, "क्या हम एक ही देश के नागरिक नहीं हैं?"

ओटीटी प्लेटफॉर्मों को लेकर, आरएसएस प्रमुख ने कहा कि वैश्विक महामारी की पृष्ठभूमि में ऑनलाइन शिक्षा शुरू की गई। स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों को नियम के तौर पर मोबाइल फोन से जुड़े रहना पड़ता है। उन्होंने कहा, “ विवेक और एक नियामक ढांचे के अभाव में, यह अनुमान लगाना मुश्किल हो जाएगा कि निष्पक्ष और अनुचित साधनों के संपर्क की यह उभरती हुई घटना किस तरह और किस हद तक हमारे समाज को प्रभावित करेगी।”

उन्होंने कहा कि राष्ट्रविरोधी ताकतें किस हद तक इन माध्यमों का उपयोग करना चाहती हैं यह भलीभांति ज्ञात है।

आरएसएस प्रमुख ने कहा, “इसलिए, सरकार को बिना किसी देरी के इन मामलों के विनियमन के प्रयास करने चाहिए।”

मंदिरों के प्रबंधन के विषय पर उन्होंने कहा कि सरकार के तहत जिनका प्रबंधन है, वे ठीक से काम कर रहे हैं। कुछ मंदिर बहुत साफ-सुथरे हैं और समाज की मदद करते हैं और कुछ भक्तों द्वारा संचालित भी अच्छी तरह से काम कर रहे हैं।

उन्होंने कहा,"जहां ऐसी चीजें ठीक से काम नहीं कर रही हैं, वहां एक लूट मची हुई है। कुछ मंदिरों में शासन की कोई व्यवस्था नहीं है। मंदिरों की चल और अचल संपत्तियों के दुरुपयोग के उदाहरण सामने आए हैं।”

भागवत ने कहा, “हिंदू मंदिरों की संपत्ति का उपयोग गैर-हिंदुओं के लिए किया जाता है - जिनकी हिंदू भगवानों में कोई आस्था नहीं है। हिंदुओं को भी इसकी जरूरत है, लेकिन उनके लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता है।”

उन्होंने कहा कि मंदिरों के प्रबंधन को लेकर उच्चतम न्यायालय के कुछ आदेश हैं। साथ ही कहा कि हिंदू समाज इन मंदिरों का प्रबंधन कैसे करेगा इसपर एक फैसला लिए जाने की जरूरत है।

देश की जनसंख्या में “तेज वृद्धि” पर चिंता जाहिर करते हुए भागवत ने अगले 50 वर्षों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की समीक्षा एवं इसको फिर से बनाए जाने का आह्वान किया। उन्होंने सीमा पार से होने वाली अवैध घुसपैठ को रोकने और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) बनाने पर भी बल दिया।

सर संघचालक के मुताबिक सामाजिक चेतना अब भी जाति आधारित भावनाओं से प्रभावित है।

उन्होंने कहा कि इस्लाम और इसाई धर्म ने “आक्रमणकारियों” के साथ भारत में प्रवेश किया था और उनके साथ ही फला-फूला जबकि पारसी धर्म और यहूदी धर्म शरण लेने आए थे।

भागवत ने कहा, “वह इतिहास है। आक्रमणकारियों से किसी का कोई संबंध नहीं है। सभी हिंदुओं के वंशज हैं, जो इस विविधता को एकता मानते थे और सभी को स्वीकार करते थे तथा शांति और सद्भाव से रहते थे।”

उन्होंने कहा कि देश में हसनखान मेवाती, हकीमखान सूरी, खुदाबख्श और गौस खान जैसे “शहीद” और अशफाकुल्ला खान जैसे क्रांतिकारी हुए हैं।

आरएसएस प्रमुख ने कहा, “इतिहास को दुश्मनी के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना सीखना होगा कि दुश्मनी कैसे न बढ़े।”

आजादी की 75वीं वर्षगांठ का जिक्र करते हुए भागवत ने कहा कि अहिंसक आंदोलन से लेकर सशस्त्र विद्रोह तक सभी रास्ते स्वतंत्रता के अंतिम लक्ष्य तक ले गए, लेकिन आजादी की खुशी भी बंटवारे के अमिट जख्म के साथ आई।

भागवत ने कहा, “यह आवश्यक है कि समाज विशेषकर युवा पीढ़ी इस इतिहास से सीखे, समझे और याद रखे। यह किसी के प्रति शत्रुता की भावनाओं को रखने के लिए नहीं है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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