अधिवक्ता प्रशांत भूषण और पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ 2009 के अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से मांगी मदद

By भाषा | Published: September 10, 2020 04:15 PM2020-09-10T16:15:40+5:302020-09-10T16:15:40+5:30

शीर्ष अदालत ने तहलका पत्रिका में प्रकाशित साक्षात्कार में उच्चतम न्यायालय के कुछ तत्कालीन पीठासीन और पूर्व न्यायाधीशों पर कथित रूप से लांछन लगाने को लेकर भूषण और तेजपाल को नवंबर 2009 में अवमानना के नोटिस जारी किये थे। तेजपाल उस वक्त इस पत्रिका के संपादक थे।

Supreme Court seeks help Attorney General 2009 contempt case against advocate Prashant Bhushan and journalist Tarun Tejpal | अधिवक्ता प्रशांत भूषण और पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ 2009 के अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से मांगी मदद

हम चाहते हैं कि हमारे द्वारा दिये गये सवालों पर अटॉर्नी जनरल इस न्यायालय की मदद करें।

Highlightsलंबित 2009 के अवमानना मामले में बृहस्पतिवार को अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से मदद करने का अनुरोध किया।न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के लिये यह मामला आया।कानून के बड़े सवालों पर विचार होना है और ऐसी स्थिति में इसमें अटॉर्नी जनरल की मदद की जरूरत होगी।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण और पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ लंबित 2009 के अवमानना मामले में बृहस्पतिवार को अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से मदद करने का अनुरोध किया।

शीर्ष अदालत ने तहलका पत्रिका में प्रकाशित साक्षात्कार में उच्चतम न्यायालय के कुछ तत्कालीन पीठासीन और पूर्व न्यायाधीशों पर कथित रूप से लांछन लगाने को लेकर भूषण और तेजपाल को नवंबर 2009 में अवमानना के नोटिस जारी किये थे। तेजपाल उस वक्त इस पत्रिका के संपादक थे।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के लिये यह मामला आया। भूषण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि इस मामले में कानून के बड़े सवालों पर विचार होना है और ऐसी स्थिति में इसमें अटॉर्नी जनरल की मदद की जरूरत होगी।

धवन ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि हमारे द्वारा दिये गये सवालों पर अटॉर्नी जनरल इस न्यायालय की मदद करें। न्यायालय ने भी कुछ सवाल तैयार किये हैं।’’ इस मामले में विचार के लिये उन्होंने कुछ सवाल दिये थे। पीठ ने निर्देश दिया कि इसका सारा रिकार्ड अटॉर्नी जनरल के कार्यालय को दिया जाये और इसके साथ ही अवमानना के इस मामले को 12 अक्टूबर के लिये सूचबद्ध कर दिया।

प्रशांत भूषण पर 31 अगस्त को एक रुपए का सांकेतिक जुर्माना लगाया था

शीर्ष अदालत ने अवमानना के एक अन्य मामले में दोषी ठहराये गये अधिवक्ता प्रशांत भूषण पर 31 अगस्त को एक रुपए का सांकेतिक जुर्माना लगाया था। यह मामला प्रशांत भूषण के न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्वीट का था, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि उन्होंने न्याय प्रशासन की संस्था की गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास किया था।

न्यायालय ने 2009 का अवमानना मामला 25 अगस्त को किसी दूसरी पीठ को भेजने का निश्चय किया था जिसे अभिव्यक्ति की आजादी और न्यायपालिका के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित व्यापक सवालों पर विचार करना है। धवन ने न्यायालय से कहा था कि उन्होंने संवैधानिक महत्व के 10 सवाल उठाये हैं जिन पर संविधान पीठ द्वारा विचार करने की आवश्यकता है।

न्यायालय ने समय के अभाव की वजह से 25 अगस्त को सुनवाई नहीं की थी

इस मामले की न्यायालय ने समय के अभाव की वजह से 25 अगस्त को सुनवाई नहीं की थी क्योंकि पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा दो सितंबर को सेवानिवृत्त हो रहे थे। इस मामले में उठाये गये सवालों पर अटॉर्नी जनरल की मदद लेने के धवन के आग्रह से पीठ सहमत नहीं थी और उसने कहा था कि बेहतर होगा कि इसे प्रधान न्यायाधीश द्वारा गठित की जाने वाली नयी पीठ पर छोड़ दिया जाये। शीर्ष अदालत ने 17 अगस्त को इस मामले में कुछ सवाल तय किये थे और संबंधित पक्षों से इन तीन सवालों पर विचार के लिये कहा था।

ये सवाल थे-क्या न्यायाधीशों और न्यायपालिका के खिलाफ भ्रष्टाचार संबंधी बयान दिये जा सकते हैं और किन परिस्थितियों में ये दिये जा सकते हैं और पीठासीन तथा सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के मामले में क्या प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। भूषण ने भी अपने 10 सवाल दाखिल किये थे और इन पर संविधान पीठ द्वारा विचार करने का अनुरोध किया था।

भूषण के सवालों में शामिल था कि , ‘‘क्या न्यायपालिका के किसी भी क्षेत्र में भ्रष्टाचार के बारे में वास्तविक राय व्यक्त करना न्यायालय की अवमानना माना जायेगा? क्या इस तरह की राय व्यक्त करने वाले व्यक्ति को इसे सही साबित करना होगा या अपनी राय को वास्तविक बताना ही पर्याप्त होगा।’’ 

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